ओबीओ पर "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता मे दूसरा स्थान प्राप्त कविता
इस चित्र के माध्यम से किसान के
जीवन पर लिखना था
बोये थे मैंने कुछ पंख उड़ानों के
कुछ आशाओं के पानी से
सींचा था हर बीज को
शायद खुशियों की फसल लहलहाए इस बार
पता नहीं कैसे किस्मत को खबर लग गयी
ओलों की मार ने चौपट कर दिया
सपनो की ख्वाहिशों का आशियाना
फिर किस्मत से लड़ने लगा
उसे मनाने के प्रयत्न करने लगा
झाड़ फूंक भी करवा लिया
टोने टोटके भी कर लिए
कुछ क़र्ज़ का सिन्दूर भी माथे पर लगा लिया
और अगली बार फिर नए
उत्साह के साथ एक नया सपना बुना
इस बार खेत में मुन्नू के जूते बोये
मुनिया की किताबें बो दिन
और रामवती के लिए एक साड़ी बो दी
एक बैल खरीदने का सपना बो दिया
और क़र्ज़ को चुकाने की कीमत बो दी
और लहू से अपने फिर सींच दिया
मगर ये क्या ...........इस बार भी
जाने कैसे किस्मत को खबर लग गयी
बाढ़ की भयावह त्रासदी में
सारी उम्मीदों की फसल बह गयी
मैं फिर खाली हाथ रह गया
कभी आसमाँ को देखता
तो कभी ज़मीन को निहारता
और खुद से इक सवाल करता
"ये मेरे साथ ही क्यों होता है ?"
इक दिन सुना
रामखिलावन ने परिवार सहित कूच कर लिया
क्या करता बेचारा
कहाँ से और कैसे
परिवार का पेट भरता
जब फाकों पर दिन गुजरते हों
फिर भी ना दिल बदलते हों
और कहीं ना कोई सुनवाई हो
उम्मीद की लौ भी ना जगमगाई हो
कैसे दिल पर पत्थर रखा होगा
जिन्हें खुद पैदा किया
पाला पोसा बड़ा किया
आज अपने हाथों ही उन्हें मुक्ति दी होगी
वो तो मरने से पहले ही
ना जाने कितनी मौत मरा होगा
उसका वो दर्द देख
आसमाँ भी ना डर गया होगा
पर कुछ लोगों पर ना कोई असर हुआ होगा
बेचारा शायद मर के ज़िन्दगी से मिला होगा
मेहनत तो किसान कर सकता है
मगर कब तक कोई भाग्य से लड सकता है
रामखिलावन का हश्र देख
अब ना शिकायत करता हूँ
और रोज तिल तिल कर मरा करता हूँ
जाने कब मुझे भी.................?
हाँ , शायद एक दिन हश्र यही होना है
26 टिप्पणियां:
वंदनाजी बहुत ही दर्दमयी,यथार्थ को बताती हुई सार्थक रचना लिखी है आपने/ सच मैं किसानो का हाल आजकल ऐसा ही है तभी लोग शहर की तरफ खेती किसानी छोड कर भाग रहें हैं /परन्तु अगर अनाज उगाने वाले ही नहीं होंगे तो अनाज आयेगा कहाँ से /ये एक सोचनेवाला विषय है /बहुत ही बेमिसाल रचना /बधाई आपको /
Nice post.
आपकी इस पोस्ट का चर्चा आपको आज सुबह मिलेगा ‘ब्लॉगर्स मीट वीकली‘ में।
आप सादर आमंत्रित हैं।
Congratulations
किसान के दिल के दर्द को बताती एक प्रभावशाली रचना, लोगों को खुशियाँ देने वाला किसान आज खुद दुखी है...
बहुत-बहुत बधाई ....बहुत ही अच्छा लिखा है आपने हर पंक्ति अक्षरश: एक सत्य बयां करती हुई।
बधाई हो ,
बहुत सटीक और सार्थक लिखा है ..किसान की वेदना को कहती अच्छी रचना
बोये थे मैंने कुछ पंख उड़ानों के कुछ आशाओं के पानी से सींचा था हर बीज को शायद खुशियों की फसल लहलहाए इस बार पता नहीं कैसे किस्मत को खबर लग गयी ओलों की मार ने चौपट कर दिया सपनो की ख्वाहिशों का आशियाना... wakai bejod
वंदना जी...बहुत ही सुंदर लिखा है आपने...लाजवाब।
यथार्थ को बताती हुई सार्थक रचना ....
दर्द भरी दास्ताँ !
शुभकामना वंदना जी... आपकी अन्य कविताओं से बेहतर है यह कविता... बहुत सुन्दर...
वन्दना जी
यह हर किसान की गाथा है , हर जीवन की गाथा है ,हाँ नियति का थोड़ा -बहुत दोष तो है ही / रचना बहुत सुन्दर ,बधाई
बधाई स्वीकार करे .....आज के किसानो की सचाई ब्यान करती रचना
बहुत ही मार्मिक रचना .......
किसान की मेहनत,सपने ,भाग्य , जिम्मेदारियाँ और सबका यह दुखद अंत...
अन्दर तक झकझोर देने वाली प्रस्तुति..
as always the poetess in you and the humane in you have merged them together
बधाई स्वीकार करे
बहुत सटीक और सार्थक लिखा है
बहुत-बहुत बधाई!
यह एक अच्छी रचना है!
वंदना जी में नहीं समझता था. एक शहर के जज्बातों को लिखने समझने वाली वंदना जी इतने अन्दर तक वहां भी गयी है जहाँ सत्तर प्रतिशत आबादी रहती है और सदियों से भूखी है अन्नपूर्णा होते हुए भी. लेखनी लेखनी के तीखेपन को साधुवाद. कुछ नया करती रहें
मर्म स्पर्शी सुंदर रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.
बहुत सार्थक पोस्ट...
न जाने कितने रामखिलावन जूझ रहे हैं।
बहुत बहुत बधाई। सुन्दर रचना है।
बहुत बहुत बधाई ...किसानो का दर्द बयाँ करती बेहद मर्मस्पर्शी रचना...
Congratulations
वंदना जी इस सार गर्भित रचना के लिये आपकी जितनी प्रशंशा की जाय कम होगी...बधाई स्वीकारें
नीरज
बहुत ही मार्मिक और सार गर्भित रचना .......
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