जीकर बहुत देख लिया
कुछ मर कर देखा जाये
इक बार मौत को भी
गले लगाकर हंसाया जाये
कुछ मर कर देखा जाये
इक बार मौत को भी
गले लगाकर हंसाया जाये
डर गये क्या मौत की तस्वीर देख
देख हम तो रोज मुलाकात करते हैं
हम हँसे ना हँसे गम नही मगर
मौत को रोज़ हँसाया करते हैं
जीने का क़र्ज़ उतार चुके अब
मौत जो हमदर्द है अपनी, गले लगा
कुछ उसका भी क़र्ज़ चुकाया जाये
आ आज मौत को भी
कुछ पल के लिए हंसाया जाये
36 टिप्पणियां:
जीकर बहुत देख लिया
कुछ मर कर देखा जाये
इक बार मौत को भी
गले लगाकर हंसाया जाये..
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पैदा होने पर लोग खुख होते हैं और आन् वाला रोता है!
मरने पर लोग रोते हैं और जाने वाला मुक्त हो जाता है! एकदम शान्त!
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सुन्दर रचना!
"मौत जो हमदर्द है अपनी, गले लगा
कुछ उसका भी क़र्ज़ चुकाया जाये"
क्या बात कही आपने.बहुत ही बढ़िया.
सादर
आपका कलाम पढ़कर याद आया एक शेर :
शहर में देखो जिसे ख़ौफ़ज़दा लगता है
फूल भी कोई बढ़ाए तो छुरा लगता है
हर मुसीबत से यह इक पल में छुड़ा देती है
मौत का नाम बज़ाहिर तो बुरा लगता है
http://mushayera.blogspot.com/2011/05/ghazal.html
vaah zindgi kaa mot se itnaa khubsurat milaan bhtrin andaaz hai bdhaai ho. akhtar khan akela kota rajsthan
गहन रचना ...
जीकर बहुत देख लिया
कुछ मर कर देखा जाये
इक बार मौत को भी
गले लगाकर हंसाया जाये..
बहुत ही बढ़िया.
हम हँसे ना हँसे गम नही मगर
मौत को रोज़ हँसाया करते हैं
भावपूर्ण रचना ...
जी कर यहाँ जी भर गया
दिल अब तो मरने का ढूंढे बहाना .....
बहुत सुन्दर कविता..मगर ये निराशा क्यूँ??
bahut hi khoobsurat bhaav... Behtreen Rachna!!!
जीकर बहुत देख लिया
कुछ मर कर देखा जाये
इक बार मौत को भी
गले लगाकर हंसाया जाये..
बहुत ही सुन्दर रचना.
bahut khub...akele hai akele hi rahege...
jiye jo akele hai ...
tho marege bhi akele hi
ज़िन्दगी का उधार किश्तों में चुकाकर
जीने का क़र्ज़ उतार चुके अब
मौत जो हमदर्द है अपनी, गले लगा
कुछ उसका भी क़र्ज़ चुकाया जाये
बहुत सुंदर जिंदगी और मोत्त की कसमकश
इक बार मौत को भी
गले लगाकर हंसाया जाये..
बहुत ही बढ़िया....
मौत का अहसास सबको शांति नहीं देता , वो और होते हैं जो उसमें शांति पाते हैं और खुद भी हँस कर उसको हंसते हैं.
मौत तो जीवन से मुक्ति का नाम है जीवन से भागने का नहीं .
मौत तो जीवन से मुक्ति का नाम है जीवन से भागने का नहीं .
वंदनाजी लगता है आजकल बहुत हँसने लगीं हैंआप
हँसतें हँसते मौत को भी हंसाने लगीं है आप
आपकी जिन्दा दिली को देते हैं हम दाद
हम भी अब हँसते रहेंगें मरने के भी बाद
अब क्या इरादा है ?
मरने के बाद भी ब्लोगिंग का ही वादा है न ?
आत्मा तो अजर है अमर है
फिर मार किसको रहीं हैं,वंदनाजी
शरीर तो आत्मा का वस्त्र है
हम सब मौत से क्यूँ त्रस्त हैं.
पुराना छोडेंगें,नया पह्नेंगें
मौत का रोना ,अब हँस के ही छोडेंगें.
जीकर बहुत देख लिया
कुछ मर कर देखा जाये
इक बार मौत को भी
गले लगाकर हंसाया जाये...ek baar chalo ye bhi karke dekhte hai...
सटीक रचना। जिदंगी तो एक दिन खत्म होनी है। फिर भी हम उसी के पीछे भागते है। मौत एक शाश्वत सत्य है फिर भी हम उससे दुर भागने की कोशीश करते है।
ज़िन्दगी और मौत पर स्व. नरेश कुमार 'शाद' की अभीव्यक्ति कुछ इस तरह थी:
"ज़िन्दगी के दमकते शोअले को,
कोई झोंका बुझा नही सकता,
आदमी इरतिका का शहजादा,
मौत से मात ख़ा नही सकता."
आपका अंदाज़ भी ज्पसंद आया.
http://aatm-manthan.com
जीवन तो ऐसा हो कि मौत सकुचाये।
विचारों का मंथन!
काव्यात्मक अभिव्यक्ति सुंदर!
मौत को हँसाने की परिकल्पना .. बहुत खूब
जिंदगी तो बेवफा है, एक दिन ठुकराएगी
मौत महबूबा है;अपने साथ लेकर जाएगी.....सुन्दर, सादर......
मरते रहे तमाम उम्र
चलो कुछ जीकर देखा जाये
"कुछ मर कर देखा जाये" पलायनवाद की तरफ इशारा करता है.
वैसे जीवन-मरण ईश्वर के हाथ में है.
मौत को भी हंसाया जाय /बहुत अच्छी रचना /मौत तो एक सच है /जिंदगी के बीच मौत का आहवान क्यों /ये निराशा क्यों /जीवन तो एक वरदान है उसको हंसके जिओ./जब मौत लेने आये तब भी हंस के जाने की हिम्मत हो तो क्या बात है /बधाई आपको
please visit my blog and leave the comments also.thanks
अच्छी रचना ,पर ये अच्छी बात नहीं
मौत जो हमदर्द है अपनी, गले लगा
कुछ उसका भी क़र्ज़ चुकाया जाये
क्या बात है....एकदम अलग अंदाज़....
सुन्दर कविता
जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जिसको जीना आ गया वही मरना भी जानता है, सुंदर रचना !
ज़िन्दगी का उधार किश्तों में चुकाकर
जीने का क़र्ज़ उतार चुके अब
मौत जो हमदर्द है अपनी, गले लगा
कुछ उसका भी क़र्ज़ चुकाया जाये...
बहुत सुन्दर..मौत को हमेशा याद रख के ही जिया जा सकता है..सुन्दर रचना..
बहुत सुंदर रचना, एक जीवन का सच...
bahut accha likha aapne
maut to aayegi hi
par ye intezaar vyarth na jaaye isliye zindagi ko gale lagana hoga tab tak...jod lagana hoga
यह रचना बहुत कुछ सन्देश दे रही है ....बधाई बढ़िया रचना शैली के लिए ...आभार
कुछ विचार ये भी करना चाहिए कि आखिर मौत ओर जन्म का चकरव्यूह क्यू घूम फिर के आता है कब तक चलेगा ऐसे इस आत्मा का जो हे घर असली और उसके असली घर पहुंचने का मगसद ये सोचा जाए क्यू दर्द से गुजरती है ये जिन्दगी बार बार लिवास पहने आती है जमी पर
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