मैंने पत्थरों को सुलगते देखा है
उनके दर्द को महसूस किया है
पत्थरों के गम में शरीक
पत्थरों के सिवा नही कोई
उनके अहसासों को
समझने का अहसास कौन करे
पत्थर किसे सुनाते हाल-ऐ-दिल
दिलों के दरवाज़े तो
पहले ही बंद थे
पत्थरों की खामोशी
में छुपा दर्द
पल पल उन्हें सुलगाता है
इन पल पल सुलगते
पत्थरों के लिए
कौन रोता है
आंसू गिरता है
मैंने पत्थरों को सुलगते देखा है
5 टिप्पणियां:
पत्थरों को ज़रिया बनाकर, बहुत सार्थक बाव्य प्रस्तुत किया
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गुलाबी कोंपलें
ऐसा लगा जैसे आपने पथरों के दर्द को लिखा नही जिया हो, बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति.
जिंदगी ब्लॉग की रचना पढने में नहीं आरही है /
वास्तव में सुलगते पत्थर का दर्द कौन महसूस कर सकता है जब कि लोगों के दिल ही पत्थर हो चुके है
vandana ji
dard ko jaise jiya ho aapne .....
badhai
वाह जी वाह क्या बात है पत्थरों के जरिये ही अपनी बात कह दी। वाकई आप कमाल का सोचती है। अद्भुत ।
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