पिंजरे का पंछी
उडान चाहे जितनी भर ले
मगर लौट कर वापस
जरूर आता है
ये पंछी न जाने
कहाँ कहाँ भटकता है
हर ओर सहारा
ढूंढता है
मगर हर तरफ़
निराशा ही निराशा है
हर ओर
तबाही ही तबाही है
कहीं कोई नीड़ नही ऐसा
जहाँ एक और
घोंसला बनाया जाए
थक कर , हार कर
टूट कर गिरने से पहले
फिर उसी
पिंजरे की ओर भागता है
उसे पिंजरे का मोल
अब समझ आता है
जहाँ उसे वो सब मिला
जिसकी चाह में उसने
उड़ान भरी
पिंजरे को तोड़कर
भागना चाहा
मगर इस पिंजरे में
उसे जो सुकून मिला
वो तो सारी कायनात
में न मिला
जानते हो.................
ये पिंजरा कौन सा है ............
ये है प्रेम का पिंजरा
ये है समर्पण का पिंजरा
भावनाओं का पिंजरा
अपने अस्तित्व का पिंजरा
त्याग का पिंजरा
अहसासों का पिंजरा
जहाँ ये सब मिलकर
इस पिंजरे को
नया रूप देते हैं
इसे रहने के
काबिल बनाते हैं
क्यूंकि
ये पिंजरा अनमोल है
7 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर शब्द और अद्भुत विचार...उत्तम रचना...
नीरज
वंदना जी,बहुत सुन्दर भाव हैं।सही बात है यदि प्रेम सच्चा हो तो प्रेम का बंधन अटूट होता है।बहुत सुन्दर रचना है।बधाई स्वीकारें।
जानते हो.................
ये पिंजरा कौन सा है ............
ये है प्रेम का पिंजरा
ये है समर्पण का पिंजरा
भावनाओं का पिंजरा
अपने अस्तित्व का पिंजरा
त्याग का पिंजरा
अहसासों का पिंजरा
जहाँ ये सब मिलकर
इस पिंजरे को
नया रूप देते हैं
बहुत सुंदर लगी यह पंक्तियाँ
पहले तो पिंजरे का पंछी, मैं कुछ और समझ रहा था पर जब आखिर में आया तो ये दूसरा ही पंछी निकला। और मीठा सा अहसास जगा गया।
ये है प्रेम का पिंजरा
ये है समर्पण का पिंजरा
भावनाओं का पिंजरा
अपने अस्तित्व का पिंजरा
त्याग का पिंजरा
अहसासों का पिंजरा
जहाँ ये सब मिलकर
इस पिंजरे को
नया रूप देते हैं
इसे रहने के
काबिल बनाते हैं
क्यूंकि
ये पिंजरा अनमोल है
सच बहुत उम्दा।
बहुत सुन्दर और भावभीनी कविता।
बहुत सुंदर भावों के साथ अच्छी रचना.....
भावों की प्रगाढता ही तो आपकी कविता है
सुन्दर रचना
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