शून्य से शून्य की ओर जाता ये जीवन
कभी न भर पाता ये शुन्य
पैसा, प्यार, दौलत ,शोहरत
कितना भी पा लो फिर भी
शून्यता जीवन की
कभी न भर पाती
हर पल एक भटकाव
कुछ पाने की लालसा
क्या इसी का नाम जीवन है
हर कदम पर एक शून्य
राह ताकता हुआ
शून्य स शुरू हुआ ये सफर
शून्य में सिमट जाता है
जीवन की रिक्तता
जीवन भर नही भरती
और हम
शून्य से चलते हुए
शून्य में सिमट जाते हैं
4 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर जीवन को परिभाषित किया है।
बहुत बढिया रचना है।
jeevan ki sahi abhivyakti
har pankti apne aap mein ek sach hai
badhai
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
Kaphi arthpurna.
शून्य में दुनिया समाई, शून्य से संसार है।
शून्य ही तो गणित का आधार है।
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