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रविवार, 8 जून 2008

kyun

मौसम क्यों रंग बदलता है ,ज़िंदगी क्यों हर पल बदलती है,
ज़ख्म क्यों बार बार मिलते हैं ,दिल क्यों बार बार टूटता है,
दिल क्यों नही pratirodh कर पाता ,अश्क क्यों जज्ब हो जाते हैं ,
वक्त क्यों बदलता नही , किस्मत को तरस क्यों आता नही ,
क्यों ख़ुद को समझ पाते नही ,क्यों किसी को समझा पाते नही ,
क्यों यह ग़मों का मौसम ठहर गया है ,इसे दूसरा घर क्यों नज़र आता नही ।

1 टिप्पणी:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जिनको गमों से प्यार होता है।
उन्हीं के पास गम ठहरते हैं।
सुन्दर रचना।