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सोमवार, 25 जुलाई 2011

"ये मेरे साथ ही क्यों होता है ?"

ओबीओ पर "चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता मे दूसरा स्थान प्राप्त कविता
इस चित्र के माध्यम से किसान के 
जीवन पर लिखना था
इस लिंक पर जाकर देखा जा सकता है 

http://www.openbooksonline.com/group/pop/forum/topic/show?id=5170231%3ATopic%3A111893&xgs=1&xg_source=msg_share_topic






बोये थे मैंने कुछ पंख उड़ानों के
कुछ आशाओं के पानी से
सींचा था हर बीज को
शायद खुशियों की फसल लहलहाए इस बार
पता नहीं कैसे किस्मत को खबर लग गयी
ओलों की मार ने चौपट कर दिया
सपनो की ख्वाहिशों का आशियाना
फिर किस्मत से लड़ने लगा
उसे मनाने के प्रयत्न करने लगा
झाड़ फूंक भी करवा लिया
टोने टोटके भी कर लिए
कुछ क़र्ज़ का सिन्दूर भी माथे पर लगा लिया
और अगली बार फिर नए
उत्साह के साथ एक नया सपना बुना
इस बार खेत में मुन्नू के जूते बोये
मुनिया की किताबें बो दिन
और रामवती के लिए एक साड़ी बो दी
एक बैल खरीदने का सपना बो दिया
और क़र्ज़ को चुकाने की कीमत बो दी
और लहू से अपने फिर सींच दिया
मगर ये क्या ...........इस बार भी
जाने कैसे किस्मत को खबर लग गयी
बाढ़ की भयावह त्रासदी में
सारी उम्मीदों की फसल बह गयी
मैं फिर खाली हाथ रह गया
कभी आसमाँ को देखता
तो कभी ज़मीन को निहारता
और खुद से इक सवाल करता
"ये मेरे साथ ही क्यों होता है ?"

इक दिन सुना
रामखिलावन ने परिवार सहित कूच कर लिया
क्या करता बेचारा
कहाँ से और कैसे
परिवार का पेट भरता
जब फाकों पर दिन गुजरते हों
फिर भी ना दिल बदलते हों
और कहीं ना कोई सुनवाई हो
उम्मीद की लौ भी ना जगमगाई हो
कैसे दिल पर पत्थर रखा होगा
जिन्हें खुद पैदा किया
पाला पोसा बड़ा किया
आज अपने हाथों ही उन्हें मुक्ति दी होगी
वो तो मरने से पहले ही
ना जाने कितनी मौत मरा होगा
उसका वो दर्द देख
आसमाँ भी ना डर गया होगा
पर कुछ लोगों पर ना कोई असर हुआ होगा
बेचारा शायद मर के ज़िन्दगी से मिला होगा
मेहनत तो किसान कर सकता है
मगर कब तक कोई भाग्य से लड सकता है


रामखिलावन का हश्र देख
अब ना शिकायत करता हूँ
और रोज तिल तिल कर मरा करता हूँ
जाने कब मुझे भी.................?
हाँ , शायद एक दिन हश्र यही होना है

26 टिप्‍पणियां:

prerna argal ने कहा…

वंदनाजी बहुत ही दर्दमयी,यथार्थ को बताती हुई सार्थक रचना लिखी है आपने/ सच मैं किसानो का हाल आजकल ऐसा ही है तभी लोग शहर की तरफ खेती किसानी छोड कर भाग रहें हैं /परन्तु अगर अनाज उगाने वाले ही नहीं होंगे तो अनाज आयेगा कहाँ से /ये एक सोचनेवाला विषय है /बहुत ही बेमिसाल रचना /बधाई आपको /

DR. ANWER JAMAL ने कहा…

Nice post.

आपकी इस पोस्ट का चर्चा आपको आज सुबह मिलेगा ‘ब्लॉगर्स मीट वीकली‘ में।
आप सादर आमंत्रित हैं।

yogendra pal ने कहा…

Congratulations

Anita ने कहा…

किसान के दिल के दर्द को बताती एक प्रभावशाली रचना, लोगों को खुशियाँ देने वाला किसान आज खुद दुखी है...

सदा ने कहा…

बहुत-बहुत बधाई ....बहुत ही अच्‍छा लिखा है आपने हर पंक्ति अक्षरश: एक सत्‍य बयां करती हुई।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बधाई हो ,
बहुत सटीक और सार्थक लिखा है ..किसान की वेदना को कहती अच्छी रचना

रश्मि प्रभा... ने कहा…

बोये थे मैंने कुछ पंख उड़ानों के कुछ आशाओं के पानी से सींचा था हर बीज को शायद खुशियों की फसल लहलहाए इस बार पता नहीं कैसे किस्मत को खबर लग गयी ओलों की मार ने चौपट कर दिया सपनो की ख्वाहिशों का आशियाना... wakai bejod

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

वंदना जी...बहुत ही सुंदर लिखा है आपने...लाजवाब।

Sunil Kumar ने कहा…

यथार्थ को बताती हुई सार्थक रचना ....

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

दर्द भरी दास्ताँ !

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

शुभकामना वंदना जी... आपकी अन्य कविताओं से बेहतर है यह कविता... बहुत सुन्दर...

S.N SHUKLA ने कहा…

वन्दना जी

यह हर किसान की गाथा है , हर जीवन की गाथा है ,हाँ नियति का थोड़ा -बहुत दोष तो है ही / रचना बहुत सुन्दर ,बधाई

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

बधाई स्वीकार करे .....आज के किसानो की सचाई ब्यान करती रचना

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

बहुत ही मार्मिक रचना .......
किसान की मेहनत,सपने ,भाग्य , जिम्मेदारियाँ और सबका यह दुखद अंत...
अन्दर तक झकझोर देने वाली प्रस्तुति..

रचना ने कहा…

as always the poetess in you and the humane in you have merged them together

संजय भास्‍कर ने कहा…

बधाई स्वीकार करे
बहुत सटीक और सार्थक लिखा है

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत-बहुत बधाई!
यह एक अच्छी रचना है!

Unknown ने कहा…

वंदना जी में नहीं समझता था. एक शहर के जज्बातों को लिखने समझने वाली वंदना जी इतने अन्दर तक वहां भी गयी है जहाँ सत्तर प्रतिशत आबादी रहती है और सदियों से भूखी है अन्नपूर्णा होते हुए भी. लेखनी लेखनी के तीखेपन को साधुवाद. कुछ नया करती रहें

Dorothy ने कहा…

मर्म स्पर्शी सुंदर रचना. आभार.
सादर,
डोरोथी.

विभूति" ने कहा…

बहुत सार्थक पोस्ट...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

न जाने कितने रामखिलावन जूझ रहे हैं।

निर्मला कपिला ने कहा…

बहुत बहुत बधाई। सुन्दर रचना है।

rashmi ravija ने कहा…

बहुत बहुत बधाई ...किसानो का दर्द बयाँ करती बेहद मर्मस्पर्शी रचना...

vidhya ने कहा…

Congratulations

नीरज गोस्वामी ने कहा…

वंदना जी इस सार गर्भित रचना के लिये आपकी जितनी प्रशंशा की जाय कम होगी...बधाई स्वीकारें

नीरज

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत ही मार्मिक और सार गर्भित रचना .......