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बुधवार, 17 दिसंबर 2008

पत्थर

ता-उम्र पत्थरों को पूजा
पत्थरों को चाहा
ये जानते हुए भी
पत्थरों में दिल नही होता
पत्थरों के ख्वाब नही होते
पत्थरों में प्यार नही होता
कोई अहसास नही होता
पत्थरों को दर्द नही होता
कोई जज़्बात नही होते
फिर भी पत्थरों को ही
अपना खुदा बनाया
पत्थरों की चोट खा-खाकर
पत्थरों ने ही
हमको भी पत्थर बनाया
हर अहसास से परे
पत्थर सिर्फ़ पत्थर होते हैं
जो चोट के सिवा
कुछ नही देते

9 टिप्‍पणियां:

संत शर्मा ने कहा…

Mai to is mamle me sirf itna hi kah shakta hi ki, yadi visheash aatal ho aur bharpur aastha ho to patthar bhi iiswar ki anubhuti dila jate hai, baki sab kuch apne -apne anubhav ki baate hai.

travel30 ने कहा…

bahut khub bahut sundar vandana ji....

पत्थरों की चोट खा-खाकर
पत्थरों ने ही
हमको भी पत्थर बनाया

adil farsi ने कहा…

patthar to patthar hai.bahut khoob

ss ने कहा…

क्या खूब लिखा है आपने.

"पत्थरों की चोट खा-खाकर
पत्थरों ने ही
हमको भी पत्थर बनाया"

तीसरा कदम ने कहा…

पत्थरों में खुदा होते है. बिल्कुल सही मानना है.
१ पत्थर (खुदा ) को दिल की क्या जरूरत जब ये हमारे दिल में रहते हैं.....
२ पत्थर (खुदा ) के भी ख्वाब होने लगे तो उन्हें पूरे कौन करेगा जबकि हम जानते हैं की ख्वाब खुदा, ईश्वर.. ही पूरे करते हैं......
३ क्योंकि पत्थर (खुदा) सभी को प्यार करेंगे तो बुरे लोगो को सजा कौन देगा....
४ शायद पत्थर वो होते हैं जो आशानी से किसी भी चोट को सह लेते हैं.....
५ पत्थर (खुदा ) को दर्द होता है.... तभी तो उन्होंने वक्त को मरहम बनाया.....
६ पत्थरों मैं अगर जज्बात होते , तो कोई महनत नही करेगा और पत्थर (खुदा ) किसी की परीक्षा नही लेगें , और हर मांग को झट से पूरा कर देंगे........
७ पत्थर (खुदा) चोट देते हैं ..... तभी तो आदमी संभलता है...........


शायद पत्थरों में भी खुदा होता है..........

vijay kumar sappatti ने कहा…

jeevan bhi kya pathoro ki pooja aur patthoro ka jeena hai ..

Pls visit my blog for new poems..

vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

प्यार का पल चाहते पाषाण भी हैं।

इन पहाड़ों में बसे कुछ प्राण भी हैं।।


पत्थरों में प्राण भी हैं, और हैं पाषाण भी।

पत्थरों में आदमी हैं, और हैं भगवान भी।।

Sapna Nigam ( mitanigoth.blogspot.com ) ने कहा…

सुंदर अभिव्यक्ति.

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

माना कि चोट देते हैं पत्त्थर
पर जीना भी सिखा देते हैं ये पत्थर

ये तो सिर्फ मेरा मानना है. आपकी कविता बहुत अच्छी लगी.


सादर