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गुरुवार, 19 जून 2008

आहत हो जाती है वो जब कोई दुत्कार देता है

आहत हो जाती है वो जब कोई दुत्कार देता है
हर किसी के लिए जीती है और मरती है
कभी उफ़ नही करती फिर भी न जाने क्यूँ
हर किसी की निगाह में कसूरवार होती है
कोई जुर्म न करके भी हर सज़ा भोगती है वो
ख़ुद को तबाह करके भी कुछ नही पाती है वो
प्यार के दो लफ्जों को तरसती है वो
कभी बहन बनकर तो कभी पत्नी बनकर
कभी बेटी बनकर तो कभी माँ बनकर
पल पल मरती है वो
हर लम्हा सिसकती है वो
क्या कभी मिल पायेगी उसे अपनी हस्ती
क्या कभी ख़ुद को दिला पायेगी सम्मान वो
एक ऐसे समाज में जो हर पल बदलता है?
नारी आज भी वहीँ है जहाँ पहले थी
उसकी जगह आज भी वहीँ है जहाँ पहले थी
हर किसी की नज़र आज भी वैसी ही है जैसी पहले थी
कहीं कुछ नही बदला और न ही कभी बदलेगा
यह समाज जैसा है वैसा ही रहेगा
नारी का जीवन भी जैसा था वैसा ही रहेगा

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

nari ke jeevan ka aacha chitran kiya hai .but jururi nahi ki jo dsha aaj tak nahi badli woh aage bhi nahi badlegi.pahle hume isi soch ko badlna hoga. phir dakhiye nari bhi badlegi or samaaj bhi