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रविवार, 8 फ़रवरी 2009

सुलगते पत्थर

मैंने पत्थरों को सुलगते देखा है
उनके दर्द को महसूस किया है
पत्थरों के गम में शरीक
पत्थरों के सिवा नही कोई
उनके अहसासों को
समझने का अहसास कौन करे
पत्थर किसे सुनाते हाल-ऐ-दिल
दिलों के दरवाज़े तो
पहले ही बंद थे
पत्थरों की खामोशी
में छुपा दर्द
पल पल उन्हें सुलगाता है
इन पल पल सुलगते
पत्थरों के लिए
कौन रोता है
आंसू गिरता है
मैंने पत्थरों को सुलगते देखा है

5 टिप्‍पणियां:

Vinay ने कहा…

पत्थरों को ज़रिया बनाकर, बहुत सार्थक बाव्य प्रस्तुत किया

---
गुलाबी कोंपलें

shivraj gujar ने कहा…

ऐसा लगा जैसे आपने पथरों के दर्द को लिखा नही जिया हो, बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति.

BrijmohanShrivastava ने कहा…

जिंदगी ब्लॉग की रचना पढने में नहीं आरही है /
वास्तव में सुलगते पत्थर का दर्द कौन महसूस कर सकता है जब कि लोगों के दिल ही पत्थर हो चुके है

vijay kumar sappatti ने कहा…

vandana ji

dard ko jaise jiya ho aapne .....

badhai

सुशील छौक्कर ने कहा…

वाह जी वाह क्या बात है पत्थरों के जरिये ही अपनी बात कह दी। वाकई आप कमाल का सोचती है। अद्भुत ।