जाने कैसा ये साल आया है एक के बाद एक सभी छोड़ कर जा रहे हैं. Vijay Kumar Sappatti पिछले कई सालों से एक के बाद एक मुश्किलों से गुजर रहे थे...हम ब्लॉग के वक्त से मित्र रहे और उसी दौरान उनके जीवन में पहले नौकरी की समस्या शुरू हुई जो कई सालों तक लगातार चलती रही. उसके बाद उनकी पत्नी बीमार रहीं और उन्हें आर्थिक तंगी के चलते मकान बेचना पड़ा और एक फ्लैट में आ गए ...मगर रहे जीवन्तता से भरपूर...हम भी कहते विजय ये वक्त भी गुजर जाएगा...वो कहते आखिर कब तक वंदना तो मैं यही कहती बस ये आखिरी है लेकिन जब उनके कैंसर की खबर सुनी तो स्तब्ध रह गयी थी लेकिन कुछ वक्त पहले जब बात हुई तो उन्होंने कहा - अब पूरी तरह ठीक हो गया - जानकर ख़ुशी हुई थी और सोचा था शायद अब ईश्वर मेहरबान हो गया और उनकी सभी परीक्षाएं पूर्ण हो गयीं ...लेकिन मैं गलत थी ....जाने क्या जरूरत आ पड़ी ईश्वर को जो अभी उन्हें अपनी जिम्मेदारियां भी पूरी नहीं करने दीं.....अभी तो बच्चे भी सेटल नहीं हुए और उम्र सिर्फ 52 साल ......ये क्या जाने की उम्र होती है ?
ब्लॉग के माध्यम से हम सब जुड़े थे. अक्सर एक दूसरे की रचनाओं पर गंभीरता से विमर्श करते और प्रोत्साहित भी और विजय कई बार ऐसी कविता लिखते जो दिल को छू जाती तो उसके प्रयुत्तर में मेरी तरफ से भी एक कविता आ जाती ...वो एक ऐसा दौर था जहाँ कितना अपनापन था, सम्मान था.अपनी छोटी छोटी खुशियों को सबसे बाँटना उनका प्रिय शगल रहा...एक बच्चे की तरह ...हमेशा पॉजिटिव थिंकिंग रही.........हर बार गिरकर उठना उसी उत्साह से जैसे कुछ हुआ ही न हो ........बहुत कुछ करना चाहते थे विजय वैसे भी एक ऑल राउंडर थे फिर वो फोटोग्राफी और चित्रकारी हो, कवितायेँ या कहानियां हों, या फिर अध्यात्म ...यहाँ तक कि पिछले दिनों उनकी बनायीं एक लघु फिल्म पर वो पुरस्कृत भी हुए .......जाने क्या कुछ करना चाहते थे और कितना कुछ अधूरा छोड़कर चले गए .
शुरू शुरू में जब ब्लॉग बनाया था तो किसी को जानती नहीं थी तो किसी से अपना नंबर शेयर नहीं करती थी न किसी से फ़ोन पर बात करती थी लेकिन जब हम सबने एक दूसरे को अच्छे से जाना , एक दूसरे पर विश्वास हुआ तब नंबर शेयर किया....तब भी सालों में बात होती थी तभी एक बार बात हुई थी तो विजय ने कहा हम देखो कितने सालों से मित्र हैं लेकिन अब तक मिले नहीं तो जो जवाब मैंने दिया आज सोचती हूँ तो लगता है किसी होनी ने ही वो जवाब दिलवाया होगा लेकिन आज वो ही टीस भी रहा है
हम कभी नहीं मिलेंगे
इस ज़िन्दगी में
कहा था मैंने
मिलने से भ्रम टूट जाते हैं
रु-ब-रु होने पर
एक ठंडापन
एक अजनबियत
एक औपचारिकता की त्रिवेणी में
जब डुबकी लगाओगे
नजर और दिल
खेलने चले जायेंगे गुल्ली डंडा
और तुम करते रह जाओगे
खानाबदोशी से गुफ्तगू
थोडा तो रुक जाते
इतनी भी जल्दी क्या थी जाने की
दोस्तों की बात का इतना भी क्या बुरा मानना भला
कहा था मैंने
और तुमने मान लिया
सच कर दिखाया
ये तब कहा था जब कई लोगों से मिलने पर भ्रम टूटे थे तो सोचा था जो दोस्ती बनी हुई है बनी रहे फिर हम चाहे कभी न मिलें ......लेकिन आज लग रहा है कितना गलत कहा था ....अक्सर कहा करती थी इस आभासी दुनिया ने मुझे बस सच्चे मित्र तो दो चार दिए हैं और विजय उनमे से एक थे ...हम आपस में अपने दुःख सुख शेयर कर लेते थे फिर वो लेखन से सम्बंधित हों या फिर ज़िन्दगी से ...बस अब और नहीं कुछ कह पाऊँगी ......बस तुम जहाँ भी हो ईश्वर अब विजय को अपना प्यार देना, बहुत तकलीफ से गुजरे थे ....
अभी कमेंट में गिरिराज शरण जी ने सूचना लगाईं है विजय की नयी कहानी की किताब अमृत वृद्धाश्रम उनके प्रकाशन से प्रकाशित हुई है तो हम सबकी तरफ से यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी यदि हम सब उस किताब को पढ़ें और प्रकाशक उस किताब को साहित्य की दुनिया में पहचान दिलवाए क्योंकि 'एक थी माया' भी उन्ही के प्रकाशन से प्रकाशित हुई और बहुत प्रसिद्द भी .
विनम्र श्रद्धांजलि .........ईश्वर उनके परिवार को ये दुःख सहने की शक्ति दे :( :(