वो जो
दोस्त
हमसाया
बनने आया था
ख्वाबों को
पंख देने आया था
दोस्ती को
नया नाम
देने आया था
अपने अहसासों को
अपने दर्द को
अपने ख्वाबों को
अपनी खुशी औ गम को
अपने आंसुओं को
अपने ख्यालों को
बरसा कर
चला गया
और जो
हम पर बीती
उस जाने बिना
मेरे दर्द को
पहचाने बिना
मुझसे मेरा
हाल जाने बिना
मेरे ग़मों को
सुने बिना
मेरी खामोशी को
जिए बिना
मुझसे मेरे
आंसुओं का
सबब पूछे बिना
मेरे जज्बातों
से खेलकर
अपनी आपबीती
सुनाकर
हमको दर्द के
दरिया में
डुबाकर
न भूलने वाला
ज़ख्म देकर
एक आजाद
पंछी की मानिन्द
आकाश में
ऊँचाइयों को
नापने के लिए
अपने पंखों को
नई परवाज़
देने के लिए
उड़ गया
और हम यहाँ
खामोशी से
दोस्ती का
फ़र्ज़ निभाते रहे
उसके लिए
खुदा से
दुआ मांगते रहे
11 टिप्पणियां:
और हम यहाँ
खामोशी से
दोस्ती का
फ़र्ज़ निभाते रहे
उसके लिए
खुदा से
दुआ मांगते रहे
बहुत सुंदर बात लिखी आपने
पता नहीं पर अक्सर ऐसा ही होता है!
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गुलाबी कोंपलें
चाँद, बादल और शाम
वाह
मन के भाव बड़े कलात्मक रूप से आपकी रचना में चले आए हैं...वाह.
नीरज
last lines sach mein bahut gehre ehsaas liye hai,bahut hi achhi lagi rachana.
सच आपके पास ख्यालों की कमी नही है। लगता है आपके पास पहले से ही बहुत लिखा हुआ है। ये भी हर बार की तरह सुन्दर लिखी है।
वो जो
दोस्त
हमसाया
बनने आया था
ख्वाबों को
पंख देने आया था
believe .. this is the ultimate reading of ur poem..
very good work with words
फ़र्ज़ निभाते रहे
उसके लिए
खुदा से
दुआ मांगते रहे.
bahut achchi panktiya he, achcha likhti he aap./.bhavnaye vyakt hoti he aor kavita sarthak ho jati he.
badhai
और हम यहाँ
खामोशी से
दोस्ती का
फ़र्ज़ निभाते रहे
उसके लिए
खुदा से
दुआ मांगते रहे
Bhot sunder bhav Vandana ji..!!
behad khoobsoorti se aapne shiksyat ki hai ,
bahut khoob .
mere dard ko jane bina
meri khamoshi ko jeeye bina
vo chala gaya apani manjil ki or
good .
मर्मस्पर्शी!
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