मैं
दर्द में घुली इक नज़्म बनी होती
हर हर्फ़ में दर्द की ताबीर होती
कुछ तो लहू- सा दर्द रिसा होता
हर्फों के पोर- पोर से तो
और हर पोर हरा बना होता
असीम अनुभूत वेदना का
साक्षात्कार किया होता
तो शायद दर्द भी
पनाह मांग बैठा होता
दर्द के आगोश में मैं क्या
दर्द ही मेरे आगोश में
सिमट गया होता
कुछ तो दर्द को भी
सुकून मिल गया होता
मेरे दर्द की जिंदा लाश पर
कुछ देर दर्द भी जी लिया होता
15 टिप्पणियां:
drd ke chaahat kaa pehli baar aesaa ajb andaaz dekhaa he mubark ho . akhtar khan akela kota rajsthan
'तो शायद दर्द भी
पनाह मांग बैठा होता
दर्द के आगोश में मैं क्या
दर्द ही मेरे आगोश में
सिमट गया होता '
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गहन भावानुभूति की सुन्दर अभिव्यक्ति
मैं नीरभरी।
दर्द को बयां करती दर्द में ही घुली बेहतरीन रचना...मै दर्द में घुली इक नज्म होती...क्या बात है..तब तो हर नज्म ही दर्द की दास्ता कहती....बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति.....धन्यवाद।
बहुत बढ़िया!
सादर
'...कुछ देर दर्द भी जी लिया होता...'
बेहतरीन अभिव्यक्ति।
शुभकामनाएं आपको।
आप मेरे ब्लाग में आकर इस दिलचस्प रपट को पढिए। आपके कमेंट के इंतजार में,
http://atulshrivastavaa.blogspot.com/2011/03/blog-post_26.html
मैं दर्द में घुली इक नज़्म बनी होती
हर हर्फ़ में दर्द की ताबीर होती ..
बहुत दर्दीली सी नज़्म ...कहीं न कहीं हर रचना में दर्द ज़रूर होता है ...हर्फ़ दर हर्फ़ दर्द की ताबीर मत बनिए ..
वंदना जी ,
दर्द की अद्भुत अभिव्यक्ति। वाह !
वंदना जी,
उर्दू का खुबसुरत इस्तेमाल हुआ.....पर शायद और अच्छा लगता गर पूरी पोस्ट एक ही ले में बंध जाती........सराहनीय
बहुत दर्द भरी रचना ! हमें भी दर्द की गिरफ्त में लपेट बैठी ! खूबसूरत प्रस्तुति के लिये बधाई स्वीकार करें !
Sundar rchana !bhavnaa myi abhivykti !
दर्द के आगोश में मैं क्या
दर्द ही मेरे आगोश में
सिमट गया होता...
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
शुभकामनायें !
अब तो दर्द को भी दर्द होने लगा...
मार्मिक अभिव्यक्ति की पराकाष्ठा
दर्द में डूबी इस रचना के लिए साधुवाद स्वीकारें...
नीरज
बहुत ही मार्मिक और अद्भुत अभिव्यक्ति !
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