पेज

मेरी अनुमति के बिना मेरे ब्लॉग से कोई भी पोस्ट कहीं न लगाई जाये और न ही मेरे नाम और चित्र का प्रयोग किया जाये

my free copyright

MyFreeCopyright.com Registered & Protected

गुरुवार, 23 जून 2011

पता नही क्यूँ

पता नही क्यूँ किनारा कर जाते हैं लोग
कुछ ऐसे मुझे आजमाते है लोग

जब भी मुझे अपना बनाते है लोग
फिर एक नया दगा दे जाते है लोग

अभी खुशफ़हमियों मे जी भी नही पाती
कि एक नयी हकीकत दिखा जाते है लोग

जिसे भी अपना समझ कदम बढाया मैने
उसी कदम पर ठोकर लगा जाते है लोग

दिल को मेरे खिलौना समझने वाले
रोज वो ही खिलौना तोड जाते है लोग

मै भी सिर्फ़ पत्थर नही एक इंसान हूँ
बस इतना सा ना समझ पाते है लोग

48 टिप्‍पणियां:

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

आज के समय में मानवी रिश्तो पर टिप्पणी है आपकी ग़ज़ल....

रविकर ने कहा…

समझाइये, समझाते रहिये

नासमझों को भी एक दिन समझना पड़ेगा |

गर अक्ल पर पत्थर नहीं पड़े हैं उनके -

तो जाने वाले को भी लौट कर आना पड़ेगा ||

कुमार संतोष ने कहा…

vandana ji bahut hi khoobsurat ghazal hai.
Acchi ghazal ke liye bahut bahut badhai

अशोक सलूजा ने कहा…

वंदना जी ,
ये जिन्दगी की ह्कीकत है ...
जितनी जल्द समझ जायेंगे
उतनी जल्दी संभल जायेगे
वर्ना ऐसे ही करेंगे 'लोग ...

खुश रहें |

मनोज कुमार ने कहा…

नासमझ लोगों को समझाने का काव्यात्मक प्रयास ..!

सदा ने कहा…

बहुत खूब कहा है आपने हर पंक्ति में ..बेहतरीन ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

अभी खुशफ़हमियों मे जी भी नही पाती
कि एक नयी हकीकत दिखा जाते है लोग

आज रिश्ते ही कहाँ रह गए हैं ... मार्मिक अभिव्यक्ति

समयचक्र ने कहा…

मैं भी सिर्फ पत्थर नहीं एक इंसान हूँ .... बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...आभार.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


मैं समय हूँ ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .

रश्मि प्रभा... ने कहा…

जब भी मुझे अपना बनाते है लोग
फिर एक नया दगा दे जाते है लोग
tabhi to chhaachh ko funkker pine kee salah milti hai, niyti ban jati hai

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा!!!

Maheshwari kaneri ने कहा…

ये जिन्दगी की ह्कीकत है ...जिसे समझ नहीं पाते है लोग...

Sunil Kumar ने कहा…

अभी खुशफ़हमियों मे जी भी नही पाती
कि एक नयी हकीकत दिखा जाते है लोग
बहुत खूब ......

Sunil Kumar ने कहा…

अभी खुशफ़हमियों मे जी भी नही पाती
कि एक नयी हकीकत दिखा जाते है लोग
बहुत खूब ......

Vikrant ने कहा…

good one and true...

शारदा अरोरा ने कहा…

jitni ummeed kam ki jaaye ..utna achchha ...sahi kahaa hai aapne ...

shikha varshney ने कहा…

यही हो गया है रिश्तों का हाल .
मार्मिक अभिव्यक्ति.

prerna argal ने कहा…

जिसे भी अपना समझ कदम बढाया मैने
उसी कदम पर ठोकर लगा जाते है लोग

दिल को मेरे खिलौना समझने वाले
रोज वो ही खिलौना तोड जाते है लोग

मै भी सिर्फ़ पत्थर नही एक इंसान हूँ
बस इतना सा ना समझ पाते है लोगyathart batati hui saarthak rachanaa.badhaai sweekaren.


please visit my blog.thanks.

बेनामी ने कहा…

बहुत खुबसूरत ग़ज़ल.......शानदार.........शायद 'दाग' की जगह 'दगा' टाइप कर गयी हैं आप या 'नयी' की जगह 'नया' |

Unknown ने कहा…

वाह वंदना जी बेहतरीन ग़ज़ल.आज का युग यही है "दूसरों को पत्थर करते
कितने पत्थर हो जाते लोग
इंसानों के इस जंगल में
इंसान नहीं बन पते लोग "
आभार सहित बधाई

ana ने कहा…

kamaal ki kashish hai aapki kavita me......uttam rachana

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

मैं भी सिर्फ़ पत्थर नहीं एक इंसान हूँ
बस इतना सा ना समझ पाते हैं लोग.

यथार्थ को जीती हुई अभिव्यक्ति !
खूबसूरत रचना !
आभार !

गिरधारी खंकरियाल ने कहा…

सजग प्रहरी की तरह रहना ही इस अप्रत्याशित व्यवहार की कीमत है

Arunesh c dave ने कहा…

ये जिन्दगी की ह्कीकत है बहुत खूब कहा है आपने

rashmi ravija ने कहा…

बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति

रजनीश तिवारी ने कहा…

बहुत सुंदर गज़ल । ज़िंदगी की सच्चाई बयां करती हुई । मुझे एक और गज़ल के चंद शेर याद आ गए --

जान के सब कुछ भी ना जाने हैं कितने अंजाने लोग
वक्त पे कम नहीं आते हैं ये जाने पहचाने लोग ...

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

आजकल के लोगों की सोच को उद्घाटित करती प्रभावशाली रचना।

लोग अब ऐसे ही हो गए हैं।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

काश लोग इतना ही समझ लेते।

Madhu Tripathi ने कहा…

aapki gajal aapke dard ko saf saf darshati hai
Email tripathi873@gmail.com
BLOG kavyachitra

Madhu Tripathi ने कहा…

jakhmo ko darshana hi chahiye

aapke jakhm saf saf dikhte hai

vandna ji maine kuchh dino se likhna

shuru kiya hai

Email-trpathi873@gmail.com
blog kavyachitra

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी की चर्चा आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!

विभूति" ने कहा…

bhut succhi abhivakti..

रविकर ने कहा…

उच्च कोटि
अनमोल मोती

बहुत-बहुत आभार लिंक ||

नश्तरे एहसास ......... ने कहा…

bahut hi bhaavpurna prastuti....
ek gana yaad aa raha hai thoda modify kar ke----
kuch to log karenge logon ka kaam hai karna,chodo un sab logon ko jinhe na aaye kisi ko samajhna:):)

नश्तरे एहसास ......... ने कहा…

bahut hi bhaavpurna prastuti....
ek gana yaad aa raha hai thoda modify kar ke----
kuch to log karenge logon ka kaam hai karna,chodo un sab logon ko jinhe na aaye kisi ko samajhna:):)

बेनामी ने कहा…

bahut khub vandna ji
bus kehne ko shabd nahi hai mere pass

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत बढिया .. आपके इस पोस्‍ट की चर्चा आज की ब्‍लॉग4वार्ता में की गयी है !!

Atul Shrivastava ने कहा…

रिश्‍तों के उतार चढाव का सुंदर प्रस्‍तुतिकरण

Anupama Tripathi ने कहा…

आपकी किसी पोस्ट की चर्चा होगी शनिवार (25-05-11 ) को नई-पिरानी हलचल पर..रुक जाएँ कुछ पल पर ...! |कृपया पधारें और अपने विचारों से हमें अनुग्रहित करें...!!

Anupama Tripathi ने कहा…

आपकी किसी पोस्ट की चर्चा होगी शनिवार (25-05-11 ) को नई-पिरानी हलचल पर..रुक जाएँ कुछ पल पर ...! |कृपया पधारें और अपने विचारों से हमें अनुग्रहित करें...!!

Urmi ने कहा…

बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी!

नीरज गोस्वामी ने कहा…

लोग हैं ही ऐसे...ऐसे लोगों सिर्फ दुःख ही दिया करते हैं...बेहतरीन रचना...
नीरज

M VERMA ने कहा…

यथार्थमय

Anita ने कहा…

बहुत खूबसूरत गजल और जिंदगी की हकीकत को बयान करती हुई !

Rajiv ने कहा…

"अभी खुशफ़हमियों मे जी भी नही पाती
कि एक नयी हकीकत दिखा जाते है लोग
जिसे भी अपना समझ कदम बढाया मैने
उसी कदम पर ठोकर लगा जाते है लोग"
इस हकीकत से कौन मुंह मोड़ सकता है.साथ निभानेवाले किसी और ही मिटटी के बने होते हैं.आपकी गजल और उसमें पिरोई गयी सच्चाई दोनों से ही मैं इत्तेफाक रखता हूँ,वंदना जी.

वीना श्रीवास्तव ने कहा…

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...

Asha Lata Saxena ने कहा…

"जिसे भी अपना समझ कदम बढ़ाया मैंने -----
रोज वो ही खिलौना तोड़ जाते है लोग "
सुंदर भावों से सजी कविता |
आशा

virendra sharma ने कहा…

Simplicity is the beauty of this verse which communicates and connects with the reader. .