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शनिवार, 14 मई 2011

कुछ मर कर देखा जाये

 जीकर बहुत देख लिया
कुछ मर कर देखा जाये
इक बार मौत को भी
गले लगाकर हंसाया जाये

डर गये क्या मौत की तस्वीर देख
देख हम तो रोज मुलाकात करते हैं
हम हँसे ना हँसे गम नही मगर
मौत को रोज़ हँसाया करते हैं


ज़िन्दगी का उधार किश्तों में चुकाकर
जीने का क़र्ज़ उतार चुके अब
मौत जो हमदर्द है अपनी, गले लगा
 कुछ उसका भी क़र्ज़ चुकाया जाये



आ आज मौत को भी 
कुछ पल के लिए हंसाया जाये

36 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जीकर बहुत देख लिया
कुछ मर कर देखा जाये
इक बार मौत को भी
गले लगाकर हंसाया जाये..
--
पैदा होने पर लोग खुख होते हैं और आन् वाला रोता है!
मरने पर लोग रोते हैं और जाने वाला मुक्त हो जाता है! एकदम शान्त!
--
सुन्दर रचना!

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

"मौत जो हमदर्द है अपनी, गले लगा
कुछ उसका भी क़र्ज़ चुकाया जाये"

क्या बात कही आपने.बहुत ही बढ़िया.

सादर

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

आपका कलाम पढ़कर याद आया एक शेर :

शहर में देखो जिसे ख़ौफ़ज़दा लगता है
फूल भी कोई बढ़ाए तो छुरा लगता है

हर मुसीबत से यह इक पल में छुड़ा देती है
मौत का नाम बज़ाहिर तो बुरा लगता है

http://mushayera.blogspot.com/2011/05/ghazal.html

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

vaah zindgi kaa mot se itnaa khubsurat milaan bhtrin andaaz hai bdhaai ho. akhtar khan akela kota rajsthan

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

गहन रचना ...

कुमार संतोष ने कहा…

जीकर बहुत देख लिया
कुछ मर कर देखा जाये
इक बार मौत को भी
गले लगाकर हंसाया जाये..


बहुत ही बढ़िया.

रजनीश तिवारी ने कहा…

हम हँसे ना हँसे गम नही मगर
मौत को रोज़ हँसाया करते हैं
भावपूर्ण रचना ...

आशुतोष की कलम ने कहा…

जी कर यहाँ जी भर गया
दिल अब तो मरने का ढूंढे बहाना .....
बहुत सुन्दर कविता..मगर ये निराशा क्यूँ??

Shah Nawaz ने कहा…

bahut hi khoobsurat bhaav... Behtreen Rachna!!!

Unknown ने कहा…

जीकर बहुत देख लिया
कुछ मर कर देखा जाये
इक बार मौत को भी
गले लगाकर हंसाया जाये..

बहुत ही सुन्दर रचना.

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

bahut khub...akele hai akele hi rahege...
jiye jo akele hai ...
tho marege bhi akele hi

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

ज़िन्दगी का उधार किश्तों में चुकाकर
जीने का क़र्ज़ उतार चुके अब
मौत जो हमदर्द है अपनी, गले लगा
कुछ उसका भी क़र्ज़ चुकाया जाये

बहुत सुंदर जिंदगी और मोत्त की कसमकश

Sunil Kumar ने कहा…

इक बार मौत को भी
गले लगाकर हंसाया जाये..
बहुत ही बढ़िया....

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

मौत का अहसास सबको शांति नहीं देता , वो और होते हैं जो उसमें शांति पाते हैं और खुद भी हँस कर उसको हंसते हैं.

रेखा ने कहा…

मौत तो जीवन से मुक्ति का नाम है जीवन से भागने का नहीं .

रेखा ने कहा…

मौत तो जीवन से मुक्ति का नाम है जीवन से भागने का नहीं .

Rakesh Kumar ने कहा…

वंदनाजी लगता है आजकल बहुत हँसने लगीं हैंआप
हँसतें हँसते मौत को भी हंसाने लगीं है आप
आपकी जिन्दा दिली को देते हैं हम दाद
हम भी अब हँसते रहेंगें मरने के भी बाद
अब क्या इरादा है ?
मरने के बाद भी ब्लोगिंग का ही वादा है न ?

Rakesh Kumar ने कहा…

आत्मा तो अजर है अमर है
फिर मार किसको रहीं हैं,वंदनाजी

शरीर तो आत्मा का वस्त्र है
हम सब मौत से क्यूँ त्रस्त हैं.
पुराना छोडेंगें,नया पह्नेंगें
मौत का रोना ,अब हँस के ही छोडेंगें.

विभूति" ने कहा…

जीकर बहुत देख लिया
कुछ मर कर देखा जाये
इक बार मौत को भी
गले लगाकर हंसाया जाये...ek baar chalo ye bhi karke dekhte hai...

Amit Chandra ने कहा…

सटीक रचना। जिदंगी तो एक दिन खत्म होनी है। फिर भी हम उसी के पीछे भागते है। मौत एक शाश्वत सत्य है फिर भी हम उससे दुर भागने की कोशीश करते है।

Mansoor ali Hashmi ने कहा…

ज़िन्दगी और मौत पर स्व. नरेश कुमार 'शाद' की अभीव्यक्ति कुछ इस तरह थी:

"ज़िन्दगी के दमकते शोअले को,
कोई झोंका बुझा नही सकता,
आदमी इरतिका का शहजादा,
मौत से मात ख़ा नही सकता."

आपका अंदाज़ भी ज्पसंद आया.

http://aatm-manthan.com

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

जीवन तो ऐसा हो कि मौत सकुचाये।

मनोज कुमार ने कहा…

विचारों का मंथन!
काव्यात्मक अभिव्यक्ति सुंदर!

M VERMA ने कहा…

मौत को हँसाने की परिकल्पना .. बहुत खूब

Ragini ने कहा…

जिंदगी तो बेवफा है, एक दिन ठुकराएगी
मौत महबूबा है;अपने साथ लेकर जाएगी.....सुन्दर, सादर......

रश्मि प्रभा... ने कहा…

मरते रहे तमाम उम्र
चलो कुछ जीकर देखा जाये

Kunwar Kusumesh ने कहा…

"कुछ मर कर देखा जाये" पलायनवाद की तरफ इशारा करता है.
वैसे जीवन-मरण ईश्वर के हाथ में है.

prerna argal ने कहा…

मौत को भी हंसाया जाय /बहुत अच्छी रचना /मौत तो एक सच है /जिंदगी के बीच मौत का आहवान क्यों /ये निराशा क्यों /जीवन तो एक वरदान है उसको हंसके जिओ./जब मौत लेने आये तब भी हंस के जाने की हिम्मत हो तो क्या बात है /बधाई आपको


please visit my blog and leave the comments also.thanks

अजय कुमार ने कहा…

अच्छी रचना ,पर ये अच्छी बात नहीं

rashmi ravija ने कहा…

मौत जो हमदर्द है अपनी, गले लगा
कुछ उसका भी क़र्ज़ चुकाया जाये

क्या बात है....एकदम अलग अंदाज़....
सुन्दर कविता

Anita ने कहा…

जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं जिसको जीना आ गया वही मरना भी जानता है, सुंदर रचना !

Kailash Sharma ने कहा…

ज़िन्दगी का उधार किश्तों में चुकाकर
जीने का क़र्ज़ उतार चुके अब
मौत जो हमदर्द है अपनी, गले लगा
कुछ उसका भी क़र्ज़ चुकाया जाये...

बहुत सुन्दर..मौत को हमेशा याद रख के ही जिया जा सकता है..सुन्दर रचना..

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत सुंदर रचना, एक जीवन का सच...

नीलांश ने कहा…

bahut accha likha aapne

maut to aayegi hi
par ye intezaar vyarth na jaaye isliye zindagi ko gale lagana hoga tab tak...jod lagana hoga

समयचक्र ने कहा…

यह रचना बहुत कुछ सन्देश दे रही है ....बधाई बढ़िया रचना शैली के लिए ...आभार

Vinsa ने कहा…

कुछ विचार ये भी करना चाहिए कि आखिर मौत ओर जन्म का चकरव्यूह क्यू घूम फिर के आता है कब तक चलेगा ऐसे इस आत्मा का जो हे घर असली और उसके असली घर पहुंचने का मगसद ये सोचा जाए क्यू दर्द से गुजरती है ये जिन्दगी बार बार लिवास पहने आती है जमी पर