आने वाला आता है जाने वाला जाता है 
दस्तूर दुनिया का हर कोई निभाता है 
कोई खार बन तल्ख़ ज़ख्म दे जाता है 
कोई यादों में गुलाब बन खिल जाता है 
बेमुरव्वत! इक फाँस सा सीने में धंसा जाता है 
उम्र भर का लाइलाज दर्द जो दिए जाता है 
गिले शिकवों का शमशानी शहर बना जाता है 
जब भी यादों में बिन बुलाये चला आता है 
यही जाते साल को नज़राना देने को जी चाहता है 
फिर न किसी मोड़ पर तू ज़िन्दगी के नज़र आना 
मुझे मुझसे चुरा लिया बेखुदी में डुबा दिया 
अब किसी पर न ऐतबार करने को जी चाहता है 
