रोज नए चेहरे
छलने आते हैं
मुझे छल छल
जाते हैं और मैं
उस छल को जानकर भी
खुद को छलवाती हूँ
और कुछ देर के लिए
हकीकत से
पलायन कर जाती हूँ
मै ऐसा क्यूँ करती हूँ छलने आते हैं
मुझे छल छल
जाते हैं और मैं
उस छल को जानकर भी
खुद को छलवाती हूँ
और कुछ देर के लिए
हकीकत से
पलायन कर जाती हूँ
ये एक प्रश्न है जिसका
उत्तर नहीं पाती हूँ
या
शायद जानती भी हूँ
मगर अन्जान रहना
चाहती हूँ
कुछ देर भ्रम में
जीने के लिए
या
खुद से ही
भागना चाहती हूँ
इसलिए भ्रम में
जीकर हकीकत से
टकराने की कुछ
हिम्मत जुटाती हूँ
और बार बार
छली जाकर
एक नया अंकुर
उपजाती हूँ
खुद के पलायन से
नया तोहफा पाती हूँ
जीने के नए
मानक बना पाती हूँ
वो कहते हैं ना
गिर गिर कर ही इन्सान
संभालना सीखता है
और मैं खुद को छलवाकर
जीना सीखती हूँ
जीने के नए मानक
गढ़ती हूँ
33 टिप्पणियां:
आपकी कविता आज मार्गदर्शन कर रही है..जीवन को सहजता और सुगमता से जीने की कला सिखा रही है... सुन्दर कविता प्रवाह और कथ्य दोनों में...
और मैं खुद को छलवाकर
जीना सीखती हूं ... बहुत खूब ।
bohot bohot khub...!
शायद इसी तरह इंसान जीना सीखता है । धीरे धीरे सच्चाइयों से रूबरू होता है और एक नयी ऊर्जा, नए अनुभव और नए मनोबल के साथ वापस डट जाता है ।
इस छल में भी आनन्द मिल रहा है आपको!
सुन्दर अभिव्यक्ति!
सच्चाई से रुबरु करवाती इंसान की मनःस्थिती को व्यक्त करती...उत्कृष्ट रचना।
'खुद के पलायन से
नया तोहफा पाती हूँ '
जीवन के मर्म को बयां करती हुई सुन्दर रचना
चैन से जीने का फार्मूला भी शायद यही है...
गिर गिर कर ही इन्सान
संभालना सीखता है
और मैं खुद को छलवाकर
जीना सीखती हूँ
यही नियति है...और जीने के लिए ऐसे अनुभव भी जरूरी हैं.
सार्थक अभिव्यक्ति
chhal ko jante hue chhala jana ... yah apneaap me ajeeb si sthiti hai..
जीवन को अनुभव की आँच में तपा कर उसे तराशने का अंदाज़ अच्छा लगा !
हम इसी तरह जिन्दगी से सब सीखते जाते हैं ..गिरना और और फिर संभलना !
kya baat....kya baat....kya baat....
छले जाने में भी आपको एक नया अनुभव हो रहा है भविष्य में यह कम आयेगा अच्छे भाव ,बधाई
चलना सीखने के लिए ठोकर खाना ही होता है ...
. बहुत खूब ।
हर दिन कुछ न कुछ सिखा जाता है।
गिरने पर ही तो चोट का अहसास होता है। बेहद ही सुन्दर रचना। आभार।
कुछ छलावों के साथ जीना ही अपने को सुख देता है , हर हाल में जीवन में सुख कि तलाश और जीने के सबब को पा लेने का सन्देश देती कविता के लिए आभार !
सुंदर कविता
.
ज़रा सोंच के देखें क्या हम सच मैं इतने बेवकूफ हैं
sunder kavita
.
ज़रा सोंच के देखें क्या हम सच मैं इतने बेवकूफ हैं
इसमें भी एक आनंद है।
यह जीवन खुद एक छलावा है और यही हमें इंसान और हैवान बनाता है..
सुन्दर अभिव्यक्ति पर अकस्मात् समाप्ति..
वाह जी बहुत खुब, धन्यवाद
छले जाने के बाद ही संभलना आता है..... और नए मानक तय होते हैं.... खूब
वंदना जी,
बहुत ही खुबसूरत अहसास......ऐसा शायद हर किसी ने महसूस किया होगा ......जानते हुए भी उसे कोई छल जाता है......पर मुझे लगता ठीक उसी पल उसकी आत्मा एक सीढ़ी और निचे गिरती है.....और हमारी एक ऊपर उठती है......शुभकामनायें इस पोस्ट के लिए|
सही कहा गिर गिर कर ही आदमी सीखता है। बहुत अच्छे भाव। शुभकामनायें।
bahut sahaz,saral aur sunder kavita hai.
वाह...क्या बात कही...
सुन्दर भाव और मोहक अभिव्यक्ति...
वंदना जी , शायद यही जिंदगी की लुकाछिपी है. ..... गहरे जज्बात के साथ सुंदर प्रस्तुति.
और मैं खुद को छलवाकर
जीना सीखती हूं ...
सुंदर भाव
bahut khub.................
vandana, bahut dino k e baad tumne bahut acchi rachna likhi hai ...... padhne ke baad insaan ko apne hi roop ke darshan hote hai .. badhayi ..
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