एक रात की नीरवता
एक मन की व्यथा
एक ओस की बूँद
जीवन क्षण भंगुर
फिर कैसे नव निर्माण
संभव हो
कैसे कोई स्पंदन हो
कैसे मन में बसंत हो
एक ख्वाब का आलिंगन
एक अंधेरे का सूनापन
एक दर्द की पराकाष्ठा
खुद ही अपना तर्पण
फिर कैसे ज्योति
प्रज्वलित हो
कैसे अन्तस रौशन हो
कैसे मन मे बसंत हो
अव्यक्त से व्यक्त
होने की आतुरता
साकार को पाने की
तुच्छ लालसा
क्लिष्ट मन की
भीषण आकुलता
और राह अगम्य
फिर कैसे दिव्य दर्शन हो
कैसे आत्मावलोकन हो
कैसे मन मे बसंत हो
एक मन की व्यथा
एक ओस की बूँद
जीवन क्षण भंगुर
फिर कैसे नव निर्माण
संभव हो
कैसे कोई स्पंदन हो
कैसे मन में बसंत हो
एक ख्वाब का आलिंगन
एक अंधेरे का सूनापन
एक दर्द की पराकाष्ठा
खुद ही अपना तर्पण
फिर कैसे ज्योति
प्रज्वलित हो
कैसे अन्तस रौशन हो
कैसे मन मे बसंत हो
अव्यक्त से व्यक्त
होने की आतुरता
साकार को पाने की
तुच्छ लालसा
क्लिष्ट मन की
भीषण आकुलता
और राह अगम्य
फिर कैसे दिव्य दर्शन हो
कैसे आत्मावलोकन हो
कैसे मन मे बसंत हो
39 टिप्पणियां:
कित्ती सुन्दर कविता....वसंत पंचमी तो बहुत प्यारा त्यौहार है..इसके साथ मौसम भी कित्ता सुहाना हो जाता है. वसंत पंचमी पर ढेर सारी बधाई !!
_______________________
'पाखी की दुनिया' में भी तो वसंत आया..
अक्सर पढता हूं जब उनको तो ,
एक पसोपेश में पड जाता हूं ,ल
ये उनके शब्दों का दर्द है या कि ,
किसी के मन की व्यथा को पिरोया है ...
वसंत आने की बधाई
बसंत पंचमी की शुभ कामनाएं.
सादर
एक ख्वाब का आलिंगन
एक अंधेरे का सूनापन
एक दर्द की पराकाष्ठा
खुद ही अपना तर्पण
फिर कैसे ज्योति
प्रज्वलित हो
कैसे अन्तस रौशन हो
कैसे मन मे बसंत हो
virah ka sajiv varnan
अप्रतिम रचना...बधाई
नीरज
कैसे कोई स्पंदन हो
कैसे अन्तस रौशन हो
कैसे मन मे बसंत हो
बहुत गहरे भाव , बहुत अच्छी रचना
भीषण आकुलता
और राह अगम्य
फिर कैसे दिव्य दर्शन हो
कैसे आत्मावलोकन हो
कैसे मन मे बसंत हो
--
सुन्दर रचना!
बसन्त सामने हो तो आकुलता तो होगी ही!
बहुत ही सुन्दर भावों का बखूबी चित्रण किया है आपने इस अभिव्यक्ति में ..।
वंदना जी , बहुत पसंद आई ये रचना ...कैसे मन में वसंत हो ..
कैसे आत्मावलोकन हो , कैसे मन में वसंत हो...
वेदना को शब्दों ने खूब समझाया ...
अव्यक्त से व्यक्त
होने की आतुरता
साकार को पाने की
तुच्छ लालसा
क्लिष्ट मन की
भीषण आकुलता
और राह अगम्य
फिर कैसे दिव्य दर्शन हो
कैसे आत्मावलोकन हो
कैसे मन मे बसंत हो
वसंत पंचमी की शुभकामनाएं,वंदना जी !
मन बसंत तो लाना होगा। बहुत सुन्दर कविता।
सुन्दर कविता...बहुत अच्छी रचना !
बसंत पंचमी की शुभकामनाएं !!
एक ख्वाब का आलिंगन
एक अंधेरे का सूनापन
एक दर्द की पराकाष्ठा
खुद ही अपना तर्पण
फिर कैसे ज्योति
प्रज्वलित हो
कैसे अन्तस रौशन हो
कैसे मन मे बसंत हो
...
बहुत मर्मस्पर्शी रचना..सच है कैसे मन में वसंत हो...वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें.
वंदना जी,
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति|
हो रात की नीरवता
रहे मन की व्यथा
सच, ओस की बूँद
जीवन क्षण भंगुर
फिर भी नव निर्माण
संभव है, स्पंदन है
मन में ही तो वसंत है
करें ख्वाब का आलिंगन
दूर अंधेरे का सूनापन
सहें दर्द की पराकाष्ठा
खुद को कर अर्पण
ज्योति प्रज्वलित कर
कर अन्तस रौशन
मन में ही तो वसंत है
अव्यक्त से व्यक्त
होने की आतुरता
साकार को पाने की
जीवट लालसा
क्लिष्ट मन की
भीषण आकुलता
तभी राह गम्य है
दिव्य दर्शन है
आत्मावलोकन है
मन में ही तो वसंत है
गहन अर्थों को समेटती एक खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.
बसंत पर सुन्दर प्रस्तुति...बधाई
बरसे यूँ ही अभिव्यक्ति-सुधा,हों भाव प्रबल,गहरे,अन्नत,
जब जब पाठक रस पान करे, पतझर भी हो जाए बसंत !
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं !
वसंत पर इतनी मार्मिक और दिल को छू लेने वाली कविता पहले नहीं पढ़ी.. नए भाव की कविता है यह... दर्द, बेबसी.. प्रेम विरह.. आशा निराशा के हिंडोले में झूलती कविता मन को छू गई.. सुन्दर !
आपको एवं आपके परिवार को बसंत पंचमी पर हार्दिक शुभकामनाएं.
सादर
समीर लाल
http://udantashtari.blogspot.com/
अद्भुत रचना !
बहुत ही खूबसूरती से विरह को कलमबद्ध किया हैँ ।
बहुत बहुत आभार वन्दना जी ।
सुन्दर ! बहुत ही सुन्दर !!
बहुत अच्छी लगी आप की ये रचना ...
श्री अजय कुमारजी झा से पुरी तरह सम्मत.
बसंतपंचमी की शुभकामनाओं सहित...
bahut sunder rachna hai ....
इस कविता में नागर जीवन की जटिलता, आपाधापी, संग्राम और इन सबसे अलग उम्मीद और आंकाक्षाओं की अपरंपार दुनिया है ।
बहुत ही सुन्दर भावों का बखूबी चित्रण बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं !
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं.
बहुत सुंदर संवेदनशील भाव समेटे हैं वंदना जी ...........बसंतोत्सव की शुभकामनायें
मन को छूती कविता | बधाई
आशा
basanti mausam ki basanti rachna!
kamaal ka likha hai aapne
माँ सरस्वती को नमन........बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनायें आपको भी......
'Sakaar ko pane ki tuchch lalsa'
nahi nahi Vandanaji sakar ko pane ki lalsa to atiuttam lalsa hai.
Aap ka bhav jagat anupam hai,abhivayakti dil ko chooti hai
सुन्दर प्रस्तुति !
'कैसे मन में बसंत हो '
जीवन की कशमकश और विसंगतियों को चित्रित करती बहुत ही प्रभावशाली भावपूर्ण रचना...
आभार !
बसंत पर सुन्दर प्रस्तुति
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं
ise bhi bhejo collection ke liye , bahutbahut bahut hi pyaari kavita , tumhe pata hai , jab tum bahut saare shabdo ka use nahi karti ho to kavita sundar ban jaati hai .. this is your speciality... ab gurugyaan ke liye kuch rupaye bhej do .
anyway , one of your best love poems.. i will say that it is a collage of words, expressions , and mental images.
very good
thanks
vijay
kaise man me basant ho ...achchi prastuti.
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