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रविवार, 27 अक्तूबर 2013

अब कभी मत कहना ………सब कुछ है

किसने कहा नहीं हूँ 
मैं तो वहीं हूँ हर पल 
जब जब तुमने 
अपने पुरज़ोर ख्यालों में 
मेरा आलिंगन किया , 
मुझे पुकारा और 
समय के सीने पर 
एक बोसा लिया 
कब और कहाँ दूर हूँ तुमसे 
सिर्फ़ शरीरों का होना ही तो होना नहीं होता जानाँ ………

जब ख्यालों की सरजमीं पर 
यादों की कोंपलें खिलखिलाती हों ,
हर लम्हे में एक तस्वीर मुस्काती हो, 
हर ज़र्रे ज़र्रे में महबूब की झलक नज़र आती हो 
वहाँ कौन किससे कब जुदा हुआ है 
ये तो बस अक्सों का परावर्तन हुआ है 

तुममें समायी मैं 
तुम्हारी आँखों से देखती हूँ कायनात के रंगों को , 
तुममें समायी मैं 
साँस लेती हूँ तुम्हारे ख्यालों के आवागमन से , 
तुममें समायी मैं 
धडकती हूँ बिना दिल के भी तुम्हारे रोम रोम में 
तो कहो भला कहाँ हूँ मैं जुदा ………तुमसे ! 

अब कभी मत कहना ………सब कुछ है …बस तुम ही नही हो कहीं 
क्योंकि 
तुम्हारा होना गवाह है मेरे होने का ……………. 

मोहब्बत में विरह की वेदी पर आस पास गिरी समिधा को कभी देखना गौर से……. 

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

प्रियतमे !

प्रियतमे !






इतना कह कर 
सोच में पड़ा हूँ 
अब तुम्हें 
और क्या संबोधन दूं 
अब तुमसे 
और क्या कहूं 
मेरा तो मुझमे 
जो कुछ था 
सब इसी में समाहित हो गया 
मेरी जमीं 
मेरा आकाश 
मेरा जिस्म 
मेरी जाँ 
मेरी धूप 
मेरी छाँव 
मेरा जीवन 
मेरे प्राण 
मेरे ख्वाब 
मेरे अहसास 
मेरा स्वार्थ 
मेरा प्यार 
कुछ भी तो अब मेरा ना रहा 

जैसे सब कुछ समाहित है 
सिर्फ एक प्रणव में 
बस कुछ वैसे ही 
मेरा प्रणव हो तुम 

प्रियतमे !
कहो , अब और क्या संबोधन दूँ  तुम्हें 

रविवार, 20 अक्तूबर 2013

खनखनाहट की पाजेब

तुम्हारी हँसी में 
सुर है 
लय है 
ताल है 
रिदम है 
एक संगीत है 
मानो 
मंदिर में घंटियाँ बज उठी हों 
और 
आराधना पूरी हो गयी हो 
जब कहा उसने 
हँसी की खिलखिलाहट में 
हँसी के चौबारों पर सैंकडों गुलाब खिल उठे 
ये उसके सुनने की नफ़ासत थी 
या कोई ख्वाब सुनहरा परोसा था उसने 

खनखनाहट की पाजेब उम्र की बाराहदरी में दूर तक घुँघरू छनकाती  रही ……… 




बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

इस कदर भी कोई तन्हा ना हो कभी खुद से भी …

बूँद बूँद का रिसना 
रिसते ही जाना बस 
मगर आगमन का 
ना कोई स्रोत होना 
फिर एक दिन घड़े का 
खाली होना लाजिमी है 
सभी जानते हैं 
मगर नहीं पता किसी को 
वो घडा मैं हूँ 


हरा भरा वृक्ष 
छाया , फूल , फल देता 
किसे नहीं भाता 
मगर जब झरने लगती हैं 
पीली पत्तियां 
कुम्हलाने लगती है 
हर शाख 
नहीं देता 
फूल और फल 
ना ही देता छाँव किसी को 
तब ठूँठ से कैसा सरोकार 
बस कुछ ऐसा ही 
देखती हूँ रोज खुद को आईने में 

भावों के सारे पात झर गए हैं 
मन के पीपर से 
ख्यालों के स्रोते सब सूख गए हैं 
और बच रहा है तो सिर्फ 
अर्थहीन ठूंठ 
जिस पर फिर बहार आने की उम्मीद 
के बादल अब लहराते ही नहीं 
तो कैसे कहूँ 
खिलेगा भावों का मोगरा फिर से दिल के गुलशन में 

इस कदर भी कोई तन्हा ना हो कभी खुद से भी … 

शुक्रवार, 4 अक्तूबर 2013

आइये बकवास करें

आइये बकवास करें 
कुछ यूँ नाम रौशन करें 
बकवास महामन्त्र का जाप करें 
खुद को महान योगी सिद्ध करें 
बकवास बकवास बकवास 
सब बकवास ही तो है 
बकवास के भी अपने अर्थ होते हैं 
बकवास का भी अपना महत्त्व होता है 
बशर्ते कहने में दम हो 
बशर्ते कहने वाला दमखम रखता हो 
फिर बकवास भी अर्थ प्रिय हो जाती है 
फिर बकवास भी तवज्जो पाती है 
गर अपनी बकवास को एक ओहदा देना हो 
गर अपनी बकवास पर प्रस्ताव पारित कराना हो 
गर स्वयं को सबकी नज़रों में चढ़ाना हो 
गर अग्रिम पंक्ति में खड़ा होना हो 
तो जरूरी है तुम्हें खुद को सर्वेसर्वा सिद्ध करना 
और इसके लिए जरूरी है 
बकवास जैसे लफ़्ज़ों का प्रयोग करना 
फिर क्या कानून और क्या बिल और क्या आदेश 
सब बदल दिए जायेंगे 
सिर्फ एक तुम्हारे बकवास शब्द की भेंट चढ़ जायेंगे 
तो जाना तुमने कितनी गुणकारी है बकवास 
तो करो प्रण खुद से 
आज से करोगे सिर्फ और सिर्फ बकवास 
जो बना देगी तुम्हारे लिए एक सुलभ रास्ता 
जो पहुंचा देगी तुम्हें तुम्हारी मंजिल पर 
गर तुम पंक्ति में पीछे खड़े होंगे 
तो प्रथम स्थान पर पहुँचाना 
और तुम्हारा महत्त्व राष्ट्रीय दृष्टि में बढ़ाना 
बकवास नामक अचूक हथियार कर देगा 
फिर एक दिन ऐसा आएगा 
बकवास भूषण पुरस्कार से नवाज़ा जाएगा 
ये सर्वोत्कृष्ट पुरस्कार कहलाया जाएगा 
जो बकवास महाराज के बायोडाटा में 
चार चाँद लगाएगा 
ज्यादा कुछ तो नहीं मगर 
इसी बहाने पी एम बनने के सपने पर 
एक मोहर तो जरूर लगाएगा 
तो बोलो 
बकवास महाराज की जय