हाँ ....बुरी औरत हूँ मैं
मानती हूँ......
क्यूँकि जान गयी हूँ
अपनी तरह
अपनी शर्तों पर जीना
नहीं करती अब तुम्हारी बेगारी
दे देती हूँ तुम्हारी हर गलत बात का जवाब
नहीं मानती आँख मूँद कर तुम्हारी हर बात
सिर्फ तुम्हारे लिए ही जीना
बदल लिया है अब इस वाक्य को खुद से
अब अपनी इच्छाओं का दमन नहीं करती
प्रत्युत्तर देती हूँ
समाज के अवांछित भय से नहीं डरती हूँ
तुम्हारी सदियों से बनाई परिपाटियों को तोडती हूँ
तुमसे भी वो ही उम्मीद करती हूँ
उतना ही समर्पण, त्याग , मोहब्बत चाहती हूँ
जितना मैं शिद्दत से करती हूँ
तो आज मैं तुम्हें बुरी लगती हूँ
आखिर कैसे जमींदोज़ आत्माएं कब्र से बाहर आ गयीं
अगर सत्य कहना बुरा है
अगर खुद को पहचानना बुरा है
अगर हर नाजायज को ठुकराना बुरा है
तो हाँ ..........मैं बुरी औरत हूँ
32 टिप्पणियां:
सत्य को पहचानना, खुद को जानना कभी बुरा नहीं हो सकता, अहंकार ही बुरा होता है चाहे खुद में हो या किसी और में, प्रेम और अहंकार एक साथ नहीं रह सकते...
कमाल की कविता है...बहुत ही जोश भरी...हाँ अगर इन बातों के लिए कोई बुरी औरत कहे तो मंजूर है बुरी औरत बनना...प्रभावपूर्ण कविता
"अगर सत्य कहना बुरा है तो मैं बुरी हूँ...बिल्कुल सही...बहुत सुन्दर और गहरी सोच..
सुधार की आवश्यकता समाज को हमेशा से ही रही है, चाहे वह औरत है या पुरुष .
कई बार बुरे ही तथाकथित अच्छों से भले होते हैं.....सुन्दर शब्द |
ये बुरा होना है तो यही सही..सुन्दर प्रस्तुति.
nice poem.
Galat baat ko manne se to pahle hi inkaar kar dena tha.
बहुत ही बढि़या।
आज की औरत में इतना सच कहने का माद्दा है क्या? जो वन्दना जी ने लिखा है.....सच्चाई को पुरुष समाज स्वीकारने में हमेशा हिचकता है, मैं मानता हूँ कि यह एक बेहतरीनतम रचना है...
बहुत बढ़िया।
purushon ko aam roop se achhaa nahee lagegaa sab padhnaa,par woman empowerment ke zamaane mein saty yahee hai,aisaa hee honaa chaahiye ,badhaayee saty mankee baat likhne ke liye
अपने अस्तित्व को पहचान आज नारी बदल रही है ... पुरुषों की मानसिकता भी बदलेगी .. आज की नारी में सच कहने का माद्दा है ... बहुत अच्छी प्रस्तुति
गहन अभिवयक्ति..........और सार्थक पोस्ट.....
अगर सत्य कहना और खुद की पहचान तलाशना बुरा है तो यह बुराई स्वीकार्य है. बहुत सशक्त अभिव्यक्ति...
बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ धन्यवाद |
बुरा कहलाने का दमखम है ... तभी तो बुरी हूँ
aaj ki naari ki soch ka pratibimb hai aapki post.
bahut hi prerak v prabhav purn---
poonam
कुछ अनुभूतियाँ इतनी गहन होती है कि उनके लिए शब्द कम ही होते हैं !
व्यंगात्मक शैली ने रचना के हुस्न में चार चांद लगा दिए हैं।
बढिया रचना।
गहरे भाव।
वह औरत क्यों है डरी
सचमुच वह औरत नहीं है बुरी
निश्चित ही वह औरत वंदनीय है
जो अपनी नजरों में नहीं गिरी
सराहनीय रचना.... निःसंदेह बधाई की पात्र......
नेता,कुत्ता और वेश्या
अत्यन्त संवेदना लिये हुये पंक्तियाँ, कई तथ्य अब नकारे नहीं जा सकते हैं।
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति आज charchamanch.blogspot.com par है |
waah ekdam sateek shabdo ko goontha hai khoobsoorat kavita me
डर्टी औरत का बयान।
sateek rachana...sateek vishleshan...
बहुत सी सच्चाइयों को उजागर किया है आपने.
ऐसी औरत को जो बुरा माने,वही बुरा है.
गहन प्रस्तुति.
बहुत ही बढ़िया ।
सादर
पढ़ रहा हूँ ...समझ रहा हूँ ..सोच रहा हूँ
गहन ...मर्मस्पर्शी ...
Vah... kya likhu itana achha ki shabd hi km pad rhe hain Vandana ji...sadar badhai
mam bahut sateek aur kai satyo ko ujagar karti hui rachna...badhai
अरे आप तो सच में बहुत बुरे हो वंदना जी ..फिर आप इतने प्यारे मित्र क्यों हो !
आप तो कुंदन हो वंदना जी माधव की प्रिय ... काश आप जैसे कुछ और बुरे लोग हो मेरे साथ !
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