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बुधवार, 11 फ़रवरी 2009

क्या तुम्हें आज भी याद है

क्या तुम आज भी
मुझे याद करते हो
क्या तुम्हें मेरा वो अल्हड़पन
आज भी याद है
क्या तुम्हें मेरे उस
इंतज़ार का अहसास है
जो मैं किया करती थी
तुम्हारे लिए
पल पल ख्वाब बुनती थी
तुम्हारे लिए
क्या तुम्हें आज भी याद है
वो छत पर
मदमस्त होकर
बारिश में भीगना मेरा
क्या तुम्हें आज भी याद है
मेरा रूठ जाना
बिना बात पर
और फिर तुम
मुझे मनाते थे
कभी हंसकर तो
कभी ख़ुद रोकर
क्या तुम्हें आज भी याद है
घंटों छत पर
पड़े पड़े तारों को निहारना
उनमें अपने ख्वाबों को देखना
कुछ नए ख्वाब सजाना मेरा
और उन ख्वाबों को
पूरा करने का
वादा करना तेरा
क्या तुम्हें आज भी याद है
मेरे अन्दर की उस
बच्ची के अहसास
जो अल्हड सी
सारे जहाँ को
अपने में समेटे
ख्वाबों में जीती थी
और आज भी उन्ही
लम्हों को जीना चाहती है
क्यूंकि आज भी वो अल्हड बच्ची
मुझमें कहीं जिंदा है
वो अब भी बड़ी नही हुयी है
क्या तुम्हें आज भी याद है
उस बच्ची को फिर से
कैसे उसी अल्हड़ता में
जीना सिखाना है
उसे फिर से उसी
दुनिया से मिलाना है
जहाँ वो तुम्हारे साथ
उन लम्हों को
फिर से जी सके
ज़िन्दगी के उस रस
को पी सके
क्या तुम्हें आज भी याद है ??????

7 टिप्‍पणियां:

रंजना ने कहा…

Sundar kavita....
har vyakti ke andar ek bachcha umra ke aakhiri pal tak moujood hota hai.

निर्मला कपिला ने कहा…

वन्दनाजी बहुत सुन्दर भावावियक्ति है बहुत बहुत बधाई

रंजू भाटिया ने कहा…

मेरे अन्दर की उस
बच्ची के अहसास
जो अल्हड सी
सारे जहाँ को
अपने में समेटे
ख्वाबों में जीती थी
और आज भी उन्ही
लम्हों को जीना चाहती है
क्यूंकि आज भी वो अल्हड बच्ची
मुझमें कहीं जिंदा है

बहुत सुंदर कविता लगी आपकी यह

मोहन वशिष्‍ठ ने कहा…

वंदना जी बेहतरीन कविता लिखी है आपने
बहुत बहुत बधाई

Vinay ने कहा…

सुन्दर काव्य चित्रण

---
गुलाबी कोंपलेंचाँद, बादल और शाम

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

bhavnaye bahti he..sundar rachna he. nai kavitao ke dor me is tarah ki kavita ke saath yadi apni bhavnao ko poora poora nyaan mil jaata he to vah kavita man ko bhaane lagti he..aapki is kavita me vah sab kuchh he.

vijay kumar sappatti ने कहा…

do alag alag bhaavo ko aapne badi khoobsurti se ek poem me darz kiya hai ..

badhai sweekar karen