ख़ुद को मिटाया था जब सोचा था किसी को पा लेंगे
मगर ख़ुद को मिटाकर भी उसको ना पा सकें
वो मेरा कभी हुआ ही नही मुझको भी अपना बनाया नही
इस कांच से नाज़ुक रिश्ते को उसने कभी अपनाया ही नही
फिर क्या हो उस कोशिश का जो मैं हमेशा करती रही
तुझको पाने की कोशिश में ख़ुद को भी भुलाती रही
12 टिप्पणियां:
आह ! बहुत खूब
ख़ुद को मिटाया था जब सोचा था किसी को पा लेंगे
ये पंक्तियाँ ही बहुत कुछ कहे जाती हैं और पूरी रचना तो जिंदगी का अध्याय सी लगती है
अक्षय-मन
सूनेपन को कागज पर उतार दिया है आपने|
मीर याद आ गए....
"गरचे कब देखते तो, पर देखो,
आरजू है की तुम इधर देखो|
इश्क क्या क्या हमें दिखाता है,
आह तुम भी तो एक नजर देखो|
पहुचे हैं हम करीब मरने के,
यानी जाते हैं दूर अगर देखो|
बहोत ही बढ़िया लिखा है आपने ढेरो बधाई स्वीकारें...
अर्श
"ZAKHM" gahre hai, jyada kuredna theek nahi hai, shabdo ka chunao achchha ban pada hai.
-------------------------"VISHAL"
vandana ji , riste hamesha risne ke liye hi hote hain isliye afsos nahi ho chahiye .....
bahut achchha likha hai .
mere blog ko itni bareeki se dekhne ke liye shukriya .
kuchh likhne se astitv bodh ho jata hai .or jab koi kuchh tareef karde tab or likhne ki ichchha ho jati hai .
shukriya .
bahut sundar kavita , aakhri line तुझको पाने की कोशिश में ख़ुद को भी भुलाती रही bahut umda ban padi hai ...
bahut si badhai ...
vijay
pls visit my blog :
http://poemsofvijay.blogspot.com/
shukriya vandana ji ...
vandana ji bahut badhiya hai.badhai.
Mam,
imaandaari se kahoon to sudhaar ki gunjaish hai
ek aur baat..aapke profile mein likha hai ki aapko padhne ka "shok" hai,zara wo thik kar le aur is shauk ko yun hi badne de...meri wishes :)
First of all Wish u Very Happy New Year...
Tumako pane ki koshish me khud ko bhulati rahi...
Bahut sundar kavita ....
Mindblowing....great work..
Regards..
Vandana ji .. aap bahut achcha likhte ho....maine aapke saare blogs padhe ..
Nav varsh ki hardik shubkamnayen.
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