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सोमवार, 28 मई 2012

मेहनत का आज सिला मिल ही गया









आज मेरे बेटे ईशान का सी बी एस सी बारहवीं का रिज़ल्ट आ गया 


उसके 94% मार्क्स आये हैं और पी सी एम 96% है ।इतने वक्त की 


मेहनत का आज सिला मिल ही गया और अब उसका उसके मनपसन्द 


सब्जैक्ट के साथ इंजीनियरिंग मे और एडमीशन हो जाये तो जीवन 


सफ़ल है । बस आप सबकी दुआओं और आशीर्वाद की जरूरत है ।



शुक्रवार, 25 मई 2012

डॉलर अट्टहास करता रहेगा .............




सुना है जब देश आज़ाद हुआ 
रुपया डॉलर पौंड का भाव समान था 
फिर कौन सी गाज गिरी 
क्यों रुपये की ये हालत हुयी 
किस किस की जेब भरी 
किसने क्या घोटाला किया 
क्यों दाल भात को भी 
सट्टे की भेंट चढा दिया 
जब से कोमोडिटी मे डाला है 
तभी से निकला दिवाला है 
तभी मंहगाई आसमान छूती है 
अब क्यों हाय हाय करते हो 
क्यों रुपये की हालत पर हँसते हो 
जो बोया था वो ही तो काटना होगा 
बबूल के पेड पर आम नही उगा करते 
यूँ ही देश आत्मनिर्भर नही बना करते 
जब तक ना सच्चाई का बोलबाला हो 
भ्रष्टाचार का ना अंत होगा
मल्टी नैशनल कम्पनियां हों या सरकारी दफ्तर
जब तक ना बेहिसाब तनख्वाह का हिसाब होगा
रुपया तो यूँ ही कमजोर होगा
जब तक ना टैक्स का सही सदुपयोग होगा
जब तक ना जनता को बराबर अधिकार मिलेगा
रुपया तो यूँ ही कमजोर होगा
जब तक ना भ्रष्ट शासन से छुटकारा होगा
जब तक ना हर नागरिक वोट के महत्त्व को समझेगा
रुपया तो यूँ ही कमजोर होगा
जब तक ना हर नागरिक अपने कर्तव्यों पर खरा उतरेगा
सिर्फ अधिकारों की ही बात नहीं करेगा 
रुपया तो यूँ ही कमजोर होगा
परिवर्तन सृष्टि का नियम है
बाज़ार की दशा भी उसी का आधार है 
मगर लालच घोटालों का ही ये परिणाम है 
रुपया रोज गिरता रहा 
सेठ का पेट भरता रहा 
तिजोरियों स्विस बैंकों में 
रुपया दबता रहा 
फिर अब क्यों हल्ला मचाया है
मंहगाई का डमरू बजाया है 
मंहगाई खुद नहीं आई है 
हमारे लालच की भेंट ने 
मंहगाई को दावत दी और 
रूपये की शामत आयी है
फिर कहो कैसे बाहर निकल सकते हो
जब तक खुद को नहीं सच के तराजू पर तोल सकते हो 
सरकारें पलटने से ना कुछ  होगा
तख्तो ताज बदलने से ना  कुछ  होगा 
जब तक ना खुद को बदलेंगे
लालच को ना बेड़ियों में जकडेंगे
देश और जनता का भला ना सोचेंगे
तब तक रुपया तो यूँ ही गिरता रहेगा
डॉलर के नीचे दबता रहेगा और 
           डॉलर अट्टहास करता रहेगा .............


मंगलवार, 22 मई 2012

ॐ जय पुरस्कार देवता

ॐ जय पुरस्कार देवता
ॐ जय पुरस्कार देवता
जो कोई तुमको पाता
मन प्रसन्न हो जाता
उसका भाव ऊंचा चढ़ जाता 
ॐ जय पुरस्कार देवता

कैसे कैसे रंग दिखाते 
बेचारे ब्लोगर फँस जाते
फिर टंकी पर चढ़ जाते
उतारने की गुहार लगाते
पर पार ना तुम्हारा पाते 
ॐ जय पुरस्कार देवता

जैसे ही तुम्हारा पदार्पण
ब्लोगजगत मे होता 
गुटबाजी के नये नये 
गुट बन जाते 
अपने अपने पैंतरे 
सभी आजमाते 
सम्मान पाने की होड मे 
मर्यादा भूल जाते 
पर तुम्हें पाने की हसरत मे 
नियमों का उल्लंघन भी कर जाते 
ये कैसी तुम्हारी लीला है 
इसका पार ना कोई पाते
ॐ जय पुरस्कार देवता

ऐरे- गैरे भी तुम्हें पाने को
दौड़े दौड़े चले आते 
अपने चमचे भी तुम्हारे
पीछे लगा जाते
वोटिंग के झांसे में
फर्जी वोट डलवाते 
पर पुरस्कार पाने में
कोई कसर ना छोड़ पाते 
ॐ जय पुरस्कार देवता


चाहे कितनी आलोचना करनी पड़े
चाहे कितनी बगावत करनी पड़े
चाहे तुम पर ही तोहमत लगानी पड़े
चाहे उलटे सीधे तिकड़म अपनाने पड़ें
चाहे व्यंग्यबाण चलाने पड़ें
चाहे छिछोरी हरकतों पर उतर जाना पड़े
चाहे दूसरे को नीचा दिखाने के चक्कर में
खुद नीचे गिर जाना पड़े 
पर कोई कसर ना छोड़ पाते
तुम्हें पाने को तो बेचारे
अपना सारा दमखम लगाते
ॐ जय पुरस्कार देवता


पुरस्कार देवता की आरती 
जो कोई ब्लोगर गाता
प्रेम सहित गाता
पुरस्कारों का उसके आगे
ढेर लग जाता 
हर जगह वो सम्मान है पाता
एक दिन का वो बादशाह बन जाता
ॐ जय पुरस्कार देवता
ॐ जय पुरस्कार देवता
जो कोई तुमको पाता
मन प्रसन्न हो जाता
उसका भाव ऊंचा चढ़ जाता 
ॐ जय पुरस्कार देवता

शनिवार, 19 मई 2012

अछूत कन्या नही हूँ मैं...........

कुछ लिखा और मिटा दिया


आज तेरी याद ने यूँ हरा दिया

ओ अजनबी……… कौन हो तुम?





मैने तो मोहब्बत को झाडा पोंछा और सुखाया 

मगर तेरे अश्कों ने ही उसे है रुसवा किया

तेरी अजनबियत को सांसो मे उतारा

फिर भी ना तूने मुझे इक बार पुकारा

ओ अजनबी……… कौन हो तुम?


देख तो सारे सफ़े तेरी नज़र किये जिसने

कैसे ना उसकी आह ने चिकोटी भरी

कैसे ना तुझे वो तस्वीर दिखी……

यूँ भी कभी अछूता रहा जाता है………

अछूत कन्या नही हूँ मैं...........


मेरे पन्नो को गुलाबी कर दो ना.......ओ अजनबी 

बुधवार, 16 मई 2012

क्योंकि मोहब्बत चूडियों की सलामती की मोहताज़ नही होती ...........

चूडियाँ सलामत रहें 


चूडियाँ सलामत रहें 
दुआ आखिर कब तक मांगे कोई 
और क्यों 
क्या तुमने कभी ऐसी कोई दुआ की 
नही ना 
फिर भी मै सलामत हूँ ना 
तो बताओ तो ज़रा 
क्या सिर्फ़ एक मेरी दुआ से क्या होगा 
नसीबा कहो या उम्र का गलियारा तो नही बदलेगा 
तो चलो क्यों ना आज से दुआओं का पिटारा बंद करें 
और मोहब्बत के गलियारे मे विचरण करें 
क्योंकि मोहब्बत चूडियों की सलामती की मोहताज़ नही होती ...........







डंके की चोट पर 

मोहब्बत ने कब शिकायतों का पिटारा खोला
ना गिला किया ना शिकवा किया
सिर्फ मोहब्बत से  मोहब्बत का ऐलान
डंके की चोट पर किया 
बस यही तो ना ज़माने को हजम हुआ
और मोहब्बत ज़मींदोज़ हो गयी डंके की चोट पर 






दबे पाँव आना

वो हवाओं का दबे पाँव आना
जुल्फों को बिखरा जाना 
कानों में गीत सा गुनगुना जाना 
तुम्हारे आने की चुगली कर जाता है
देखे हैं ऐसे जासूस तुमने कहीं ..........





झक मारने से 



देखो तो
सुबह से कैसे कैसे ख्याल उलझा रहे हैं
ना दिन गुजर रहा है 
ना ख्याल
बस ना जाने किस उलझन में उलझा रहे हैं
और मैं ख्यालों के संग
तुम्हारा नाम ले लेकर 
एक नयी दुनिया बसा रही हूँ 
जहाँ सिर्फ तुम हो और मैं 
झक मारने से बेहतर तो यही है ना .........:)

रविवार, 13 मई 2012

फिर मैं कैसे अव्यक्त को व्यक्त कर सकती हूँ......






क्या बहती हवा बंध सकती है 
क्या खुशबू मुट्ठी मे कैद हो सकती है 
क्या धड़कन बिना दिल धड़क सकता है 
नहीं ना ...........तो फिर कहो
तुम्हें कैसे शब्दों में बांधू .....माँ
माँ ...........सिर्फ अहसास नहीं
तो कैसे शब्दों में बंधे
शब्दों की बंदिशों से परे हो तुम 
और मेरे शब्द भी चुक गए हैं
नहीं बांध पा रही तुम्हें 
माँ हो ना ...........कौन बांध पाया है 
माँ को, उसके ममत्व को 
उसके त्याग को , उसके निस्वार्थ प्रेम को 
निस्वार्थ भावनाएं भी कभी शब्दों में बंधी हैं 
फिर मैं कैसे बांध सकती हूँ 
कैसे शब्दों में पिरो सकती हूँ 
चाहे जितना व्यक्त करने की कोशिश करूँ 
हाँ माँ ...........तुम हमेशा अव्यक्त ही रहोगी
शायद तभी तुम्हें ईश्वर की संज्ञा मिली है
फिर मैं कैसे अव्यक्त को व्यक्त कर सकती हूँ.......सिवाय नमन के 

मंगलवार, 8 मई 2012

हरिभूमि में ‘ज़िन्दगी एक खामोश सफ़र’


जहाँ ना पहुंचे रवि वहाँ पहुंचे पाबला जी .......अगर ये कहूं तो कोई अतिश्योक्ति नहीं .....देखिये हमें खबर भी नहीं और पाबला जी ने घर बैठे बता दिया ........दिल से शुक्रगुजार हूँ उनकी .......और मै ही क्या हर वो ब्लोगर होगा जिसे भी वो घर बैठे खबर देते हैं । इतनी मेहनत करना और सूचित करना वो भी बिना किसी स्वार्थ के ………ये सिर्फ़ पाबला जी ही कर सकते हैं।




सोमवार ७ मई २०१२ में पब्लिश पेज ४ पर 



आई आई टी का हाल: हरिभूमि में ‘ज़िन्दगी एक खामोश सफ़र’



चाहें तो इस लिंक पर जाकर देख सकते हैं .

रविवार, 6 मई 2012

इस वचन को मिथ्या करो..................





हे कृष्ण
बनो फिर सारथि
अर्जुन के
करो पाञ्चजन्य का घोष
कर दो  कर्णभेद शत्रुओं के
देखो ना आज भी 
धरा कैसे व्याकुल खडी है
चारों तरफ सिर्फ
दुश्मनों की फ़ौज खडी है
हर ओर से डरी डरी है
ये कैसी संकट की घडी है
जिसमे कहीं ना कोई सुखी है
हाहाकार मच रहा है
बेईमानी लालच ईर्ष्या का 
चहुँ ओर तांडव मचा पड़ा है
मानव खुद ही दानव बन गया है
क्या वृद्ध क्या बालक क्या अबला
सबका शोर ना सुनाई दे रहा है
देखो कैसे निर्वस्त्र हो रही है
आज भी द्रौपदी का चीर
दुश्शासन खींच रहा है 
फिर क्यूँ ना तुम्हारा 
वस्त्रावातार हुआ है 
कैसे देख रहे हो अत्याचार
कैसे हो रहा है व्यभिचार
क्या अब कहीं तुम्हें 
धर्म सुरक्षित दिख रहा है
जो तुम्हारा फिर से
अवतार ना हो रहा है
सुना है जब भी धर्म 
रसातल में जायेगा
अधर्म का बोलबाला हो जायेगा
तब तब सच्चे लोगों के लिए
धर्म की पुनः स्थापना  के लिए
मर्यादा की रक्षा के लिए
तुम अवतार लोगे 
देखो आज सच्चे ही भय खाते हैं
झूठे हर जंग जीते जाते हैं 
अत्याचार भ्रष्टाचार बेईमानी 
का फैला कैसा आतंक है
सच्चाई की हो गयी बोलती बंद है
हर रिश्ते की मर्यादा मिट गयी है
पिता पुत्री का रिश्ता भी बेमानी हो गया है
कैसी  नृशंसता से 
क्या अब अधर्म नहीं हो रहा है
किस निद्रा में सोये हुए हो
जागो कृष्ण ......करो जयघोष
धरा की पीड़ा हरने  को
फिर अवतार लो
फिर से सत्य स्थापित करो
और अपने वचन को प्रमाणित करो
वरना धर्म ग्रंथों में उल्लखित 
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः 
अभ्युत्थानं धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम
परि्त्राणाय साधुनाम विनाशाय च दुष्कृत:
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे
इस वचन को मिथ्या करो
                  इस वचन को मिथ्या करो..................

शुक्रवार, 4 मई 2012

आज तो लग रहा है सबके कहो या अपने ऊपर ये ही फ़िट बैठेगा ………

आज तो लग रहा है सबके कहो या अपने ऊपर ये ही फ़िट बैठेगा ………
ना किसी की आँख का नूर हूँ ना किसी के दिल का सुरूर हूँ …… ऊँ ऊँ ऊँ 


एक बेचारा आयोजन का मारा ब्लोगर 
कैसे खुद को प्रोमोट करेगा 
यहाँ तो सभी स्वयं सिद्ध हैं
तो कौन किसे और कैसे भला
बताओ तो प्रोमोट करे 
गज़ब की ये चाल चली है
जिसमे ब्लोगर की जान फँसी है
मछली कांटे में यूँ फँसी है
देखो जी ये तो हँसी में फँसी है
हाय रे ब्लोगर की किस्मत
जाने कैसे कैसे भंवर में उलझी है
अब शुरू होगी चमचागिरी है 
तू मुझे कर मैं तुझे करूँ की 
होड़ मचनी शुरू हो जाएगी 
इस हाथ दे और इस हाथ ले की प्रक्रिया
टिप्पणियों की भांति बांटी जाएगी 
दांव पेंच वाले ब्लोगर की तो 
किस्मत ही चमक जाएगी 
मगर जो किसी की आँख का नूर ना हों
ना किसी के दिल का सुरूर न  हो 
उनकी किस्मत तो 
बीरबल की खिचड़ी सी लटक ही जाएगी 
ये कैसा आयोजन हो रहा है
महाभारत का दूजा रूप ही दिख रहा है
दंगा भी संभावित दिख रहा है 
बच के रहना रे बाबा !!!!!!
यही आवाज़ आती मिलेगी 
मगर कुछ ब्लोगरों की तो बांछें खिलेंगी 
हर चेहरे से उठता नकाब दिखेगा
देखें अब कौन किसे प्रोमोट करेगा
और खुद को दूसरे ब्लोगर का 
शुभचिंतक साबित करेगा 
तो दूसरी तरफ सत्य से भी
हर ब्लोगर रु-ब-रु होता मिलेगा 
मगर इन सबमे 
हमें भी चिंता सता रही है
हमारी भैंस तो वैसे भी 
पानी में जा रही है
हम तो यूँ भी किसी खेत की मूली नहीं हैं
ऐसे में हमारे नामांकन की तो 
कोई सूरत ना नज़र आ रही है 
हाय रविन्द्र जी .......अबकी तो फंसवा दिया
हमारी वाट लगाने का पूरा सामान मुहैया करवा दिया 
बताइये कैसे कैसे आयोजन करते हैं 
और हम जैसे तो इनमे कहीं नही फ़िट बैठते हैं
हाय रे हमारी किस्मत! 
अब किसे खोजें ? कहाँ खोजें? 
कौन हमारा नामांकन करायेगा? 
ये नयी चिंता सवार हो जाएगी 
हर ब्लोगर के साथ हमारी भी
रातों की नींद हराम हो जाएगी 
नाम और सम्मान का जब प्रश्न उठा हो
तो कैसे ना हर ब्लोगर की पेशानी पर 
बल पड़ता हो 
जाने क्या गुल अबके खिलेगा 
कौन किसके लिए क्या करेगा 
देखो कौन अब टंकी पर चढ़ेगा 
और हार और जीत के भंवरों में 
देखो तो कौन कौन फंसेगा 
मगर बेचारे छेदी लाल के दिल में तो छेद ही छेद मिलेगा 
बस ब्लोगर सम्मान और विशेषांक के लिए तो 
उसका दिल भी फटेगा तो कहिये
कैसे ना छेदों में उसके इजाफा बढेगा 
फिर कैसे ना उसके मुख से ये ही निकलेगा 
.
.
.
.
.
बडा दुख दीन्हा रविन्द्र जी आपके आयोजन ने :)))


दोस्तों 

बुरा मत मानना जी निर्मल हास्य है और ऐसा पढ़कर ये ख्याल आना लाजिमी भी है :))

अब रविन्द्र जी के ब्लोगर विशेषांक और परिकल्पना सम्मान की घोषणा पढ़ी तो ये ख्याल मन में उतर आया क्योंकि इसमें कुछ बेचारों का तो यही हश्र होना तय ही दिख रहा है ..........बेशक आयोजन और उसकी कल्पना बेहतरीन है और अपने आप मे बेजोड है जो ब्लोगिंग के भविष्य मे चार चाँद ही लगायेगी ।

इस आयोजन का लिंक भी दे रही हूँ ताकि सब ब्लोगर दोस्तों को इस आयोजन के बारे में पूरी जानकारी हो जाये जिन्हें पता ना चला हो उन्हें भी पता चल जाए ताकि सब इसमें पूरी तरह अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर  सकें ........


मंगलवार, 1 मई 2012

तुम आ गये मोहन











तुम आ गये मोहन 

दीन हीन की आर्त पुकार सुन 

तुम आ गये मोहन 


कैसे कैसे खेल खेलते हो 

कभी छुपते हो कभी दिखते हो
मगर सुनो तो ज़रा 
हम हैं तुम्हारे तुम जानते हो 
फिर ये लुकाछिपी का
खेल क्यों दिखाते हो 
देखो ना 
अब तुम्हें ही खुद आना पडा 
इतना कष्ट उठाना पडा 
जानती हूँ....... इसीलिये आये हो 
आखिर अस्तित्व पर प्रश्न जो उठ गया था 
या शायद भक्त तुम्हारा रूठ गया था 
या आस्था पर प्रश्नचिन्ह लग गया था 
और वचन के तुम पक्के हो 
मिथ्या भाषण नहीं दिया था 
योगक्षेम वहाम्यहम यूँ ही नहीं कहा था
सिर्फ यही सिद्ध करने को 
आज कैसी दौड़ लगायी है मोहन 

मोहन तुम और तुम्हारी माधुरी लीला 
देखो ना सिर्फ़ एक आर्त पुकार 
और दौडे चले आये 
कैसे रिश्ता निभाते हो 
और सब सहे जाते हो 
हे बिहारी ! क्यों इतना तडपाते हो 
जो खुद भी तडपने लगते हो 
फिर अपना वचन निभाने को 
इतने कष्ट सहते हो
ए मोहन! देखो ऐसे ना किया करो ना 
सप्ताह के सात दिन और
सात दिन में ही वचन निभाने आ गए 
मोहन तुम सा ना कोई है...... ना होगा
ओ मेरे प्यारे!
जग से न्यारा नाम यूँ ही नहीं धराया है 

आज तुमने यही तो बताया है ......है ना मोहन !!!

साहित्य का बलात्कार आखिर हो ही गया


भार उभारों का ना महसूस हुआ होगा
सिर्फ भार हीन उभार ही दिखे होंगे 
यही तो तुमने कहना चाहा है
शब्दों से खेलना चाहा है
सिर्फ हिम्मत नहीं कर पाए हो
सच कहने की इसलिए 
उभारों का सहारा लिया 
और अपने मन की ग्रंथि को 
उभारों तले दबा कर उभार दिया 
मगर सच्चे साहित्यकार ना ऐसा करते हैं
वो तो सिर्फ और सिर्फ 
सच्चे साहित्य को ही लिखते हैं
अभी तुम्हारी साहित्य की पकड़ ढीली है
वैसे भी तुम्हारी हालात अभी बहुत पतली है 
तभी ये मानसिक विकार उभरा है 
और आत्मग्लानि से भर कर तुमने
इसे साहित्यिक प्रमाण दिया है
बबुआ पहले साहित्य सीख कर आना
फिर साहित्य की दुन्दुभी बजाना
यूँ ही हल्ला मत मचाना 
वरना दूसरे भी म्यान में तलवार रखा करते हैं
और वक्त आने पर वो भी खींच लिया करते हैं 
समझ सको तो समझ लेना
भाषा का अनुचित प्रयोग हमें भी आता है
मगर तुम्हारी तरह हर कोई सीमाएं नहीं लाँघ जाता है
जब तक कि ना कोई कारण हो
समस्या का ना निवारण हो 

गुप्त हों या त्रिवेदी 
क्यों नहीं कान पर 
जूँ तक रेंगी 
कहाँ गए वो 
हाहाकार  मचाने  वाले
देखो साहित्य की
काली होली जल रही है
दौड़ो भागो 
बचाओ अपनी 
साहित्यिक विरासत को
या भूल चुके हो
तुम इस अनर्गल भाषा को
ओ महा मनुष्यों 
विशिष्ठ साहित्यकारों
अब करो तुम भी
उसी का महिमा गान
जिसने तुम्हें चढ़ाया परवान
और बतला दो
सभी साहित्यकारों को
तुम नहीं हो 
सच्चे साहित्यकार
शीलता अश्लीलता के लिए
तुम्हारे हैं दोहरे विचार
दोहरे मापदंड
दोहरे चेहरे 
दोहरे कृतित्व 
तभी तो देखो ना
कितनी सम्मानित दृष्टि से देखा करते हो
महिला को "चिकनी चमेली " कहने पर भी
चुप रहा करते हो 
ये दोहरा चेहरा ही दर्शाता है
कैसे दोगले चरित्र तुम्हारे हैं 
अब कहाँ मर्यादाएँ गयीं
अब कहाँ भस्मीभूत हुईं 
तुम्हारा अनर्गल वार्तालाप ही 
तुम्हारे सारे अवगुण छुपाता है
मगर सत्य तो सभी को नज़र आता है
कोई अपनी बात कहे 
उसके अर्थ जाने बिना
तुम आरोपों का झंडा बुलंद करते हो 
मगर गर कोई तुम्हारा अपना कहे
वैसा ही वार्तालाप करे
और साहित्य का बलात्कार करे 
मगर तब ना इनकी दुन्दुभी बजती है 
तब भी जय जय हो ध्वनि 
प्रस्फुटित होती है
जब ऐसे आचार विचार होंगे
जब एक ना आचार संहिता होगी
कहो कैसे ना साहित्य 
हर गली कूचे में अपमानित होगा
क्योंकि कभी खुद को साहित्य का 
कभी रक्षक कहते हैं
और खुद ही साहित्य का बलात्कार करते हैं
पता नहीं कैसे ये 
दोगला चरित्र जीते हैं
जिनमे वो ही नियम 
खुद पर ना लागू होते हैं 
और अपने अनर्गल लेखन को भी 
सार्थक कहते हैं 
अपने भावों को सही ठहराते हैं
मगर दूसरे के भावों का ,समस्या का 
मखौल उड़ाते हैं 
ये दोहरा चरित्र एक दिन 
ऐसे ही अपमानित करता है
जब कभी केले के छिलके पर 
खुद का पाँव पड़ता है 

मगर हमें क्या 
हमने तो दोहरे चेहरे दिखला दिए
बातों के मतलब समझा दिए
अब जो समझे तो समझ ले 
वरना ना समझे तो उसकी मर्ज़ी है 
बस यही तो यहाँ की
ब्लॉगजगत की दोहरी नीति है