पता नही क्यूँ किनारा कर जाते हैं लोग
कुछ ऐसे मुझे आजमाते है लोग
जब भी मुझे अपना बनाते है लोग
फिर एक नया दगा दे जाते है लोग
अभी खुशफ़हमियों मे जी भी नही पाती
कि एक नयी हकीकत दिखा जाते है लोग
जिसे भी अपना समझ कदम बढाया मैने
उसी कदम पर ठोकर लगा जाते है लोग
दिल को मेरे खिलौना समझने वाले
रोज वो ही खिलौना तोड जाते है लोग
मै भी सिर्फ़ पत्थर नही एक इंसान हूँ
बस इतना सा ना समझ पाते है लोग
कुछ ऐसे मुझे आजमाते है लोग
जब भी मुझे अपना बनाते है लोग
फिर एक नया दगा दे जाते है लोग
अभी खुशफ़हमियों मे जी भी नही पाती
कि एक नयी हकीकत दिखा जाते है लोग
जिसे भी अपना समझ कदम बढाया मैने
उसी कदम पर ठोकर लगा जाते है लोग
दिल को मेरे खिलौना समझने वाले
रोज वो ही खिलौना तोड जाते है लोग
मै भी सिर्फ़ पत्थर नही एक इंसान हूँ
बस इतना सा ना समझ पाते है लोग
48 टिप्पणियां:
आज के समय में मानवी रिश्तो पर टिप्पणी है आपकी ग़ज़ल....
समझाइये, समझाते रहिये
नासमझों को भी एक दिन समझना पड़ेगा |
गर अक्ल पर पत्थर नहीं पड़े हैं उनके -
तो जाने वाले को भी लौट कर आना पड़ेगा ||
vandana ji bahut hi khoobsurat ghazal hai.
Acchi ghazal ke liye bahut bahut badhai
वंदना जी ,
ये जिन्दगी की ह्कीकत है ...
जितनी जल्द समझ जायेंगे
उतनी जल्दी संभल जायेगे
वर्ना ऐसे ही करेंगे 'लोग ...
खुश रहें |
नासमझ लोगों को समझाने का काव्यात्मक प्रयास ..!
बहुत खूब कहा है आपने हर पंक्ति में ..बेहतरीन ।
अभी खुशफ़हमियों मे जी भी नही पाती
कि एक नयी हकीकत दिखा जाते है लोग
आज रिश्ते ही कहाँ रह गए हैं ... मार्मिक अभिव्यक्ति
मैं भी सिर्फ पत्थर नहीं एक इंसान हूँ .... बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...आभार.
आज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
मैं समय हूँ ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .
जब भी मुझे अपना बनाते है लोग
फिर एक नया दगा दे जाते है लोग
tabhi to chhaachh ko funkker pine kee salah milti hai, niyti ban jati hai
बहुत उम्दा!!!
ये जिन्दगी की ह्कीकत है ...जिसे समझ नहीं पाते है लोग...
अभी खुशफ़हमियों मे जी भी नही पाती
कि एक नयी हकीकत दिखा जाते है लोग
बहुत खूब ......
अभी खुशफ़हमियों मे जी भी नही पाती
कि एक नयी हकीकत दिखा जाते है लोग
बहुत खूब ......
good one and true...
jitni ummeed kam ki jaaye ..utna achchha ...sahi kahaa hai aapne ...
यही हो गया है रिश्तों का हाल .
मार्मिक अभिव्यक्ति.
जिसे भी अपना समझ कदम बढाया मैने
उसी कदम पर ठोकर लगा जाते है लोग
दिल को मेरे खिलौना समझने वाले
रोज वो ही खिलौना तोड जाते है लोग
मै भी सिर्फ़ पत्थर नही एक इंसान हूँ
बस इतना सा ना समझ पाते है लोगyathart batati hui saarthak rachanaa.badhaai sweekaren.
please visit my blog.thanks.
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल.......शानदार.........शायद 'दाग' की जगह 'दगा' टाइप कर गयी हैं आप या 'नयी' की जगह 'नया' |
वाह वंदना जी बेहतरीन ग़ज़ल.आज का युग यही है "दूसरों को पत्थर करते
कितने पत्थर हो जाते लोग
इंसानों के इस जंगल में
इंसान नहीं बन पते लोग "
आभार सहित बधाई
kamaal ki kashish hai aapki kavita me......uttam rachana
मैं भी सिर्फ़ पत्थर नहीं एक इंसान हूँ
बस इतना सा ना समझ पाते हैं लोग.
यथार्थ को जीती हुई अभिव्यक्ति !
खूबसूरत रचना !
आभार !
सजग प्रहरी की तरह रहना ही इस अप्रत्याशित व्यवहार की कीमत है
ये जिन्दगी की ह्कीकत है बहुत खूब कहा है आपने
बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर गज़ल । ज़िंदगी की सच्चाई बयां करती हुई । मुझे एक और गज़ल के चंद शेर याद आ गए --
जान के सब कुछ भी ना जाने हैं कितने अंजाने लोग
वक्त पे कम नहीं आते हैं ये जाने पहचाने लोग ...
आजकल के लोगों की सोच को उद्घाटित करती प्रभावशाली रचना।
लोग अब ऐसे ही हो गए हैं।
काश लोग इतना ही समझ लेते।
aapki gajal aapke dard ko saf saf darshati hai
Email tripathi873@gmail.com
BLOG kavyachitra
jakhmo ko darshana hi chahiye
aapke jakhm saf saf dikhte hai
vandna ji maine kuchh dino se likhna
shuru kiya hai
Email-trpathi873@gmail.com
blog kavyachitra
आपकी इस उत्कृष्ट प्रवि्ष्टी की चर्चा आज शुक्रवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
bhut succhi abhivakti..
उच्च कोटि
अनमोल मोती
बहुत-बहुत आभार लिंक ||
bahut hi bhaavpurna prastuti....
ek gana yaad aa raha hai thoda modify kar ke----
kuch to log karenge logon ka kaam hai karna,chodo un sab logon ko jinhe na aaye kisi ko samajhna:):)
bahut hi bhaavpurna prastuti....
ek gana yaad aa raha hai thoda modify kar ke----
kuch to log karenge logon ka kaam hai karna,chodo un sab logon ko jinhe na aaye kisi ko samajhna:):)
bahut khub vandna ji
bus kehne ko shabd nahi hai mere pass
बहुत बढिया .. आपके इस पोस्ट की चर्चा आज की ब्लॉग4वार्ता में की गयी है !!
रिश्तों के उतार चढाव का सुंदर प्रस्तुतिकरण
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा होगी शनिवार (25-05-11 ) को नई-पिरानी हलचल पर..रुक जाएँ कुछ पल पर ...! |कृपया पधारें और अपने विचारों से हमें अनुग्रहित करें...!!
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा होगी शनिवार (25-05-11 ) को नई-पिरानी हलचल पर..रुक जाएँ कुछ पल पर ...! |कृपया पधारें और अपने विचारों से हमें अनुग्रहित करें...!!
बेहद ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना! हर एक पंक्तियाँ दिल को छू गयी!
लोग हैं ही ऐसे...ऐसे लोगों सिर्फ दुःख ही दिया करते हैं...बेहतरीन रचना...
नीरज
यथार्थमय
बहुत खूबसूरत गजल और जिंदगी की हकीकत को बयान करती हुई !
"अभी खुशफ़हमियों मे जी भी नही पाती
कि एक नयी हकीकत दिखा जाते है लोग
जिसे भी अपना समझ कदम बढाया मैने
उसी कदम पर ठोकर लगा जाते है लोग"
इस हकीकत से कौन मुंह मोड़ सकता है.साथ निभानेवाले किसी और ही मिटटी के बने होते हैं.आपकी गजल और उसमें पिरोई गयी सच्चाई दोनों से ही मैं इत्तेफाक रखता हूँ,वंदना जी.
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...
"जिसे भी अपना समझ कदम बढ़ाया मैंने -----
रोज वो ही खिलौना तोड़ जाते है लोग "
सुंदर भावों से सजी कविता |
आशा
Simplicity is the beauty of this verse which communicates and connects with the reader. .
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