बुधवार, 29 सितंबर 2010
सोमवार, 27 सितंबर 2010
या खुदा ...........
या खुदा ,
तू दिल बनाता क्यूँ है
दिल दिया तो
इश्क जगाता क्यूँ है
प्रेम के सब्जबाग
दिखाता क्यूँ है
जब मिलाना ही ना था
तो अहसास
जगाता क्यूँ है
इश्क कराया तो
इश्क को रुसवा
कराता क्यूँ है
गुरुवार, 23 सितंबर 2010
क्षितिज पर एक बार फिर................
मैं
दरिया हूँ
ना बाँधो
मुझको
बहने दो
अपने किनारों से
लगते - लगते
मत तानो
बंदिशों के
बाँध
मत बाँधो
पंखों की
परवाज़ को
मत लगाओ
मेरे आसमानों पर
हवाओं के पहरे
एक बार
उड़ान
भरने तो दो
एक बार
बंदिशें तोड़
बहने तो दो
एक बार
खुले आसमान में
विचरने तो दो
फिर देखो
मेरी परवाज़ को
मेरी उडान को
धरती आसमां में
सिमट जाएगी
आसमां धरती सा
हो जायेगा
और शायद
क्षितिज पर
एक बार फिर
मिलन हो जायेगा
दरिया हूँ
ना बाँधो
मुझको
बहने दो
अपने किनारों से
लगते - लगते
मत तानो
बंदिशों के
बाँध
मत बाँधो
पंखों की
परवाज़ को
मत लगाओ
मेरे आसमानों पर
हवाओं के पहरे
एक बार
उड़ान
भरने तो दो
एक बार
बंदिशें तोड़
बहने तो दो
एक बार
खुले आसमान में
विचरने तो दो
फिर देखो
मेरी परवाज़ को
मेरी उडान को
धरती आसमां में
सिमट जाएगी
आसमां धरती सा
हो जायेगा
और शायद
क्षितिज पर
एक बार फिर
मिलन हो जायेगा
सोमवार, 20 सितंबर 2010
एक मिनट
जब कोई
कहता है
रुकना ज़रा
एक मिनट !
आह - सी
निकल जाती है
ये एक मिनट
कितने सितम
ढाता है
ज़रा पूछो उससे
जो इंतजार
के पल
बिताता है
इस एक
मिनट में
वो कितने
जन्म जी
जाता है
ये एक मिनट
किसी के लिए
एक युग बन
जाता है
और उस युग में
दिल ना जाने
कितने जन्म
जी जाता है
और हर जन्म
किसी के
इंतज़ार में
गुज़र जाता है
मगर वो
एक मिनट
वहीं रुक
जाता है
कहता है
रुकना ज़रा
एक मिनट !
आह - सी
निकल जाती है
ये एक मिनट
कितने सितम
ढाता है
ज़रा पूछो उससे
जो इंतजार
के पल
बिताता है
इस एक
मिनट में
वो कितने
जन्म जी
जाता है
ये एक मिनट
किसी के लिए
एक युग बन
जाता है
और उस युग में
दिल ना जाने
कितने जन्म
जी जाता है
और हर जन्म
किसी के
इंतज़ार में
गुज़र जाता है
मगर वो
एक मिनट
वहीं रुक
जाता है
गुरुवार, 16 सितंबर 2010
गर होती कोई कशिश हम में
किसी के
ख्वाबों में
पले होते
किसी के
दिल की
धडकनों की
आवाज़ होते
किसी के
सुरों की
सरगम होते
किसी के
छंदों का
अलंकार होते
किसी के
दिल के
उदगार होते
किसी के लिए
ऊषा की
पहली किरण होते
किसी के
अरमानों में
सांझ की
दुल्हन से
सजे होते
किसी के
गीतों में
प्यार बन
ढले होते
किसी कवि की
कल्पना होते
मगर यूं ना
ठुकराए जाते
गर होती
कोई कशिश
हम में
ख्वाबों में
पले होते
किसी के
दिल की
धडकनों की
आवाज़ होते
किसी के
सुरों की
सरगम होते
किसी के
छंदों का
अलंकार होते
किसी के
दिल के
उदगार होते
किसी के लिए
ऊषा की
पहली किरण होते
किसी के
अरमानों में
सांझ की
दुल्हन से
सजे होते
किसी के
गीतों में
प्यार बन
ढले होते
किसी कवि की
कल्पना होते
मगर यूं ना
ठुकराए जाते
गर होती
कोई कशिश
हम में
रविवार, 12 सितंबर 2010
टुकडे मोहब्बत के
परछाइयों में छुपे जितने साये हैं
सब मोहब्बत के निशाँ उभर आये हैं
भीड़ के दामन में छुपे साए हैं
मोहब्बत के दर्द यूँ ही नहीं उभर आये हैं
सब दामन बचा के निकल गए
किसी ने मोहब्बत को छुआ ही नहीं
अपने साये से भी घबरा जाते हैं
अब भीड़ बर्दाश्त नहीं होती
इतनी ख़ामोशी अच्छी नहीं लगती
तेरे रुखसार पर मायूसी अच्छी नहीं लगती
कुछ खनक तो होती
गर चोट लगी होती
कुछ गम तेरी यादों के
कुछ गम मेरी आहों के
कुछ सितम तेरी निगाहों के
बस गुजर रही है ज़िन्दगी
ठीक- ठाक सी
कातिल निगाहों से
गर मर गए होते
तो यूँ दर -दर
ना भटक रहे होते
जिन्हें लिबास मिले ही नही
उस जगह माथा न रगड
जहाँ देवता हैं ही नही
उस शख्स को आवाज़ न दे
जो तुम्हारा है ही नही
सब मोहब्बत के निशाँ उभर आये हैं
भीड़ के दामन में छुपे साए हैं
मोहब्बत के दर्द यूँ ही नहीं उभर आये हैं
सब दामन बचा के निकल गए
किसी ने मोहब्बत को छुआ ही नहीं
अपने साये से भी घबरा जाते हैं
अब भीड़ बर्दाश्त नहीं होती
इतनी ख़ामोशी अच्छी नहीं लगती
तेरे रुखसार पर मायूसी अच्छी नहीं लगती
कुछ खनक तो होती
गर चोट लगी होती
कुछ गम तेरी यादों के
कुछ गम मेरी आहों के
कुछ सितम तेरी निगाहों के
बस गुजर रही है ज़िन्दगी
ठीक- ठाक सी
कातिल निगाहों से
गर मर गए होते
तो यूँ दर -दर
ना भटक रहे होते
उन रिश्तों के लिये अश्क न बहा
जिन्हें लिबास मिले ही नही
उस जगह माथा न रगड
जहाँ देवता हैं ही नही
उस शख्स को आवाज़ न दे
जो तुम्हारा है ही नही
गुरुवार, 9 सितंबर 2010
शायद तब ही .................
जो दीन ईमान से
ऊपर उठ जाये
जो जिस्म के
तूफ़ान से
ऊपर उठ जाए
दीवानगी
पागलपन जैसे
शब्दों की महत्ता
ख़त्म हो जाए
हर चाहत
हर अहसास
के स्रोत
लुप्त होने लगें
जहाँ विरह
श्रृंगार भी
गौण हो जायें
जब सारे शब्द
विलुप्त हो जायें
जहाँ दुनिया भी
सजदा करने लगे
जहाँ खुदा भी
छोटा लगने लगे
जब रूहों का
मिलन होने लगे
जब बिना कहे ही
दूजे की आवाज़
सुनने लगें
तरंगों पर ही
भावों का
आदान- प्रदान
होने लगे
इक दूजे में ही
प्राण बसने लगे
जहाँ ज़िन्दगी
और मौत की भी
परवाह ना हो
सिर्फ आत्मिक
मिलन का ही
आधिपत्य हो
आग का दरिया
मोम के घोड़े
पर सवार हो
जब बिना
पिघले पार
कर जाए
तब जानना
मोहब्बत हुई है
या
यही मोहब्बत
होती है
या
शायद तब ही
मोहब्बत होती है
ऊपर उठ जाये
जो जिस्म के
तूफ़ान से
ऊपर उठ जाए
दीवानगी
पागलपन जैसे
शब्दों की महत्ता
ख़त्म हो जाए
हर चाहत
हर अहसास
के स्रोत
लुप्त होने लगें
जहाँ विरह
श्रृंगार भी
गौण हो जायें
जब सारे शब्द
विलुप्त हो जायें
जहाँ दुनिया भी
सजदा करने लगे
जहाँ खुदा भी
छोटा लगने लगे
जब रूहों का
मिलन होने लगे
जब बिना कहे ही
दूजे की आवाज़
सुनने लगें
तरंगों पर ही
भावों का
आदान- प्रदान
होने लगे
इक दूजे में ही
प्राण बसने लगे
जहाँ ज़िन्दगी
और मौत की भी
परवाह ना हो
सिर्फ आत्मिक
मिलन का ही
आधिपत्य हो
आग का दरिया
मोम के घोड़े
पर सवार हो
जब बिना
पिघले पार
कर जाए
तब जानना
मोहब्बत हुई है
या
यही मोहब्बत
होती है
या
शायद तब ही
मोहब्बत होती है
मंगलवार, 7 सितंबर 2010
लिखना मुझे कब आता है
लिखना मुझे
कब आता है
बस आपके दर्द
आपकी नज़र
करती हूँ
दर्द की चादर
ओढकर
जब तुम सोते हो
मै चुपके से
आ जाती हूँ
तुम्हारे दर्द के
कुछ क्षणों
को तुमसे
चुरा ले जाती हूँ
कब आता है
बस आपके दर्द
आपकी नज़र
करती हूँ
दर्द की चादर
ओढकर
जब तुम सोते हो
मै चुपके से
आ जाती हूँ
तुम्हारे दर्द के
कुछ क्षणों
को तुमसे
चुरा ले जाती हूँ
फिर उन अहसासों
को जीती हूँ
तुम्हारे दर्द
को जीती हूँ
तुम्हारे दर्द
को पीती हूँ
और फिर इक
और फिर इक
नज़्म लिखती हूँ
मगर फिर भी
अधूरा रहता है
शायद तुम्हारे
शायद तुम्हारे
दर्द को
पूरी तरह ना
पूरी तरह ना
पकड पाती हूँ
उस वेदना
उस वेदना
की अथाह
गहराई मे ना
गहराई मे ना
उतर पाती हूँ
तभी हर बार
तभी हर बार
पूरी तरह
ना उतार पाती हूँ
शायद इसिलिये
बार -बार
ना उतार पाती हूँ
शायद इसिलिये
बार -बार
मैं लिखती हूँ
तुम्हारे अधूरे - बिखरे
दर्द -भरे पलो को
तुम्हारे अधूरे - बिखरे
दर्द -भरे पलो को
तुम्हारी नज़र
ही करती हूँ
गुरुवार, 2 सितंबर 2010
राधे राधे
तुम बिन
कैसे बीते
दिवस हमारे
तन मथुरा था
मन बृज में था
निस दिन
रोवत नयन हमारे
राधे राधे
तुम बिन
कैसे बीते
दिवस हमारे
संसार में
जीना था
कर्म भी
करना था
प्रेम को
तो जाने
सिर्फ ह्रदय
हमारे
राधे राधे
तुम बिन
कैसे बीते
दिवस हमारे
निष्ठुर कहाया
निर्मोही बनाया
किसी ने जाना
भेद हमारा
तुम बिन
कैसे बीती
रैन हमारी
राधे राधे
तुम बिन
कैसे बीते
दिवस हमारे
दूर मैं कब था
तुम तो
बसती थी
दिल में हमारे
द्वैत का पर्दा
कब था प्यारी
तुम बिन
अधूरा था
अस्तित्व हमारा
राधे राधे
तुम बिन
कैसे बीते
दिवस हमारे
विरह अवस्था
दोनों की थी
उद्दात प्रेम की
लहर बही थी
इक दूजे बिन
कब पूर्ण थे
अस्तित्व हमारे
राधे राधे
तुम बिन
कैसे बीते
दिवस हमारे
हे सर्वेश्वरी
प्यारी
ये तुम जानो
या हम जाने
राधे राधे
तुम बिन
कैसे बीते
दिवस हमारे
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