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मंगलवार, 9 दिसंबर 2008

किसी ने कुच्छ कहा नही
फिर भी हमने सुन लिया
बिना कहे भी बात होती है
उसको कभी देखा नही
फिर भी हमने देख लिया
बिना देखे भी मुलाक़ात होती है
कभी कभी किसी को जाने बिना
हम जान लेते हैं ,पहचान लेते हैं
कुच्छ ऐसे नाते होते हैं
जो कभी अपने नही होते
फिर भी अपने से लगते हैं
कुच्छ रूहों को
न देखने की न जानने की
न पहचानने की
न अपनेपन की जरूरत होती है
यह तो जन्मों के नाते होते हैं
जो दिलों से बंधे होते हैं

5 टिप्‍पणियां:

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

कुच्छ रूहों को
न देखने की न जानने की
न पहचानने की
न अपनेपन की जरूरत होती है
यह तो जन्मों के नाते होते हैं
जो दिलों से बंधे होते हैं

bhot acchi paktiyan hain vandana ji ...Bdhai.

विजय तिवारी " किसलय " ने कहा…

कभी कभी किसी को जाने बिना
हम जान लेते हैं ,पहचान लेते हैं
kitna sahi kaha hai aapne
sundar

vijay kumar sappatti ने कहा…

jahan dilo ki baat hoti hai , wahan shabdo ki kya jarurat .

aapki nazm ki kya baat hai , aap ki har nazm mein kuch naya sa hota hai .. sochne ke liye bahut bada canvas chahiye ..

bahut badhai

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/

vijay kumar sappatti ने कहा…

aap bahut accha likhti hai vandana ji .. shabd dil ke bheetar chale jaaten hai ..

bahut sundar..

aapko bahut bahut badhai

maine kuch naya likha hai , aapka aashirwad chaiye.


vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/

vijay kumar sappatti ने कहा…

वंदना जी ;

कल मैंने इस कविता पर एक कमेन्ट लिखा था , पता नही , शायद delete हो गया ;

इन पख्तियों ने बहुत गहरी छाप छोडी मन पर ;

" कुच्छ ऐसे नाते होते हैं
जो कभी अपने नही होते
फिर भी अपने से लगते हैं "

एक छोटा सा suggestion " कुच्छ " को " कुछ " लिख दीजियेगा .

आप बहुत अच्छा लिखती है .

आप यूँ ही लिखते रहिये , बस यही दुआ है मेरी .

विजय
http://poemsofvijay.blogspot.com/