अब जी नही करता
किसी के कंधे पर
सिर रख रोऊँ मैं
कोई मेरा हाथ थामे
मुझे अपना कहे
अब जी नही करता
किसी के दिल मैं जगह मिले
कोई प्यार करे मुझे
अब जी नही करता
सिर्फ़ जिस्मानी रिश्ते हैं
जो जिस्मों तक बंधे हैं
सब झूठ लगता है
इसलिए
अब जी नही करता
किसी के दामन का
सहारा लूँ मैं
किसी को अपना बना लूँ मैं
1 टिप्पणी:
zindahi ki apni raahe hoti hai aur apni hi taqdeer ..
badhai
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
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