विभीषिका बना रही हूँ
अपने चेहरे तुम्हें दिखा रही हूँ
अब भी संभल जाना
समय रहते चेत जाना
वो कुसुम कली सी खिलखिला रही थी
अपनी अठखेलियों से लुभा रही थी
नन्ही शिशु सी मुस्कुरा रही है
हर जीव में उमंग उत्साह जगा रही थी
ना जाने कैसे काल की कुदृष्टि पड़ी
जहाँ जीवन लहलहा रहा था
वहाँ दोहन का राक्षस बाँछें खिलाये
दबे पाँव चला आ रहा था
किसी को ना पता चला
मानव के स्वार्थ रुपी राक्षस ने
उस का सारा सौंदर्य लील लिया
ना जाने कौन किस पर अट्टहास कर रहा था
मगर उसका सौंदर्य तो पैशाचिक भेंट चढ़ चुका था
बस दोषारोपण का सिलसिला चल निकला
मगर खुद पर ना किसी ने दृष्टिपात किया
हाय ! ये मैंने क्या किया
इतने सुन्दर सौंदर्य को विनष्ट किया
अब हाथ मल पछताने से कुछ ना होगा
जिसने जो खोया उसका न कही भरण होगा
अब ना वो प्राकृतिक सौंदर्य होगा
अब ना वैसा रूप लावण्य होगा
सोच सोच प्रकृति सहमी जाती है
और मानव कृत विनाशलीला पर
हैरान हुयी जाती है ...........
जहाँ ना शिव का डमरू बजा ना मृदंग
फिर भी
हे ईश्वर ! ये कैसा तांडव हुआ ...........
क्या अब भी कोई समझ पायेगा
क्या अब भी ये मानव जान पायेगा
या फिर हमेशा की तरह पल्ला झाड
फिर से दोहन में जुट जाएगा ...........
या फिर प्रकृति को हर बार
अपनी आबरू बचाने के लिए
रौद्र रूप धारण करना होगा
ये तो समय की परतों में छुपा है
मगर
आज का सच तो शर्मनाक हुआ है
जहाँ प्रकृति कुपित हुयी है
अपनी लज्जा ढांपने को मजबूर हुयी है
वो तो वक्त वक्त पर
धीमी हुंकारें भरती रही
कोशिश अपनी करती रही
शायद अब समझ जाएगा
मेरी करवट से ही जाग जाएगा
मगर न इस पर असर हुआ
इसके दुष्कृत्य ना बंद हुए
थक हार कर मुझे ही कदम बढ़ाना पड़ा
ना केवल अपने सौंदर्य को बचाने के लिए
बल्कि इसी सम्पूर्ण मानव जात को बचाने के लिए
कुछ अपनों की बलि लेनी पड़ी
ताकि आने वाली पीढ़ी की सांसें ना फूले
एक स्वस्थ वायुमंडल में वो जन्म ले
क्योंकि ...........सुना है
कैंसरग्रस्त हिस्से को काट फेंकने पर ही जीवनदान मिला करता है
और
तुम्हारी दोहन की आदत
वो ही कैंसरग्रस्त हिस्सा है
जिसके लिए ये कदम उठाना पड़ा
अपना रौद्र रूप दिखाना पड़ा
अब भी संभल जाना
मत मुझे इलज़ाम देना
वरना
कल फिर किसी भयानक त्रासदी के लिए तैयार रहना
तो क्या तैयार हो तुम .............ओ उम्दा दिमाग वाले मानव !
चेतावनी :(मत कर दोहन सब लील जाऊंगी ,अपनी पर आई तो सब बहा ले जाऊंगी )