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रविवार, 17 जुलाई 2011

देखना है अब नज़ारा

कर दिये बंद सारे दरवाज़े
खिडकियाँ झरोखे
समेट लिया खुद को
अन्तस मे
घुटने के लिये
देखना है अब नज़ारा
बिलबिलाते अन्तस के
टुकडे होते अस्तित्व का
और शोधन से उपजे
नये द्रव्य का परिमाण क्या होगा

25 टिप्‍पणियां:

Dr Varsha Singh ने कहा…

बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना ! हार्दिक शुभकामनायें !

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 ने कहा…

वंदना जी ये क्या हो गया आइये रौशनी आती झरोखे में झांके कुछ नया शोधन से उपजे
नये द्रव्य का परिमाण और उसका हश्र अच्छा ही होगा
सुन्दर रचना - आभार
शुक्ल भ्रमर ५
बाल झरोखा सत्यम की दुनिया

राजीव तनेजा ने कहा…

वाकयी में दमदार है आपकी लेखनी :-)

मदन शर्मा ने कहा…

विचारणीय कविता, आभार......

मदन शर्मा ने कहा…

विचारणीय कविता, आभार......

Unknown ने कहा…

अंतर्ध्वनि व्यक्त करती पंक्तियाँ , बधाई

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

vandana ji...

bahut hee bhaavpoorn rachna aapki kalam se ek baar phir...

मेरी नई पोस्ट पे आपका स्वागत् है....
http://raaz-o-niyaaz.blogspot.com/2011/07/blog-post.html

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

भौतिकी के नये पृष्ठ कुछ नये नतीजे आयेंगे
आनेवाले युग में नव - सिद्धांत पढ़ाए जायेंगे.

Shikha Kaushik ने कहा…

मन को उद्वेलित करती अभिव्यक्ति .आभार

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) ने कहा…

नए शब्द नए रूप में अलंकृत से लगे..... भावना बहुत गहरी है.....इस शोधन का ही परिणाम है..... या परिमाण है.....

दिगम्बर नासवा ने कहा…

फूटेगा एक ज्वालामुखी ... बहुत संवेदनशील रचना है ..

Sunil Kumar ने कहा…

वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से हल ढूंढने की कवायद अच्छी लगी

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

परिणाम जानते जानते बहुत देर हो जाती है।

Udan Tashtari ने कहा…

भावपूर्ण...

shikha varshney ने कहा…

बेहद भावपूर्ण.

Maheshwari kaneri ने कहा…

विचारणीय रचना...

Arunesh c dave ने कहा…

कम शब्दो मे गहरी बात बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी लेखनी

अजय कुमार ने कहा…

यह तो आत्ममंथन जैसा लग रहा है

विभूति" ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण अभिवयक्ति...

रविकर ने कहा…

तराजू के ह्रदय तल पर यह
और दूसरे पलड़े में कौन सा भार |
पुराना, शेर वाला या
इस ग्राम वाला ||
देख लो--
पासंग भी ||
कहीं पासंग भर ही न निकले |

बधाई ||
खुबसूरत अंदाज ||

Vivek Jain ने कहा…

बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आत्म मंथन सा करती अच्छी प्रस्तुति

Anita ने कहा…

टुकडे होते अस्तित्व का
और शोधन से उपजे
नये द्रव्य का परिमाण क्या होगा

नए द्रव्य का परिमाण यकीनन अनंत होगा यदि आपने बीच में ही प्रयोग समाप्त न कर दिया...

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

बहुत सुन्दर....
यह भी एक उच्चकोटि की साधना ही है |

बेनामी ने कहा…

खुद में खुद की तलाश का अंत सार्थक ही होगा|