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सोमवार, 21 जनवरी 2013

नहीं है मेरी कविता का कैनवस इतना विशाल



नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
जिसमें सारे जहान का
दर्शन शास्त्र समा लूँ
कैसे सम्भोग से समाधि तक
पात्रों को ले जाऊँ
जहाँ विषमता का ज़हर
हर पात्र मे भरा है
कैसे प्रेम के अद्वैत को समझाऊँ
कैसे द्वैत को अद्वैत से
भिन्न दिखलाऊँ

नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
जिसमें सारी दुनिया की
फ़िलासफ़ी समा जाये
जहाँ जो नहीं है
उसको चित्रित कर दूँ
या फिर देखने वाले के
नज़रिये को ही बदल दूँ

नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
जिसे सिगरेट के धुँये
के छल्ले बना हवा में
उडा दिया जाये
और उसमें एक शख्स
उसकी वेदना
उसकी मौन अभिव्यक्ति को
व्यक्त किया जाये
चाहे वो उसकी
अभिव्यक्ति हो या नहीं
एक फ़िक्र की चादर को बुनकर
एक रिक्शाचालक के
या एक झोंपडी में रहने
वाले के दुख दर्द का
बयान कर खुद को
अग्रिम पंक्ति में
स्थापित करने का
नौस्टैलज़िया दिखा सकूँ

नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
जिसमें राजनीति के
समीकरणों को
दो दूनी आठ की
भाषा का केन्द्र बना लूँ
कुछ जोड - तोड की
नी्ति को अपना
अपने लिये एक
राजनीतिक मंच बना लूँ
और सराहना या पुरस्कारों
या सम्मानों का ढेर लगा लूँ

नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
जिसमें कहीं मोहब्बत के
तो कहीं नफ़रत के
तो कभी ख्वाबों के
शामियाने लगा लूँ
आखिर किस लिये ?
खुद को साबित करने के लिये
कब तक नकाब ओढे रखूँ
कब तक कविता की
सारी सीमायें तोडती रहूँ
हर वर्जना को
अस्वीकारती रहूँ

आखिर कब होगा अंत ?
आखिर कब होगा मुक्तिबोध ?
कविता का और खुद का

नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल
जिसमे आकाशीय खगोलीय
ब्रह्मांडीय घटनाओं के
समावेश से पूर्णता मिल जाये
इतना आसान कहीं होता है
हर ब्लैक होल मे विचरण करना ?

ये ब्रह्मांड के अनन्त
अथाह परिवेश से गहरे
कविता के मर्म को जानना
क्या इतना आसान है
जो चंद लफ़्ज़ों का मोहताज़ हो

समीक्षक की दृष्टि भी तो
उसकी सीमाओं तक ही
सीमित है
मगर कविता असीम है
निस्सीम है
अनन्त है
एक छोर से अनन्त के
उस पार तक
जिस का सिरा
कोई नही पकड पाया
फिर कैसे बांधूँ
हर उपालम्भ को
कविता के दायरे में
जबकि जानती हूँ
नहीं है मेरी कविता का
कैनवस इतना विशाल

20 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

सुन्दर भावनात्मक अभिव्यक्ति कलम आज भी उन्हीं की जय बोलेगी ...... आप भी जाने कई ब्लोगर्स भी फंस सकते हैं मानहानि में .......

डॉ. राजेश नीरव ने कहा…

शानदार...

Anita ने कहा…

कविता के कैनवास को भी असीम बनना होगा..प्रभावशाली रचना..

Rajesh Kumari ने कहा…

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 22/1/13 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है

Asha Joglekar ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति । पर कविता का केनवस विसाल नही तो फिर किसका । यह तो गागर में सागर बरने की क्षमता रखता है ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

गहन गवेषणा के साथ प्रस्तुत की गई बढ़िया रचना!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कविता प्रयास करती रहे..विस्तार पाती जाती है...

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

मुझे तो अनंत तक पसरा लगता है आपकी कविता का कैनवास....और आपकी तूलिका इन्द्रधनुष के सारे रंग उतार देती हैं...और अनायास ही बन जाया करता है एक "मास्टर पीस"....( आपके पास तो अनेक हैं वंदना...)
अनु

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

असीम कैनवास पर रची बुनी रचना ...

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

बहुत उम्दा ....सब समेटती कविता, फिर कुछ बचा रहता .....

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी .बेह्तरीन

shyam gupta ने कहा…

विश्व में वह कौन सीमा हीन है ,
हो न जिसका खोज सीमा में मिला |---

-- द्वैत --अद्वैत एक दूसरे से भिन्न नहीं अपितु पूरक हैं ...
--कविता के लिए केनवस खोजने की आवश्यकता नहीं ..बस कोमल क्षणों में ह्रदय के भाव ओठों व कलम पर आजाने चाहिए...

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

जानदार सोच ...बहुत बढिया

Arvind Mishra ने कहा…

जरुरत ही कहाँ हैं किसी विशाल कैनवास की -जीवन का कोई एक क्षण भी कविता बन कर निःसृत हो लेता है!

Unknown ने कहा…

विशाल कैनवास , सुन्दर भावपूर्ण बधाई

Unknown ने कहा…

विशाल कैनवास , सुन्दर भावपूर्ण बधाई

MahavirUttranchali ने कहा…

Ghazab ki rachana ki hai aapne... waah! waah!!

Mahavir Uttranchali

Satish Saxena ने कहा…

कैनवास की विशालता में कोई कमी नहीं
हार्दिक शुभकामनायें !

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

बेहतरीन कविता.