पेज

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लॉग से कोई भी पोस्ट कहीं न लगाई जाये और न ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जाये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

रविवार, 8 मई 2011

माँ …………मुझे तुझमे इक बच्चा नज़र आता है

माँ 
आजकल मुझे तुझमे
इक बच्चा  नज़र आता है
आजकल बच्चे का 
प्रतिरूप दिखती है मुझे 
वो ही सब तो 
करती हो तुम भी
देखो न
तुम्हारे शब्द 
तुतलाने लगे हैं
तुम्हारी भाषा 
अस्पष्ट हो गयी है
और मैं उसे
समझने के प्रयास में
उसके अर्थ ढूंढती हूँ
बिलकुल उस तरह
जिस तरह शिशु की 
भाषा उसकी माँ के लिए
पहेली होती है
मगर फिर भी वो
समझने का 
प्रयास करती है

बच्चे के लिए 
उसका अच्छा बुरा 
माँ ही समझती है
कुछ ऐसे ही 
तुम्हारी बहुत सी बातें
जो तुम्हारे लिए 
सही नहीं होतीं
मुझे छोडनी पड़ती हैं
तुम्हारे मन का 
नहीं कर सकती 
तुम्हारी सेहत की
चिंता है मुझे
मगर कह नहीं सकती 
और रोकना पड़ता है तुम्हें
तब बहुत सालता है
मेरे मन को 
मगर जो बच्चे के लिए
अच्छा होता है
वो ही तो माँ करती है 
बस वैसे ही मुझे
तुझे सहेजना पड़ता है
मगर माँ तो नहीं
बन सकती न
इसलिए कुछ 
मानना भी पड़ता है
कुछ अनसुना 
करना पड़ता है

शिशु कैसे
खुद -ब-खुद 
बोलता रहता है
न जाने क्या- क्या 
और कभी - कभी 
एक ही बात को
बार - बार दोहराता है
मगर उसे सुनकर
माँ खुश होती है
मगर माँ 
जब तुम ऐसा करती हो
तब कभी - कभी मैं
परेशान हो जाती हूँ
तुमसे कुछ 
कह नहीं पाती हूँ
इसलिए कहती हूँ 
माँ नहीं बन पाती हूँ
बेटी हूँ न 
माँ नहीं बन सकती 
लेकिन फिर भी 
मुझे तुझमे
इक बच्चा नज़र आता है      

43 टिप्‍पणियां:

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

बहुत सुन्दर ,भावपूर्ण रचना..........

बुज़ुर्ग और बच्चों की शारीरिक और मानसिक स्थिति लगभग एक जैसी होती है | दोनों को एक जैसे देखभाल और प्यार की जरूरत होती है |

Rakesh Kumar ने कहा…

अनुपम,उत्कृष्ट,भावभीनी प्रस्तुति.
माँ तो आप हैं हीं वंदनाजी.
आपके हृदय से निकले उद्गार दिल को छूते हैं.
आपके मातृत्व को प्रणाम.

Dr Varsha Singh ने कहा…

Very nice...Very Touching...

Unknown ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ती के लिए बधाई.

मेरे ब्लॉग दुनाली पर देखें-
मैं तुझसे हूँ, माँ

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रेम उम्र के परे हृदय देखता है।

राजेश उत्‍साही ने कहा…

मां और बेटी के अनोखे रिश्‍ते की अभिव्‍यक्ति। बेहतर है।

रश्मि प्रभा... ने कहा…

माँ जब तुम ऐसा करती होतब कभी - कभी मैंपरेशान हो जाती हूँ तुमसे कुछ कह नहीं पाती हूँइसलिए कहती हूँ माँ नहीं बन पाती हूँबेटी हूँ न माँ नहीं बन सकती लेकिन फिर भी मुझे तुझमेइक बच्चा नज़र आता है .... bilkul sach kaha tumne

बेनामी ने कहा…

bahut khoob likha aapane

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

बेहद संवेदनशील रचना... माँ और बेटी के भावुक और मधुर रिश्ते को और भी मधुरता से अभिव्यक्त करती.. एक समसामयिक रचना...

Narendra Vyas ने कहा…

दिल से निकली एक बेहद भावमयी अभिव्यक्ति! इस अप्रतिम रचना के रूप में 'माँ' और 'बेटी' के भावनात्मक सम्प्रेषण की बेहद संवेदनशील और अनुपन कृति के लिए आपका आभार और बधाई सम्मानिया वंदना जी ! माँ को नमन !

रजनीश तिवारी ने कहा…

bahut bhavpoorn, marmsparshi, sundar rachna ! shubhkamnaen !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना!
मातृदिवस की बहुत बहुत शुभकामनाएँ!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत संवेदनशील रचना ..एक उम्र के बाद बुजुर्ग बच्चे ही बन जाते हैं ...माँ के प्रति बेटी की भावनाओं को सशक्त शब्द दिए हैं ..

nilesh mathur ने कहा…

बहुत सुन्दर, बेहतरीन अभिव्यक्ति!

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा आपने.

सादर

विभूति" ने कहा…

bilkul such kaha apne,... bhut touching lines hai... har ehsaas jo maa ke liye hamare dil me sab kuch shado me dhal diya apne... very nice... happy motherday...

धीरेन्द्र सिंह ने कहा…

माँ के एस अद्भुत रूप में यदि संतान माँ से जुड़ा उनकी संवेदनाओं को ऐसा ही परखता रहे और तदनुसार कार्य करता रहे तो जीवन में इससे महान कार्य और दूसरा क्या हो सकता है. माँ के इस रूप को खूबसूरती से व्यापकतापूर्वक उकेरा गया है.

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत हृदयस्पर्शी पोस्ट ...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

बहुत खूब .. गहरे ज़ज्बात है आपके ... पर माँ बच्चा हो कर भी माँ रहती है ... हमें ही कहीं लगने लगता है की बड़े हो गये हैं ...

शिखा कौशिक ने कहा…

vandna ji bahut sundar likha hai aapne .badhai .

आनंद ने कहा…

अनायास ही आँखें सजल हो उठी...कितनी भावपूर्ण रचना है...वंदना जी..सच में बालक और वृद्ध एक समान ही होते हैं..
"वो होते हैं किस्मत वाले जिनके माँ होती है"

Kavita Prasad ने कहा…

काल चक्र के पन्नों पर उभरती आपकी रचना सुन्दर है|
शुभकामनायें

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बेटी हूँ न
माँ नहीं बन सकती
लेकिन फिर भी
मुझे तुझमे
इक बच्चा नज़र आता है

कमाल की पंक्तियाँ लिखी हैं वंदनाजी ......... बहुत बढ़िया ......

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा अभिव्यक्ति!!


मातृदिवस की शुभकामनाएँ..

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

माँ को प्रणाम!
मातृदिवस पर बहुत सुन्दर रचना लिखी है आपने!
--
बहुत चाव से दूध पिलाती,
बिन मेरे वो रह नहीं पाती,
सीधी सच्ची मेरी माता,
सबसे अच्छी मेरी माता,
ममता से वो मुझे बुलाती,
करती सबसे न्यारी बातें।
खुश होकर करती है अम्मा,
मुझसे कितनी सारी बातें।।
--
http://nicenice-nice.blogspot.com/2011/05/blog-post_08.html

Anupama Tripathi ने कहा…

गहन सोच परिलक्षित करती हुई भावपूर्ण रचना .....!!

monali ने कहा…

Jab maa k andar ka bachcha dhundh lia h to apne andar chhupi unki maa dhundhn eme mujhe nahi lagta k zyada waqt lagega... behad marmsparshi kavita :)

निर्मला कपिला ने कहा…

सुन्दर रचना। माँ बच्ची बन कर ही तो बच्चों को सिखाती है। शुभकामनायें।

वाणी गीत ने कहा…

माँ में भी एक बछि नजर आती है ...
सही कहा ...

rashmi ravija ने कहा…

बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता....
माँ-बेटी के सुन्दर रिश्ते का ख़ूबसूरत विश्लेषण

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" ने कहा…

bahut hi bhaawpurna...

masoomshayer ने कहा…

दिल को छू गया मा का बचपन और बेटी की ममता आज ऐसी ही एक रचना मैने भी पोस्ट की थी उसी भाव को मन में और अच्छी तरह से आप ने जमा दिया आप ने बहुत बहुत अदभुद लिखा है

***Punam*** ने कहा…

वंदनाजी..
सही कहा है.. मेरी माँ भी कुछ ऐसी है
एकदम बच्चे की तरह..
कभी कुछ भूल जाती है.
तो कभी एक ही बात बार-बार दोहराती है !!
इस उम्र की सभी माँओं को सलाम !!

ek anurodh...
AIBA की सदस्यता चाहती हूँ..
आपके सहयोग की प्रार्थी हूँ !!

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुन्दर भावों से सजी पोस्ट.........शानदार.......प्रशंसनीय |

Asha Lata Saxena ने कहा…

बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना बधाई
आशा

Surendra shukla" Bhramar"5 ने कहा…

वंदना जी बहुत सुन्दर एक अलग अंदाज में माँ की शिशु से व्यव्हार की तुलना करते हुए रचना -निम्न पंक्तियों की तरह माँ शिशु में खो जाती है उस के साथ घुटनों पर चलती है तुतलाती है उस सा व्यव्हार कर उस की दोस्त बन जाती है यही तो है ममता उस में खो जाना वंदना जी -

देखो न तुम्हारे शब्द तुतलाने लगे हैंतुम्हारी भाषा अस्पष्ट हो गयी हैऔर मैं उसेसमझने के प्रयास मेंउसके अर्थ ढूंढती हूँ
बधाई हो अति उत्तम रचना
सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५

Anita ने कहा…

आपकी कविता पढ़कर मुझे मेरी सासूजी की स्मृति हो आयी जिनकी हालत बिल्कुल ऐसी ही है सचमुच अब हमें ही माँ बनकर सम्भालना है, सम्भालते भी हैं, लेकिन सदा ऐसा हो नहीं पाता...

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत मर्मस्पर्शी रचना
मातृ दिवस की शुभकामनाएँ...

लक्ष्मी नारायण लहरे "साहिल " ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति हार्दिक बधाई ,ढेर सारी शुभकामनाएं
सादर
लक्ष्मी नारायण लहरे

Parul kanani ने कहा…

man ko choo gayi!

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

कित्ती खूबसूरत है यह रचना..बधाई.



_____________________________
पाखी की दुनिया : आकाशवाणी पर भी गूंजेगी पाखी की मासूम बातें

Rachana ने कहा…

kitni sunder soch hai ki kya kahen
alag si kavita
badhai
rachana

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

नितांत नवीन भावभूमि पर उकेरी गई यह रचना हृदय को दुलराती हुई लगी।