क्यूँ उदास है वो फूल बाग़ का,शायद किसी का इंतज़ार है उसे
क्यूँ खिलते हैं ये फूल बाग़ में,शायद किसी पथिक की थकन उतरने के लिए
ये देते हैं शांती आंखों को,दिए जाते हैं उपहार में
मगर किसी ने पूछा फूल से उसके उत्पन्न होने का सबब
यूँ तो लगते हैं सेहरे में भी फूल और चढाये जाते हैं अर्थी पर भी
पर क्या बीतती है उस लम्हा दिल पर फूल के
न जानना चाहा इसका सबब किसी ने
यूँ तो डाली से तोडा जाता है और फेंकने के बाद कुचला भी जाता है
क्या गुजरी,कितने ज़ख्म बने दिल पर फूल के,न समझ सका कोई
हर किसी ने निकला मतलब अपना अपना इससे
मगर न पूछा किसी ने की तुझे दर्द कहाँ है
रोते हैं ये फूल भी मगर न देखा रोना इनका किसी ने
अगर सुनना है फूलों का रुदन तो ख़ुद फूल बन जा
ये शायद खिलते और मुरझाते हैं दूसरों को सुकून देने के लिए
कर देते हैं अपनी ज़िन्दगी बलिदान खुशियों पे सभी की
अगर कुच्छ पाना या खोना है तो सिख फूलों से
जो लेते हैं गम और खोते हैं अपना रंग रूप
और फिर भी रहते हैं सदा मुस्कुराते
2 टिप्पणियां:
सुन्दर रचना है।बधाई।
bahut hi ghera aur uttam .......
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