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मंगलवार, 26 अगस्त 2008

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4:11:00 AM by vandana
जब जिंदगी में भागते भागते हम थकने लगते हैं ,मन उदा...

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3:38:00 AM by vandana
virhan का दर्द



8/6/08 by vandana
virhan का दर्द savan क्या jane कैसे katate हैं दिन...

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8/6/08 by vandana
virhan का दर्द savan क्या jane कैसे katate हैं दिन...

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8/6/08 by vandana
virhan का दर्द savan क्या jane कैसे katate हैं दिन...

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8/6/08 by vandana
virhan का दर्द savan क्या jane कैसे katate हैं दिन...

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8/6/08 by vandana
भीगा सावन



8/4/08 by vandana
गर किसी को मीले मेरा पता



8/1/08 by vandana
कश्ती



7/30/08 by vandana
तड़प



7/29/08 by vandana
एक कतरा खुशी



7/29/08 by vandana
सिसकते ज़ख्म



7/24/08 by vandana
ख्याल



7/23/08 by vandana
हर गम में एक खुशी छुपी है हर रात में एक दिन छुपा ह...



7/13/08 by vandana
टूटा दिल



7/13/08 by vandana
इंतज़ार खुशियों का



7/3/08 by vandana
कहीं बहुत गहरे कुछ चुभ सा गया है हमने भी चाहा कोई ...



6/20/08 by vandana
आहत हो जाती है वो जब कोई दुत्कार देता है हर किसी ...


1 comment 6/19/08 by vandana
अहसास



6/14/08 by vandana
हर गम दुनिया में सभी को नसीब नही होता कोई चाहने वा...

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6/14/08 by vandana
खामोश निगाहों की जुबान हैं आंसू, दिल पर किसी ज़ख्म ...



6/13/08 by vandana
मेरा घर



6/10/08 by vandana
विरानियाँ हैं घर मेरा tanhaiyan हैं sathi और गम है...

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6/10/08 by vandana
दर्द -ऐ - दिल


2 comments 6/8/08 by vandana

बुधवार, 6 अगस्त 2008

virhan का दर्द

virhan का दर्द sawan क्या जाने
कैसे कटते हैं दिन और कैसे कटती हैं रातें
बदल तो आकर बरस गए
चहुँ ओर हरियाली कर गए
मगर virhan का सावन तो सुखा रह गया
पीया बीना अंखियों से सावन बरस गया
सावन तो मन को उदास कर गया
बीजली बन कर दिल पर गिर गया
कैसे सावन की फुहार दिल को जलाती है
इस दर्द को तो एक virhan ही जानती है
virhan का दर्द savan क्या jane
कैसे katate हैं दिन और कैसे katati हैं ratein
badal to aakar बरस गए
chahun ore hariyali कर गए
मगर virhan का sawan to sukha रह गया
पिया बिना ankhiyon से sawan बरस गए

मंगलवार, 5 अगस्त 2008

भीगा सावन

बरखा की फुहारों ने तन मन भीगो दीया
सावन की बहारों ने मौसम बदल दीया
ऐसे भीगे मौसम ने कुछ याद दीला दीया
वो बचपन में बारीश में भीगना
वो सखियों के संग बारीश में नाचना
फिर हर पल मस्ती में झूमना
आज भी उन्ही पलों के लिए तरसना
हर लम्हा यादों में फिर जींदा कर दिया
हर सावन में बारीश की फुहारों में
उन्ही पलों को यादों में फिर से जीना
बचपन की याद दीला गया
हमको हमारे बचपन से मीला गया

शुक्रवार, 1 अगस्त 2008

गर किसी को मीले मेरा पता

मन की घुटन अश्कों में बह नही पाती
शब्दों में बयां हो नही पाती
अजीब मुकाम पर है जिंदगी
जो रुक् पाती हैमन की घुटन अश्कों में बह नही पाती
शब्दों में बयां हो नही पाती
अजीब मुकाम पर है जिंदगी
जो रुक् पाती है
और
आगे चल पाती है
यादों के बवंडर में घीर गई है जिंदगी
ख़ुद को ढूंढ रही हूँ
जाने कहाँ खो गई हूँ
जीसमें ख़ुद को खो दीया
उसे तो पता भी चला
मैं उसके लिए कुछ नही
मगर वो मेरे लिए सब कुछ है
मेरा din,मेरी रात
मेरी खुशी ,मेरा गम
मेरा हँसना मेरा रोना,
मेरा प्यार मेरी लडाई
मेरा दोस्त,मेरा परिवार,
मेरा आज, मेरा कल,
मेरा आदी , मेरा अंत,
उसके बीना अस्तीत्व ही नही मेरा
उसके बीना जिंदगी की कल्पना ही नही
अब ऐसे में कहाँ खोजूं अपने आप को
जहाँ खुदी को मिटा दीया मैंने
उसमें ख़ुद को समां दीया मैंने
वहां कैसे अलग करुँ ख़ुद को
मुझे मेरा 'मैं' कहीं मीलता नही
अपने आप से पल पल लड़ रही हूँ मैं
अपना पता पूछ रही हूँ मैं
गर किसी को मीले तो बता देना
मुझे मुझसे मिला देना
और
आगे चल पाती है
यादों के बवंडर में घीर गई है जिंदगी
ख़ुद को ढूंढ रही हूँ
जाने कहाँ खो गई हूँ
जीसमें ख़ुद को खो दीया
उसे तो पता भी चला
मैं उसके लिए कुछ नही
मगर वो मेरे लिए सब कुछ है
मेरा din,मेरी रात
मेरी खुशी ,मेरा गम
मेरा हँसना मेरा रोना,
मेरा प्यार मेरी लडाई
मेरा दोस्त,मेरा परिवार,
मेरा आज, मेरा कल,
मेरा आदी , मेरा अंत,
उसके बीना अस्तीत्व ही नही मेरा
उसके बीना जिंदगी की कल्पना ही नही
अब ऐसे में कहाँ खोजूं अपने आप को
जहाँ खुदी को मिटा दीया मैंने
उसमें ख़ुद को समां दीया मैंने
वहां कैसे अलग करुँ ख़ुद को
मुझे मेरा 'मैं' कहीं मीलता नही
अपने आप से पल पल लड़ रही हूँ मैं
अपना पता पूछ रही हूँ मैं
गर किसी को मीले तो बता देना
मुझे मुझसे मिला देना

बुधवार, 30 जुलाई 2008

कश्ती

तूफानों को सीने में दबाये रहते हैं
हर पल भंवर में फंसे रहते हैं
आदत सी हो गई है अब तो
डूब डूब कर पार उतरने की
यह कश्ती है जज्बातों की
आंसुओं का अथाह सागर है
भावनाओं के तूफानों में
कश्ती जिंदगी की बार बार
तूफानों से लड़ते हुए
कभी भंवर में फंसते हुए
तो कभी बाहर नीकलते हुए
साहील तक पहुँचती है

मंगलवार, 29 जुलाई 2008

तड़प

जिंदगी कहाँ तडपाती है यह तो ख़ुद तड़पती है
इसे कोई क्या समझेगा यह तो ख़ुद नासमझ है
जिंदगी हमें रुलाती नही यह तो ख़ुद रोती है
इसे कोई क्या जलाएगा यह तो ख़ुद को जलाती है
इसे कोई दर्द देगा क्या यह तो ख़ुद दर्द में जीती है
जिंदगी खामोश करती नही यह तो ख़ुद खामोश होती है
यह इम्तिहान लेगी क्या यह तो ख़ुद इम्तिहान देती है
इससे मोहब्बत कोई क्या करेगा यह तो ख़ुद मोहब्बत की मारी है
जिंदगी किसी को क्या कहेगी यह तो ख़ुद बेजुबान होती है
इसे कोई क्या समझेगा यह तो ख़ुद नासमझ है

एक कतरा खुशी

खुशी मिलती है कभी कभी
समेट लो दामन में हर पल
कल न जाने क्या हो
यहाँ पल की ख़बर नही
एक छोटा सा कतरा खुशी का
जीने का सबब बन जाता है
ज्यादा की तमन्ना में
न मायूस करो इनको
यह हाथ में आती हैं कभी कभी
इसे यादों में जज्ब कर लो

गुरुवार, 24 जुलाई 2008

सिसकते ज़ख्म

कभी कभी ऐसा भी होता है
हर ज़ख्म सि्सक रहा होता है
दवा भी मालूम होती है
मगर इलाज ही नही होता है
हर जख्म के साथ कोई याद होती है
एक दर्द होता है ,एक अहसास होता है
मगर फिर भी वो लाइलाज होता है
तन्हाइयाँ कहाँ तक ज़ख्मों का इलाज करें
इन्हें तो आदत पड़ गई है दर्द में जीने की
रोज ज़ख्मों को उधेड़ना और फिर सीना
नासूर बना देता है उन ज़ख्मों को
और नासूर कभी भरा नही करते
इनका इलाज कहीं हुआ नही करता

ख्याल

आज ख्यालों से नीकलकर ख्यालों ने मुझसे बात की
हर जज्बे को बयां किया हर हाल की बात की
कुच्छ अपनी सुनाई कुछ हमारी सुनी
अपनी खामोशियों को दिखाया अपने दर्द को दिखाया
जो जो न हम जानते थे वो भी बताया
अजब वो समां था जहाँ सिर्फ़
हम थे और हमारे ख्याल थे
ख्यालों ने हमें ख्यालों में रहने को कहा
गर कर दिया बयां तो फिर जीने को क्या रहा
इस तरह कुच्छ हमने अपने ही ख्यालों से
उनके जज्बातों को जाना
ख्यालों से ख्यालों की मुलाक़ात भी अजब थी

सोमवार, 14 जुलाई 2008

हर गम में एक खुशी छुपी है
हर रात में एक दिन छुपा है
हर शाम में एक सुबह छुपी है
हर ख्वाब में एक हकीकत छुपी है
फिर क्यूँ नही हम
उस खुशी से ,उस सुबह से ,
उस दिन से ,उस हकीकत से,
रु-बी-रु नही हो पाते
क्यूँ नही उसे खोजते
क्यूँ नही पाना चाहते
क्यूँ हमेशा दर्द के साये में
हमेशा जीना चाहते हैं ?

टूटा दिल

जब ख्वाब टूटता है तब नया ख्वाब बुनते हैं हम
जब अरमान टूटते हैं तब नए अरमान जागने लगते हैं
जब उम्मीद टूटती है तब नई उम्मीद फिर जगती है
हर बार कुच्छ न कुच्छ खोकर भी
कुच्छ न कुच्छ पाने की आशा जनमती है
मगर
जब दिल टूटता है तब ..................
न उम्मीद बचती है
न ख्वाब सजते हैं
न उम्मीद बंधती है
क्यूँकी
दिल के टूटने पर
नया दिल कहाँ से लायें ?
एक दिल लिए फिरते हैं हम
वो भी कब टूट जाता है
पता ही नही चलता

गुरुवार, 3 जुलाई 2008

इंतज़ार खुशियों का

हर सुबह इंतज़ार रहता है एक खुशी का
जब भी उठते हैं एक अनदेखी खुशी को
पाने की चाहत में इंतज़ार करते हैं
सपनो का बुनना शुरू करते हैं
ख्वाबों में जीना शुरू करते हैं
ख्यालों में पाने की तमन्ना होती है
दिल इसी अहसास में खुश रहता है
मगर,
जब शाम आती है ,
हर उम्मीद नाउम्मीदी में तब्दील होने लगती है
ख्वाब टूटना शुरू हो जाते हैं
सपने बिखरने लगते हैं
और दिल को यह समझाने लगते हैं
ऐसा भी होता है ------ऐसा भी होता है
रात होते होते एक बार फिर
एक नई सुबह का फिर से इंतज़ार करते हैं
फिर से नए ख्वाब बुनने के लिए
सपनो को पूरा करने के लिए
कुच्छ इस तरह
एक नई सुबह के इंतज़ार में
एक अनदेखी खुशी के इंतज़ार में
हम जिंदगी गुजार देते हैं

शुक्रवार, 20 जून 2008

इसलिए बहुत गहरे कुछ चुभ सा गया है

कहीं बहुत गहरे कुछ चुभ सा गया है
हमने भी चाहा कोई सिर्फ़ हमें प्यार की हद तक चाहे
मगर प्यार सब का नसीब नही होता
चाहत पैदा तो नही की जा सकती
शायद हम ही न थे इस काबिल किसी की चाहत बन सकते
प्यार की किस्मत में सिर्फ़ रुसवाई ही होती है
कोई होता जो सिर्फ़ हमें चाहता
सिर्फ़ हमें................
उसके आगे रिश्ता न चाहता
मगर किसी की चाहत के काबिल बनना आसान नही होता
इसलिए बहुत गहरे कुछ दरक गया है
कांच से भी नाजुक है जो
ऐसे दिल को कैसे कोई समझाए
सब कुछ मिला इसे मगर
सिर्फ़ दिल को चाहने वाला न मिला
कुछ अपनी कहने वाला
कुछ इसकी सुनने वाला न मिला
इसलिए बहुत गहरे कुछ चुभ सा गया है

गुरुवार, 19 जून 2008

आहत हो जाती है वो जब कोई दुत्कार देता है

आहत हो जाती है वो जब कोई दुत्कार देता है
हर किसी के लिए जीती है और मरती है
कभी उफ़ नही करती फिर भी न जाने क्यूँ
हर किसी की निगाह में कसूरवार होती है
कोई जुर्म न करके भी हर सज़ा भोगती है वो
ख़ुद को तबाह करके भी कुछ नही पाती है वो
प्यार के दो लफ्जों को तरसती है वो
कभी बहन बनकर तो कभी पत्नी बनकर
कभी बेटी बनकर तो कभी माँ बनकर
पल पल मरती है वो
हर लम्हा सिसकती है वो
क्या कभी मिल पायेगी उसे अपनी हस्ती
क्या कभी ख़ुद को दिला पायेगी सम्मान वो
एक ऐसे समाज में जो हर पल बदलता है?
नारी आज भी वहीँ है जहाँ पहले थी
उसकी जगह आज भी वहीँ है जहाँ पहले थी
हर किसी की नज़र आज भी वैसी ही है जैसी पहले थी
कहीं कुछ नही बदला और न ही कभी बदलेगा
यह समाज जैसा है वैसा ही रहेगा
नारी का जीवन भी जैसा था वैसा ही रहेगा

शनिवार, 14 जून 2008

अहसास

हर गम दुनिया में सभी को नसीब नही होता
कोई चाहने वाला दिल के करीब नही होता
मुस्कुराते हम भी हर महफ़िल में ज़माने की
गर किसी का दिया दर्द दिल के करीब नही होता

यह कहाँ ले आई तकदीर आज मुझे
की अपना साया भी आज नज़र आता नही
किसी और को अब क्या चाहेंगे
जबकि अपने आप को भी चाह जाता नही


हर सुबह मेरी अँधेरी हो गई
हर शाम मेरी कहीं खो गई
कहाँ गए वो मदमस्त दिन
खो गया कहीं अल्हड़पन
ज़िंदगी मेरी गम की शाम हो गई
हर रात मेरी परेशां हो गई
यूं तो होती हूँ हर वक्त ही तनहा
फिर भी तन्हाई मेरी तनहा हो गई


दिल जो एक बार टूटा टूटता ही चला गया
तेरा प्यार जो मुझसे rootha तो toothta ही चला गया


ऐ खुदा मेरे हिस्से की सब खुशी उन्हें दे दे
उनके हिस्से के सभी गम मुझे दे दे
मेरे नसीब की महफिलें हों उन्हें नसीब
उनके नसीब की तन्हैयाँ भी मुझे दे दे

तनहाइयों की महफिलें सज़ा लेंगे हम
वीरानियों में दिल बहला लेंगे हम
मगर तुझसे खुशी न मांगेंगे कभी
अपनी हर खुशी भी तुझपे लुटा देंगे हम
तेरे नाम पे यह ज़िंदगी लुटा देंगे हम
ऐसी मौत को हंसकर गले लगा लेंगे हम

ग़मों का काफिला है पीछे मेर यह पता है उसे
फिर भी जहाँ का हर गम दे गया है मुझे

मुझे ज़िंदगी मिली आंसू बनकर
हर गम मिला ज़ख्म बनकर
बेरुखी मिली दर्द में ढलकर
प्यार भी मिला तो नफरत बनकर

दूरियां इतनी न बढाओ की फिर पास न आ सकें
गर पास आयें तो नज़रें मिला न सकें
नज़रें मिला भी लें तो एक दूसरे को अपना भी न सकें
इसलिए तोड़ दो यह बंधनों की दीवार,जिसके पार हम जा सकें

ज़िंदगी तड़प रही थी किसी की
मौत हंस रही थी उसकी
ज़िंदगी ने चाह मिल जाए मौत ही
मगर उसने भी साथ न दिया ज़िंदगी का
कितनी मजबूर थी ज़िंदगी जीने के लिए
तड़प के आगोश में जलने के लिए

बहुत तरसा था यह दिल तनहाइयों के लिए कभी
अब घेरा है तन्हैयेओं ने इस कदर की फुरसत नही महफिलें सजाने की

शुक्रवार, 13 जून 2008

खामोश निगाहों की जुबान हैं आंसू,
दिल पर किसी ज़ख्म का निशाँ हैं आंसू,
यूं टू हसरतों के जज्ब होने का नाम हैं आंसू,
फिर भी आँख से न dhalakne का नाम हैं आंसू।



उदास आंखों से आंसू नही गिरते हैं,
यह टू मोतियों की तरह सीपियों में पलते हैं।



दर्द में मैंने जिसको भी करीब पाया था
आंसू बहता वो मेरा ही साया था



काँटों भरी राह का बाम है ज़िंदगी,
दर्द में सिमटी हर शाम का नाम है ज़िंदगी,
नफरतों के जहाँ में हंसने का नाम है ज़िंदगी,
दिन के उजालों में जलने का नम है ज़िंदगी,
रात के वीरानों में भटकने का नाम है ज़िंदगी,
असल में फूलों से बचकर चलने का नाम है ज़िंदगी।


बहारों का आँचल नही है हर किसी के लिए
पतझड़ का दमन नही है हर किसी के लिए
बहारों में फूल खिलते हैं,दिल भी मिलते हैं
फिर कभी न मिलने के लिए,पतझड़ में दिल बिचादते एन।


ऐ अश्कों जज्ब हो जाओ आखों की कोरों में
तुम्हें नही दी इजाज़त बाहर निकलने की ज़माने ने।


ज़ख्म कागज़ पर लिखकर , दर्द दिल का मिटा लेते हैं
अपनी तकदीर से रु-बी-रु होकर ख़ुद को जीने की सज़ा देते एन।


डूब गया हूँ ग़मों में कुछ इस कदर
की दरिया-ऐ-जिंदगानी अब पार नही होती
मैं टू वो माझी हूँ जिसे तलाश है एक कश्ती की
और यह तलाश है की ख़त्म नही होती।

दिल के टूटने की चटख बहुत दूर तक गई
मगर आवाज़ सुनने वाला रह में कोई न था


दिल की आवाज़ सुन रही थी में
खामोश वातावरण में जी रही थी में
न जाने यह कैसा तूफ़ान आ गया
भा में ज़िंदगी की कश्ती फंस गई है
न डूब रही है और न निकल रही है
साहिल भी साथ है मगर किनारे की तलाश है



आज ज़िंदगी बन गई है ऐसा पिंजरा
जिसमें बंद पंछी पंख फद्फादा भी नही सकता

जीने की इच्छा हो चुकी है ख़त्म
सिर्फ़ जीने की रस्म निभाए जा रही हूँ मैं
हँसी का रंग भी बदल चुका है अब
सिर्फ़ खोखले अंदाज़ मैं हँसे जा रही हूँ में
दिल से टू टूट चुकी थी बहुत पहले ही
अब टू और टूटने के लिए जिए जा रही हूँ में

मंगलवार, 10 जून 2008

मेरा घर

विरानियाँ हैं घर मेरा
तन्हैयाँ हैं साथी
और गम हैं पड़ोसी
दिल कभी परेशां कैसे हो
जब ऐसा सुखद साथ हो
कोई खुशी दमन को छुए कैसे
जब हर तरफ़ रंजो गम की बरसात हो
मेरे घर में हमेशा दर्द का पहरा रहता है
अश्कों से हमेशा दामन भीगा रहता है

यह तो वो हरियाली है
जो कभी मुरझाती नही
ऐसी ब्हार है जो
आकर कभी जाती नही

रविवार, 8 जून 2008

दर्द -ऐ - दिल

दिल के टूटने की आवाज़ वो सुनकर भी नही सुनता ,
सब कुछ समझ कर भी वो कुछ भी नही समझता,
किसी के दिल पर क्या बीती है ----वो जानता है ,
इतना भी नासमझ नही ------फिर क्यों वापस बुलाता नही ,
दर्द जब हद से बढ़ जाएगा वो तब भी न वापस आएगा ,
जब हम न रहेंगे -------यह जानकर भी ,
वो हमको न वापस बुलाएगा।

इन्सान

आज इन्सान सिर्फ़ अपनी सोच और अपने लिए ही जीता है । उसे फर्क नही पड़ता की कोई क्या सोचता है । उसे किसी की चाहत से कोई मतलब नही । अपने लिए जीना और सिर्फ़ अपने मन की सुनना और करना सिर्फ़ इतना चाहता है। क्या यही है ज़िंदगी की सच्चाई?कहीं कोई प्यार नही,किसी की इच्छा का सम्मान नही। रिश्ते भी सिर्फ़ अपनी जरुरत के लिए नीभाना फिर भूल जाना.........क्या यही इंसान है? क्यों इन्सान की सोच इतनी मतलबी हो गई है ?