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मंगलवार, 16 दिसंबर 2008

मुझमें न ढूंढ मुझे
राख के ढेर में अब
कोई चिनगारी नही
उम्र भर
इक चिता जलती रही
लकडियाँ कम पड़ गयीं
तो अरमान सुलगते रहे
जब कुछ न बचा
तो राख बन गई
बरसों से पड़ी है ये
कोई इसे भी उठाने न आया
अब तो इस राख पर भी
वक्त की धूल जम गई है
इसे हटाने में तो
जन्मों बीत जायेंगे
फिर बताओ
कहाँ से ,कैसे
मुझे मुझमें पाओगे

7 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बढिया लिखा है-
मुझमें न ढूंढ मुझे
राख के ढेर में अब
कोई चिनगारी नही
उम्र भर
इक चिता जलती रही
लकडियाँ कम पड़ गयीं

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

लकडियाँ कम पड़ गयीं
तो अरमान सुलगते रहे
जब कुछ न बचा
तो राख बन गई
इन्हे शब्द कहूं या कुछ और दिल से निकली कोई चिंगारी सी लगती है जो सुलगा रही है अभी भी ज़िन्दगी की चिता को..
अब तो इस राख पर भी
वक्त की धूल जम गई है
इसे हटाने में तो
जन्मों बीत जायेंगे
फिर बताओ
कहाँ से ,कैसे
मुझे मुझमें पाओगे
इसकी विवेचना करना मुश्किल है पर फिर भी कोशिश करता हूं ये एहसास है जो हर गर्द को हटा देता है और दूरियों को करीब से चूमता है..
एहसासों का रिश्ता मजबूरियों का मोहताज़ नही होता और जरूरतों का जिस्मानी रिश्तों के जैसे...
वो पाक़ और पवित्र नाता है वो धुल शायद एहसासों की आंधी उडा ले जाए...


अक्षय-मन

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

लकडियाँ कम पड़ गयीं
तो अरमान सुलगते रहे
जब कुछ न बचा
तो राख बन गई
इन्हे शब्द कहूं या कुछ और दिल से निकली कोई चिंगारी सी लगती है जो सुलगा रही है अभी भी ज़िन्दगी की चिता को..
अब तो इस राख पर भी
वक्त की धूल जम गई है
इसे हटाने में तो
जन्मों बीत जायेंगे
फिर बताओ
कहाँ से ,कैसे
मुझे मुझमें पाओगे
इसकी विवेचना करना मुश्किल है पर फिर भी कोशिश करता हूं ये एहसास है जो हर गर्द को हटा देता है और दूरियों को करीब से चूमता है..
एहसासों का रिश्ता मजबूरियों का मोहताज़ नही होता और जरूरतों का जिस्मानी रिश्तों के जैसे...
वो पाक़ और पवित्र नाता है वो धुल शायद एहसासों की आंधी उडा ले जाए...

तीसरा कदम ने कहा…

बहुत कम लोग हैं जो कविता बिना शीर्षक के लिखते हैं
बहुत खूब......बहुत अच्छा लिखा.............

Shubhashish Pandey ने कहा…

sunder abhiyakti

vijay kumar sappatti ने कहा…

main kya likhun..

मुझमें न ढूंढ मुझे
राख के ढेर में अब
कोई चिनगारी नही
उम्र भर
इक चिता जलती रही
लकडियाँ कम पड़ गयीं
तो अरमान सुलगते रहे
जब कुछ न बचा
तो राख बन गई

poori ki poori nazm apne aap mein ek kahani hai ..
mujhe mujhme kaise paaonge....


likho yaar aur likho..

pls visit my blog for some new poems....

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

राख के ढेर में चिंगारी छिपी होती है।
वीराने में भी फुलवारी छिपी होती है।।