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मंगलवार, 1 मई 2012

साहित्य का बलात्कार आखिर हो ही गया


भार उभारों का ना महसूस हुआ होगा
सिर्फ भार हीन उभार ही दिखे होंगे 
यही तो तुमने कहना चाहा है
शब्दों से खेलना चाहा है
सिर्फ हिम्मत नहीं कर पाए हो
सच कहने की इसलिए 
उभारों का सहारा लिया 
और अपने मन की ग्रंथि को 
उभारों तले दबा कर उभार दिया 
मगर सच्चे साहित्यकार ना ऐसा करते हैं
वो तो सिर्फ और सिर्फ 
सच्चे साहित्य को ही लिखते हैं
अभी तुम्हारी साहित्य की पकड़ ढीली है
वैसे भी तुम्हारी हालात अभी बहुत पतली है 
तभी ये मानसिक विकार उभरा है 
और आत्मग्लानि से भर कर तुमने
इसे साहित्यिक प्रमाण दिया है
बबुआ पहले साहित्य सीख कर आना
फिर साहित्य की दुन्दुभी बजाना
यूँ ही हल्ला मत मचाना 
वरना दूसरे भी म्यान में तलवार रखा करते हैं
और वक्त आने पर वो भी खींच लिया करते हैं 
समझ सको तो समझ लेना
भाषा का अनुचित प्रयोग हमें भी आता है
मगर तुम्हारी तरह हर कोई सीमाएं नहीं लाँघ जाता है
जब तक कि ना कोई कारण हो
समस्या का ना निवारण हो 

गुप्त हों या त्रिवेदी 
क्यों नहीं कान पर 
जूँ तक रेंगी 
कहाँ गए वो 
हाहाकार  मचाने  वाले
देखो साहित्य की
काली होली जल रही है
दौड़ो भागो 
बचाओ अपनी 
साहित्यिक विरासत को
या भूल चुके हो
तुम इस अनर्गल भाषा को
ओ महा मनुष्यों 
विशिष्ठ साहित्यकारों
अब करो तुम भी
उसी का महिमा गान
जिसने तुम्हें चढ़ाया परवान
और बतला दो
सभी साहित्यकारों को
तुम नहीं हो 
सच्चे साहित्यकार
शीलता अश्लीलता के लिए
तुम्हारे हैं दोहरे विचार
दोहरे मापदंड
दोहरे चेहरे 
दोहरे कृतित्व 
तभी तो देखो ना
कितनी सम्मानित दृष्टि से देखा करते हो
महिला को "चिकनी चमेली " कहने पर भी
चुप रहा करते हो 
ये दोहरा चेहरा ही दर्शाता है
कैसे दोगले चरित्र तुम्हारे हैं 
अब कहाँ मर्यादाएँ गयीं
अब कहाँ भस्मीभूत हुईं 
तुम्हारा अनर्गल वार्तालाप ही 
तुम्हारे सारे अवगुण छुपाता है
मगर सत्य तो सभी को नज़र आता है
कोई अपनी बात कहे 
उसके अर्थ जाने बिना
तुम आरोपों का झंडा बुलंद करते हो 
मगर गर कोई तुम्हारा अपना कहे
वैसा ही वार्तालाप करे
और साहित्य का बलात्कार करे 
मगर तब ना इनकी दुन्दुभी बजती है 
तब भी जय जय हो ध्वनि 
प्रस्फुटित होती है
जब ऐसे आचार विचार होंगे
जब एक ना आचार संहिता होगी
कहो कैसे ना साहित्य 
हर गली कूचे में अपमानित होगा
क्योंकि कभी खुद को साहित्य का 
कभी रक्षक कहते हैं
और खुद ही साहित्य का बलात्कार करते हैं
पता नहीं कैसे ये 
दोगला चरित्र जीते हैं
जिनमे वो ही नियम 
खुद पर ना लागू होते हैं 
और अपने अनर्गल लेखन को भी 
सार्थक कहते हैं 
अपने भावों को सही ठहराते हैं
मगर दूसरे के भावों का ,समस्या का 
मखौल उड़ाते हैं 
ये दोहरा चरित्र एक दिन 
ऐसे ही अपमानित करता है
जब कभी केले के छिलके पर 
खुद का पाँव पड़ता है 

मगर हमें क्या 
हमने तो दोहरे चेहरे दिखला दिए
बातों के मतलब समझा दिए
अब जो समझे तो समझ ले 
वरना ना समझे तो उसकी मर्ज़ी है 
बस यही तो यहाँ की
ब्लॉगजगत की दोहरी नीति है 

18 टिप्‍पणियां:

Ayaz ahmad ने कहा…

ज़िल्लत का अहसास आदमी को शराफ़त से गिरा देता है.

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

छिड़ी हैं जंग आज
फिर अपनों में
पर आस के दीपक ,
मंदिरों में आज भी जलते हैं |
गैरों की क्या बात करे ,
यहाँ अपने ही हमला करने में
जुटे हैं |

विभा रानी श्रीवास्तव ने कहा…

जो मानसिक-रोग से ग्रसित हो ,
जिसे अपनी माँ की परवाह न हो ,
*(गलती मुझसे भी हुआ)* ....
उसे अहमियत क्यों देना .... ??
विरोध या यूँ कहें walk-out होना चाहए था ....
उस पोस्ट पर न तो एक टिपण्णी(कमेन्ट) ,
और न चिल-पों ... फ़ायदा तो उसका ही ....
बदनाम हुए तो क्या हुआ नाम तो हुआ .... :(

shikha varshney ने कहा…

कुछ अंगों,शब्दों में सिमट गई जैसे सहित्य की धार
कोई निरीह अबला कहे, कोई मदमस्त कमाल.

Blog ki khabren ने कहा…

ब्लॉग की ख़बरें सदा से ऐसे तत्वों के नाम जगज़ाहिर करता आया है.
See Your Post
http://blogkikhabren.blogspot.in/2012/05/breaking-news-vandana-gupta.html

रचना ने कहा…

ab virodh kaa tarikaa badale aur kanun virodh darj karaaye
maene link uplabdh karaa diyaa haen

http://indianwomanhasarrived.blogspot.in/2012/05/ncw.html

bahut hogyaa uttar pratiuttar ab tarikae sae jwaab dena kaa vakt haen

रचना ने कहा…

जिनका साहित्य से दूर दूर तक क़ोई लेना देना नहीं हैं
वो अपने लिखे को साहित्य कहते हैं
और अपने को साहित्यकार
इनका बस करो प्रतिकार और एक जुट हो कर
इनका करो बहिष्कार
सिर इनको भाई कह कर जिन्होने चढ़ाया हैं
वो भी बहिष्कृत हो जाए
बदलाव तभी संभव हैं

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

अभी कुछ दिन पूर्व एक अपने पूर्वोत्तर की लड़की ने आत्म हत्या कर ली ... वहां के मुख्यमंत्री चिल्ला चिल्ला के कह रहे हैं कि राजधानी में पूर्वोत्तर के लोंगों के साथ भेदभाव होता है... थोड़े दिन पहले उत्तर प्रदेश के किसानो ने २० पैसे आलू गोदाम वालों को देने से मना कर दिया, अभी आलू १० से पंद्रह रूपये किलो बिक रहे हैं.... नक्सलियों ने एक युवा प्रशासनिक अधिकारी को बंधक बना कर रखा है... वहां रखा है जहाँ सरकार की सड़कें नहीं पहुची हैं और... साहित्य का विषय ही भटक गया है... सरोकार के मुद्दे ही गायब है... ब्लॉग के लिए स्वस्थ परंपरा नहीं है यह. यह साहित्य का ***** नहीं है... बल्कि यह साहित्य है ही नहीं ...

समयचक्र ने कहा…

भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति ... आज की रचना से ऐसा प्रतीत हो रहा है की बड़े क्रोधित भाव से लिखी गई है ....आभार

Anupama Tripathi ने कहा…

भारतमाता रो रही है ...
अपना अस्तित्व खोता हुआ देख रही है ....
मेरे ही लाल ने कैसे मिटटी में मिला दिया मेरा अस्तित्व ....
गुड गोबर कर दिया सभ्यता का बखान ...
माँ हैरान ...परेशान ....

हैरान परेशान ......
हैरान .............................................!!!!!!

रजनीश तिवारी ने कहा…

सोचने पर मज़बूर करती रचना...आभार एवं शुभकामनाएँ ।

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

kuch kuch andaaj laga hai..lekin aapne bade hee sahityik tareeke se jabab diya hai aapne..sadar badhayee aaur sadar amantran ke sath

मनोज कुमार ने कहा…

रचना जी की बात से सहमत हूं। ऐसे लोगों का सामाजिक बहिष्कार होना ज़रूरी है।

जिन्हे देह और देह के अंग विशेष सूझते हों उनके कुंठित मन का साहित्य से क्या लेना देना। अरुण जी ने भी बहुत सही बात कही है।

समय आ गया है कि ऐसे लोगों के खिलाफ़ बहिष्कार का अह्वान किया जाए।

vijay kumar sappatti ने कहा…

सही जवाब दिया जी .

और ये पोस्ट एक सवाल भी उठाती है .

बहुत अच्छे .

vijay kumar sappatti ने कहा…

सही जवाब दिया जी .

और ये पोस्ट एक सवाल भी उठाती है .

बहुत अच्छे .

ZEAL ने कहा…

Very impressive presentation. Well expressed.

दर्शन कौर धनोय ने कहा…

जूता साहित्य की चाशनी में भीगा हैं...चारों और सन्नाटा व्याप्त हैं ....जोरदार आवाज !!! क्या बात हैं ? थप्पड़ सवा किलो का रहा .... बधाई वंदना !

सुरेन्द्र "मुल्हिद" ने कहा…

jwalant rachna!