मैं
ख्वाब बनी
हकीकत में ढली
नज़्म भी बनी
गीतों में ढली
तेरे सांसों की
सरगम पर
सुरों की झंकार
भी बनी
रूह का स्पंदन
भी बनी
मौसम का खुमार
भी बनी
सर्दी की गुनगुनी
धूप में ढली
कभी शबनम
की बूंद बन
फूलों में पली
तेरे हर रंग में ढली
वो सब कुछ बनी
जो तू ने बनाया
तूने सब कुछ बनाया
मगर वो ना बनाया
जो तेरे अंतर्मन के
दीपक की बाती होगी
तेरे अरमानों की
थाती होती
तेरे हर ख्वाब की
ताबीर होती
तेरी हर धड़कन की
आवाज़ होती
तेरी रूह की पुकार होती
तेरी जान की जान होती
बस वो ना बनाया
तूने कभी
बस वो ना बनाया ..........
31 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर.....रूह से निकली सदाएं ....
bas wo na banaaya....
wah wah wah....kya likha hai aapne....umdaa!
bahut khoob vandana ji...ek badiya gazal....main ek baar fir kahta hoon gazal ko gazal ki tarah likhe....nazm ki tarah nahi.
वाह !! दिल को छू लेने वाली भावनाएं... बहुत खूब ||
बसंत मे टुटे शाख के पत्तो सी रचना !
विकट दर्द छलका है तेरी...
नज़्म है जो ये तुने कही...
जिसकी खातिर बनी बहुत कुछ...
उसकी फिर भी न हैं बनी...
सुन्दर भाव...पर दर्द भरे...
दीपक
आपकी यह प्रस्तुति कल २८-७-२०१० बुधवार को चर्चा मंच पर है....आपके सुझावों का इंतज़ार रहेगा ..
http://charchamanch.blogspot.com/
to phir tune to sabkuch kho hi diya n
bas eak pankti me jiwan ka pura dard samet diya! bahut sunder rachna.. dil ko choo gayee
tute dil ki bikhri kahani,
sundar kavita aapki jubani.
बड़ी गहराई लेकर आती है आपकी लेखनी
बहुत सुन्दर भावनाएं ... खूबसूरत कविता !
वन्दना जी, बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति, दिल को छूते शब्द अनुपम ।
वो सब कुछ बनी
जो तू ने बनाया
तूने सब कुछ बनाया
मगर वो ना बनाया
बहुत दर्द है...इस कविता में....
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
हमेशा की तरह लाजवाब प्रस्तुती!
गहन अभिव्यक्ति!
Dardbhari bhavnaon ka sundar chitran
हमेशा की तरह आपकी कलम का जादू जगाती अद्भुत रचना...वाह...
नीरज
गहरी वेदना ।
बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
कविताओं में हर अगले दिन और भी पैनापन आता जा रहा है....
वंदना जी खूब लिखा आपने..अत्यन्त सुंदर रचना ..बधाई
दिल को छू लेने वाली भावनाएं...
बहुत सुन्दर.....रूह से निकली सदाएं ....
वाह !! बहुत सुन्दर रचना । बधाई।
वो मैं
तुझको बनाता कैसे
रूह अपनी दिखाता कैसे
जो था वो तेरा ही तो था
जिस्म तो मेरा था
तेरी रूह को
खुद से अलगाता कैसे ।
सब कुछ बन के भी अधूरे रह गए..
सुंदर शब्दों में ढाला उन एहसासों को.
bahut hi achhi rachna...
mann se nikli huyi aur mann me utarne wali rachna....
मैं
ख्वाब बनी
हकीकत में ढली
नज़्म भी बनी
गीतों में ढली
तेरे सांसों की
सरगम पर
--
रचना का आगाज और अंजाम बहुत बढ़िया लगा है!
वाह ! वाह ! क्या बात है !
एक टिप्पणी भेजें