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बुधवार, 24 दिसंबर 2008

यादें

आजकल यादों के पन्ने फिर उखड़ने लगे हैं
हर पन्ने पर एक गहरी याद कुच्छ याद दिलाती है
हम इन यादों को फिर से जीने लगे हैं
आइना बन कर हर याद सामने आ जाती है
और हम इन यादों के समुन्दर में गोते खाने लगे हैं
दिल में यादों के भंवर हैं बड़े गहरे
हम तो इनमें फिर से डूबने लगे हैं
यादों को फिर से जीना इतना आसां नही होता
न जाने कितनी मौत मरकर जिया जाता है

4 टिप्‍पणियां:

Renu Sharma ने कहा…

vandana ji ,bahut hi sundar safar hai yaadon ka , meri ek kavita bhi hai use jaroor padhiye .
achchha likhti ho .

!!अक्षय-मन!! ने कहा…

यादों को फिर से जीना इतना आसां नही होता
बिल्कुल सही कहा यादों को फिर से नही जिया जा सकता बहुत ही अच्छी रचना.......
अच्छा लगा पड़ना.....

अक्षय-मन

makrand ने कहा…

यादों को फिर से जीना इतना आसां नही होता
न जाने कितनी मौत मरकर जिया जाता है
bahut sunder

Dev ने कहा…

First of all Wish u Very Happy New Year...

yaden hi javan hai.. aur ham bhi to yaden me jite hai....