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शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

हर चीज़ की कीमत होती है............

न जाने 
इतनी क़ुरबानी 
देनी पड़ी होगी
न जाने कितने 
अपनों का 
साथ छूटा होगा
न जाने कितनी 
हसरतों को 
दफ़न किया होगा
न जाने कितने 
मौसमों पर बसंत
आया  ही न होगा
न जाने कितनी
अरमानों की 
लाशों पर
पैर रख तू 
आगे बढ़ा होगा 
सिर्फ एक चाहत को
बुलंदी पर पहुँचाने के लिए 
आसमान को छूने की 
ऊंचाई पर पहुँचने की
चाहत की कुछ तो 
कीमत चुकानी पड़ती है
क्या हुआ गर 
"मैं" तुम से दूर हूँ तो 
क्या हुआ गर आज 
मेरी चाहत की कब्र 
पर पैर रख तुमने 
अपनी चाहतों को 
बुलंद किया 
मैं तो राह का 
वो पत्थर थी 
जो तुम्हारी
ऊंचाइयों में    
मील का पत्थर बनी 
शुक्र है पत्थर ही सही
तुम्हारी कामयाबी में 
कुछ तो बनी 
हर चीज़ की कीमत होती है
और ऊंचाई पर पहुँचने की
कीमत सभी को 
चुकानी पड़ती है
और तुम्हारी
ऊंचाई की
कीमत "मैं " हूँ

37 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

tumharee unchaai... kimat main , bahut sare rahasya hain inme

रश्मि प्रभा... ने कहा…

tumharee unchaai... kimat main , bahut sare rahasya hain inme

सदा ने कहा…

तुम्‍हारी ऊंचाई की कीमत मैं हूं ...बहुत कुछ कहती हुई यह पंक्तियां ...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

तुम्हारी ऊंचाई की
कीमत "मैं " हूँ..

अब भी कीमत समझ लें तो कोई बात हो ...अच्छी प्रस्तुति

Saleem Khan ने कहा…

हर चीज़ की कीमत होती है
और ऊंचाई पर पहुँचने की कीमत सभी को चुकानी पड़ती है

और तुम्हारी ऊंचाई की कीमत "मैं" हूँ!

राजीव तनेजा ने कहा…

आखिरी पंक्ति तुम्हारी ऊंचाई की कीमत "मैं' हूँ अपने आप सब कुछ कह गयी...
सुन्दर...भावपूर्ण रचना

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

सच कह रही हैं वंदना जी हर चीज़ की कीमत होती है... अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविता की कुछ पंक्तियाँ याद आ रही हैं...
"
सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफ़ी नहीं होती,
सबसे अलग-थलग,
परिवेश से पृथक,
अपनों से कटा-बँटा,
शून्य में अकेला खड़ा होना,
पहाड़ की महानता नहीं,
मजबूरी है।
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है।



जो जितना ऊँचा,

उतना एकाकी होता है,

हर भार को स्वयं ढोता है,

चेहरे पर मुस्कानें चिपका,

मन ही मन रोता है। "

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

ऊंचाई पर पहुँचने की
कीमत सभी को
चुकानी पड़ती है
-----------
जी हाँ!
त्याग करके ही
कुछ मिलता है!
---------
बहुत सटीक रचना!

PAWAN VIJAY ने कहा…

और ऊंचाई पर पहुँचने की
कीमत सभी को
चुकानी पड़ती है
मन को छू गयी

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत ही मर्म स्पर्शी कविता.

सादर

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

सचमुच इस बाज़ार में बिना क़ीमत चुकाए कुछ भी नहीं मिलता !
जीवन की यही सच्चाई है !
यथार्थपूर्ण, संवेदनशील कविता !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सत्य का सुन्दर प्रस्तुतीकरण।

राज भाटिय़ा ने कहा…

वाह जी बहुत ही सुंदर रचना, धन्यवाद

ZEAL ने कहा…

End of the poem is fantastic!
Badhaii Vandana ji .

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

मैं तो राह का वो पत्थर थी जो तुम्हारी ऊंचाइयों में मील का पत्थर बनी शुक्र है पत्थर ही सहीतुम्हारी कामयाबी में कुछ तो बनी

kaise har din kuchh aisa kah pati hain, jo ek dum se dil ko chhuta hai..:)

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

'मैं तो राह का

वो पत्थर थी

जो तुम्हारी

ऊंचाइयों में

मील का पत्थर बनी'

गहन मार्मिक भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति

Kunwar Kusumesh ने कहा…

कविता तो पूरी पढ़ गया पर न सन्दर्भ तलाश पाया रहस्य समझ पाया.

बेनामी ने कहा…

Keemat sabko chukani padtee hai phir keemat bekar kee cheej ho gayee na?!!!!!!!!!!!!!!!!!

Sushil Bakliwal ने कहा…

सत्य वचन.
उत्कृष्ट प्रस्तुति...

मनोज कुमार ने कहा…

यह कविता तरल संवेदनाओं से रची गई है, जो दिल से पढ़ने की अपेक्षा रखती है।

रजनीश तिवारी ने कहा…

महत्वाकांक्षा ! ऊपर पहुँचने हम अकेले बढ़ते हैं पर जब ऊंचाइयों से गिरते हैं तो हमें वही मिलते हैं रास्ते में , जिन्हें पीछे छोड़ हम ऊपर गए थे और तभी कीमत समझ में आती है ।
बहुत ही अच्छी एवं भावपूर्ण रचना !

OM KASHYAP ने कहा…

बहुत सुंदर जज़्बात...
बधाई ।

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

"ऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसिएसन" की अध्यक्षा बनाए जाने पर आपको ढेरों बधाईयाँ और शुभकामनाएँ.......

तुम्हारी ऊंचाई की
कीमत "मैं " हूँ.....
....बहुत ही गहरे भाव...बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

Patali-The-Village ने कहा…

बहुत ही सुंदर रचना, धन्यवाद|

rashmi ravija ने कहा…

बहुत ही मर्म स्पर्शी कविता.

Dr Varsha Singh ने कहा…

ज मेरी चाहत की कब्र पर पैर रख तुमने अपनी चाहतों को बुलंद किया मैं तो राह का वो पत्थर थी जो तुम्हारी ऊंचाइयों में
मील का पत्थर बनी.....

बहुत अच्छी कविता।

आपको"ऑल इंडिया ब्लॉगर्स एसोसिएसन" की अध्यक्ष बनाए जाने पर हार्दिक शुभकामनाएं .

अंकित कुमार पाण्डेय ने कहा…

बहुत ही मर्मस्पर्शी कविता

अजय कुमार ने कहा…

AIBA की अध्यक्षा को अभिवादन तथा बधाई ।
सुंदर रचना ,अंत के क्या कहने

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

वंदना जी,
नमस्ते!
मर्म स्पर्शी!
आशीष
--
लम्हा!!!

देवेन्द्र गौतम ने कहा…

हर चीज की कीमत होती है. और ऊंचाई पर पहुँचने की कीमत सभी को चुकानी होती है......वास्तव में महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए आज का इंसान किसी हद तक जा सकता है. किसी के कंधे का इस्तेमाल कर सकता है. वर्तमान समाज के असली चेहरे को रेखांकित करती कविता के लिए बधाई.

अवनीश सिंह ने कहा…

तुम्‍हारी ऊंचाई की कीमत मैं हूं
आखिरी पंक्ति में पूरी कविता का सार समाहित है
शानदार रचना

समय मिले तो हमारा भी मार्गदर्शन करें
http://avaneesh99.blogspot.com

Satish Saxena ने कहा…

बहुत खूब ! शुभकामनायें वंदना जी !

Vijuy Ronjan ने कहा…

Aisi Unchayi mujhe pasand nahin jahan apno se bicharne ki keemat chukani pare..
Par aap ne Unchayi ki keemat me khud ko kho dene ki sambhawnaaon par acche vichar prakat kiye hain.badhayi

Ravi Rajbhar ने कहा…

Bahut sunder ..!
Badhai swikaren.

ज्योति सिंह ने कहा…

र ऊंचाई पर पहुँचने कीकीमत सभी को चुकानी पड़ती हैऔर तुम्हारी ऊंचाई की कीमत "मैं " हूँ
bahut hi sundar

Rakesh Kumar ने कहा…

'तुम्हारी ऊंचाई की कीमत "मैं" हूँ'मै की कुर्बानी
तो देनी ही पड़ती है ऊंचाई पाने के लिए.लगता है कुछ टीस सी है इस 'मैं ' को खोने की ?

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत अच्छी कविता।