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बुधवार, 4 मई 2011

कँवल ऐसे भी खिलाये जाते हैं .............

नहीं सजाती आस्मां को दरख़्त पर
नहीं बोती अरमानों के बीज मिटटी में
नहीं देखती वक्त की परछाइयाँ किताबों में
नहीं मुडती कोई राह अब अंधेरों में
ना ही गुजरे कल की संदुकची खोलती हूँ
...ना ही आने वाले कल के लिए
अरमानों के शामियाने टंगवाती हूँ
अब ना कल के सफ़हे पलटती हूँ
ना ही कल के आगमन में
ख्यालों के दीप जलाती हूँ
अब ना विगत का अफ़सोस
ना आगत का दुःख
सीख लिया है जीना मैंने वर्तमान में
कँवल ऐसे भी खिलाये जाते हैं .............

40 टिप्‍पणियां:

Rajeysha ने कहा…

बहुत ही खुशनसीब हैं वो लोग जो वर्तमान में रह सकने का हौसला और समझ रखते हैं।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

'सीख लिया है जीना मैंने वर्तमान में '

.............................यही तो जिंदगी जीने का असल सलीका है |

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह ! वंदना जी,
इस कविता का तो जवाब नहीं !
विचारों के इतनी गहन अनुभूतियों को सटीक शब्द देना सबके बस की बात नहीं है !

Ashutosh Pandey ने कहा…

ना जाने क्यों आपकी श्रेष्ठ रचनाओं पर कमेन्ट नहीं आते,
नहीं सजाती आस्मां को दरख़्त पर ( भावनाओं का चित्रण)
नहीं बोती अरमानों के बीज मिटटी में ( सपनों का सच )
नहीं देखती वक्त की परछाइयाँ किताबों में (भविष्य का संकलन)
नहीं मुडती कोई राह अब अंधेरों में (आशा जीवन और अस्तित्व की)
ना ही गुजरे कल की संदुकची खोलती हूँ (अतीत का डर )
ना ही आने वाले कल के लिए ( जीवन की दुविधा के लिए तैयारी)
अरमानों के शामियाने टंगवाती हूँ ( अब बहुत हो गया)
अब ना कल के सफ़हे पलटती हूँ (क्या था कल में?)
ना ही कल के आगमन में (क्या होगा कल में?)
ख्यालों के दीप जलाती हूँ (सपनों सिर्फ सपने हैं, हकीकत जुदा होती है)
अब ना विगत का अफ़सोस ( जो था नहीं वो रहा नहीं)
ना आगत का दुःख ( जो आएगा कब तक रहेगा)
सीख लिया है जीना मैंने वर्तमान में (जीना तो पड़ेगा)
कँवल ऐसे भी खिलाये जाते हैं ............(ऐसे ही जिया जाता है )
इस कविता की हर पंक्ति पर मेरा कमेन्ट....... अगर कोई कहता है छायावाद के बाद इससे श्रेष्ठ रचनाएँ हुईं है तो कृपा कर बताएं जरूर.

Ashutosh Pandey ने कहा…

जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, मैथिली शरण गुप्त, सुमित्रानंदन पन्त और वंदना गुप्ता को पढ़िए, पता चल जाएगा की सूक्ष्मता कहाँ से आई, ये कमाल आपका है, लेकिन (आप कह देतीं हैं मुझे कुछ पता नहीं बस मन में आया लिख दिया) ये उस स्तर की रचना है................ श्रेष्ठ और सुन्दरतम चीज से तो आँख हटाये न हटे.में खुद अपने इन शब्दों के लिए गर्वित महसूस कर रहा हूँ की ये एक सार्थक और श्रेष्ठ रचना के लिए हैं.

रजनीश तिवारी ने कहा…

Vaah ..bahut hi sundar rachna ! vartman me jeena har kisi ko nahin aata ! badhai avm shubhkamnaen !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ख्यालों के दीप जलाती हूँ
अब ना विगत का अफ़सोस
ना आगत का दुःख
सीख लिया है जीना मैंने वर्तमान में
कँवल ऐसे भी खिलाये जाते हैं ............
--
बहुत सुन्दर और सार्थक अभिव्यक्ति!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सीख लिया है जीना मैंने वर्तमान में
कँवल ऐसे भी खिलाये जाते हैं .

वाह ...बहुत सुन्दर ...विगत और आगत के दुःख से परे ... सुन्दर अभिव्यक्ति

Unknown ने कहा…

सीख लिया है जीना वर्तमान में
कँवल ऐसे भी खिलाये जाते हैं....
बहुत सकारात्मक.

दुनाली पर देखें
बेटे की नज़र में क्रूर था लादेन

Shah Nawaz ने कहा…

बेहतरीन अभिव्यक्ति!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कमल वर्तमान पर ध्यान देने से ही खिलते हैं।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

नए नए विम्बो से रची आपकी रचना आज कल ब्लॉग जगत की आकर्षण हैं.. यह कविता भी प्रेम, जीवन, सफलता आदि का सूक्षमता से परिभाषित कर रही हैं.. कमल का विम्ब अदभुद बना है.. सादर

PAWAN VIJAY ने कहा…

जीवन दर्शन के साथ बिम्बों का खूबसूरत प्रस्तुतीकरण
आभार

सदा ने कहा…

'सीख लिया है जीना मैंने वर्तमान में '
बहुत ही खूबसूरती से व्‍यक्‍त किया है हर भाव को

बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

bhtrin rchna ke liyen bdhaai . akhtar khan akela kota rajthan

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

bhtrin rchna ke liyen bdhaai . akhtar khan akela kota rajthan

वाणी गीत ने कहा…

जब वर्तमान में जीना सीख जाते हैं , तो हर मुश्किल आसान लगने लगती है ...
जीवन जीने का सही तरीका यही है ..!

Udan Tashtari ने कहा…

यही तरीका है...वाह! बेहतरीन.

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

kaash aise kuchh kanwal ham bhi khilana seekh jate..:)

behtareen!

Unknown ने कहा…

वर्तमान के सच को उजागर करती, सोचने को विवश करती रचना!!

शानदार अभिव्यक्ति
___________________________________

निरामिष: अहिंसा का शुभारंभ आहार से, अहिंसक आहार शाकाहार से

रश्मि प्रभा... ने कहा…

अब ना विगत का अफ़सोस
ना आगत का दुःख
सीख लिया है जीना मैंने वर्तमान में... ab zarur kuch mayne khud milenge

Amit Chandra ने कहा…

वर्तमान में जीना अच्छी बात है पर वास्तव में क्या ऐसा हो पाता है।

ZEAL ने कहा…

.

सीख लिया है जीना मैंने वर्तमान में
कँवल ऐसे भी खिलाये जाते हैं ...

Very inspiring creation Vandana ji .

And also I agree with Ashutosh ji.

.

Kunwar Kusumesh ने कहा…

कविता में आशावादी दृष्टीकोण अच्छा लगा.

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

आज को जी लिया जाय इससे अच्छा क्या हो सकता है..... बेहतरीन रचना

राज भाटिय़ा ने कहा…

सीख लिया है जीना वर्तमान में
कँवल ऐसे भी खिलाये जाते हैं....
बहुत सुंदर प्रसुतित

udaya veer singh ने कहा…

appreciable creation , extreme sense of
self inspection.thanks

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत सुंदर रचना .....यथार्थ से भरी और जीवन मार्ग दर्शन करती हुई ...!!
बधाई आपको वंदना जी ...!!
kawal aise hi khilaye jatey hain ..!!

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत अच्छी सोच को जगाती हुई कविता, वैसे वर्त्तमान ही यथार्थ है उसको अच्छे से जी लेना ही एक अविस्मरनीय अतीत और सुखद भविष्य की कल्पना को साकार करने में सक्षम है.

मनोज कुमार ने कहा…

जिस व्‍यक्ति ने वर्तमान में जीना सीख लिया है वह अत्‍यन्‍त भाग्‍यशाली है।

pragya ने कहा…

वन्दना जी..बहुत ही ख़ूबसूरत रचना है..इन भावनाओं को बहुत बेहतरीन व प्रभावशाली तरीके से शब्द दिया है आपने....

मेरे भाव ने कहा…

Be practical. sukhi jeewan ka fanda.

मनोज अबोध ने कहा…

आपकी रचना देखी, आपका ब्‍लॉग भी देखा, बधाई ।

आनंद ने कहा…

वंदना जी जी जीना आपने सीख लिया है....सायद सुगमता से जीना सीखा है आपने...
....
नहीं मुडती कोई राह अब अंधेरों में
ना ही गुजरे कल की संदुकची खोलती हूँ
...ना ही आने वाले कल के लिए
अरमानों के शामियाने टंगवाती हूँ..............
बहुत से लोग सहमत होंगे आपसे कि वाह वर्तमान में जीना कितना मुस्किल है....इत्यादि...मगर इस अकिंचन की नजर में आपने घाटे का सौदा किया है..

कुमार संतोष ने कहा…

waah kya baat hai main aapko facebook par bhi follow karta hoon magar comments nahi kar pata

Coral ने कहा…

सीख लिया है जीना मैंने वर्तमान में...पर बहुत मुश्किल है

मोहसिन रिक्शावाला
आज कल व्यस्त हू -- I'm so busy now a days-रिमझिम

Rakesh Kumar ने कहा…

बहुत सुन्दर अनुपम शानदार.दिल खुश हों गया.
"अब ना विगत का अफ़सोस
ना आगत का दुःख
सीख लिया है जीना मैंने वर्तमान में
कँवल ऐसे भी खिलाये जाते हैं "

नई पोस्ट जारी की है.अपने सुविचारों से आनंद की वृष्टि कीजियेगा मेरे ब्लॉग पर आकर.

Rachana ने कहा…

vartman me rahana bhagya ki baat hai
sunder likha hai
badhai
rachana

virendra sharma ने कहा…

haan !kanval aise bhi khilaaye jaaten hain !vartmaan me maine jeenaa seekhliyaa hai .
kanval to saanjh hone pe vaise bhi murjhaa jaaten hain .
sooraj mukhi kee maanind hai jivan !
"jo naa jeevan kee gat pe gaaye use nahin jeene kaa hak hai ."
veerubhai .

अविनाश मिश्र ने कहा…

अब ना विगत का अफ़सोस
ना आगत का दुःख
सीख लिया है जीना मैंने वर्तमान में
कँवल ऐसे भी खिलाये जाते हैं .............
वाह बहुत ही सुन्दर ! हमेशा की तरह

बधाई