अहसासो ख्यालो की एक अनूठी दुनिया की
सैर पर निकला हो कोई
और जैसे पांव किसी सुलगते दिल को छू गया हो …………
आह ! ऐसे ही नही निकला करती।
सजदे में सिर झुका कर
कर रहा हो कोई इबादत
और जैसे मुस्कान कोई रूह को छूकर निकल गयी हो ...........
यूँ ही नहीं मिला करता मौला किसी फकीर को
रेशम के तारों से काढ रहा हो
कोई अपने सपनो का ताजमहल
और जैसे मुमताज के जिस्म में हरारत हो गयी हो
यूँ ही नहीं शहंशाह बना करते है .........
तबियत से लिख रहा हो रात की स्याही से
कोई फ़साना खुदाई नूर का
और जैसे खुदा ने हर लफ्ज़ पढ़ लिया हो
यूँ ही नहीं कुर्बान होती मोहब्बत वक्त के गलियारों में ...........