हर क़र्ज़ अहसासों का भी चुकाना होगा
अहसास क्यूंकि अभी जिंदा हैं
अहसासों से परे जाने से पहले
अहसासों को भी सुलाना होगा
किसी मिटटी में दबाना होगा
जहाँ से फिर कोई अहसास जन्म न ले
हर अहसास इक ज़ख्म बन जाता है
अब इन अहसासों की दवा न करनी होगी
अहसासों को अब दवा बिन सूखना होगा
दवा के पानी से न इन्हें सींचना होगा
सूखे हुए अहसासों को फिर
भुरभुराकर रेत में दबाना होगा
हर अहसास का अहसास मिटाना होगा
कुछ इस तरह इन जिंदा अहसासों का
क़र्ज़ चुकाना होगा
3 टिप्पणियां:
बहुत ही भावपूर्ण और सुन्दर रचना है।
कुछ इस तरह इन जिंदा अहसासों का
क़र्ज़ चुकाना होगा
behad arthpoorn ,,...
badhai
इन अहसासों को इतने सुन्दर ढ़्ग से लिखकर हमसे परिचय कराया। बहुत खूब।
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