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गुरुवार, 7 जून 2012

फिर पीड़ा का पाणिग्रहण कौन करे ?

गुमसुम अंतस की पीड़ा 
शब्द कैसे उकेर पाएंगे
क्या पीड़ा को शब्द दे पायेंगे
असली जामा पहना पाएंगे 
यूँ तो कंधे पर झोला लटकाए
घूम रहे हैं ना जाने कितने अशरार
मगर क्या सच में दर्द को
वो कचोटती सी उदासी को
वो अनकही सी किसी कहानी को
वो घूँघट में मुँह छुपाये 
पीड़ा की दुल्हन की सिसकियों को
कोई भी लफ्ज़ टटोल पायेगा
उसके मर्म को जान पायेगा
जो गर्म लहू बन 
बहता है शिराओं में 
उसके हर कतरे में उठती 
दर्द की चीखों को
कराहटों को
क्या कोई भी शब्द
कोई भी वर्ण 
कोई भी अक्षर
कोई भी वाक्य 
अक्षरक्ष: बयां कर पायेगा 
और कैसे करेगा कोई
जब आज तक 
कोई नहीं समा सका सागर को अंजुली में 
फिर कैसे 
गुमसुम पीड़ा का दिग्दर्शन शब्दों की थाती बन पायेगा
खुद ना सिसक- सिसक जाएगा 
मेरी घायल सिसकती पीड़ा 
आवाज़ दे.......मुझे 
बस इतना बता दे
तुझे कौन सा मरहम लगाऊँ 
कौन सी दवा कराऊँ 
जो तेरी व्याकुलता सागर में समाहित हो जाये
वक्त बहुत नाज़ुक है 
जब साए भी साथ छोड़ जाते हैं 
फिर पीड़ा का पाणिग्रहण कौन करे ?

19 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

बहुत बढ़िया रचना |

मेरे नए पोस्ट में आपका स्वागत है-
मेरी कविता:आंसू पश्चाताप के

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

वक्त बहुत नाज़ुक है
जब साए भी साथ छोड़ जाते हैं
फिर पीड़ा का पाणिग्रहण कौन करे ?

गहन अभिव्यक्ति

अशोक सलूजा ने कहा…

वक्त बहुत नाज़ुक है ,,जब साया भी साथ छोड़ जाता है ...तब सिर्फ हमारा हौंसला काम आता है ....
शुभकामनाएँ!

अनुपमा पाठक ने कहा…

पीड़ा में जब आनंद की अनुभूति होने लगे तब ही शायद हो पायेगा पीड़ा का पाणिग्रहण संस्कार!

सुन्दर कविता!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

बहुत गहरी बात लिखी है आपने..

shikha varshney ने कहा…

गहन अभिव्यक्ति.

सदा ने कहा…

वक्त बहुत नाज़ुक है
जब साए भी साथ छोड़ जाते हैं
बिल्‍कुल सही ... गहन भावों के साथ उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍‍यक्ति ।

Shekhar Suman ने कहा…

बहुत खूब.... आपके इस पोस्ट की चर्चा आज 07-6-2012 ब्लॉग बुलेटिन पर प्रकाशित है ... विवाह की सही उम्र क्या और क्यूँ ?? फैसला आपका है.....धन्यवाद.... अपनी राय अवश्य दें...

Anita ने कहा…

पीड़ा को व्यक्त कर सकें, शब्दों में ऐसी ताकत नहीं, वह तो महसूस करने की बात है, और ऐसा कोई विरला ही होता है जो दूसरों के दर्द को महसूस कर सके. सही कहा है आपने.

M VERMA ने कहा…

पीड़ा का पाणिग्रहण ...
शायद हौसले और जीजिविषा कर पाये

मनोज कुमार ने कहा…

पीड़ा के ऊपर इतनी सहज अभिव्यक्ति आपकी लेखनी का ही कमाल है!

वाणी गीत ने कहा…

घूंघट में मुंह छिपाए पीड़ा की दुल्हन ...
पीड़ा का पाणिग्रहण ...
अद्भुत बिम्ब ...
पीड़ा के भावों को हुबहू शब्दों में उतारना मुश्किल ही है , दर्द की अनुभूति से ही समझा जा सकता है !
बेहतरीन रचना !

बेनामी ने कहा…

बहुत सुन्दर पोस्ट।

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

कोई शब्द ,कोई वर्ण ...किसी की पीढा का अनुमान तक नहीं लगा सकते ...

बहुत खूबसूरत रचना ..

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

phir peeda ka panigrahan kaun kare...wakai kathin hai is prashna ka hal dhoondhna .gahan chintan se otprot gambheer rachna jo sochne ko bibash karti hai...

***Punam*** ने कहा…

पीड़ा का पाणिग्रहण....!!
कोई तो होगा उम्मेदवार.......!!!

Asha Joglekar ने कहा…

पीडा का पाणिग्रहण कौन करे !
वही जिसने ऐसी पीडा को झेला है ।

सुंदर ।

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत ही बढ़िया

सादर

Onkar ने कहा…

सच. पीड़ा को कौन अपनाता है?