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मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनों

चलो इक बार फिर से अजनबी बन जायें हम दोनों
कहना कितना आसान लगता है ना
मगर क्या वास्तव मे ये संभव है
कैसे खुरच कर निकालोगे उन यादों के ढेर को
जो कहीं हीरे - जवाहरात सा
तो कहीं कूडे - कचरे सा
जमा होगा दिल के कोने - कोने में
कहीं यादों की कडवाहट
तो कहीं किलकारियाँ भरती जगमगाहटें
कहीं दर्द के फ़ानूस लटके होंगे
तो कहीं मोहब्बत के दीये जले मिलेंगे
जो कदम - कदम पर अपनी
उपस्थिति का भान कराते रहेंगे
जो कभी डराते रहेंगे
तो कभी उलझाते रहेंगे
और परिस्थिति वो ही दुरूह सी हो जायेगी
क्या आसान है अजनबी हो जाना
एक दूसरे को करीब से इतना जानने के बाद
क्या मुमकिन है एक नयी शुरुआत करना
फिर से अजनबियत का नकाब ओढ कर
जहाँ जानने को अब कुछ बचा ही ना हो
ये सिर्फ़ कहने में ही अच्छा लग सकता है
हकीकत में तो शुरुआत हमेशा शून्य से ही हुआ करती है ………

19 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

कहाँ आसान होता है स्मृतियों को मिटा पाना

सदा ने कहा…

हकीकत में तो शुरूआत ... बिल्‍कुल सच कहा
बेहतरीन प्रस्‍तुति।

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

badhiya kavita...

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

सही बात कहती हुयी रचना !!

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

sahi bat aasan kam nahi.......

ZEAL ने कहा…

It's impossible to become strangers again.

Kailash Sharma ने कहा…

क्या आसान है अजनबी हो जाना
एक दूसरे को करीब से इतना जानने के बाद...

..बिल्कुल सत्य..शुरुआत हमेशा शून्य से ही हुआ करती है ………बहुत सारगर्भित और भावमयी रचना..

devendra gautam ने कहा…

इस कविता के भाव ह्रदय को झकझोरने वाले हैं.अतीत की स्मृतियों को ताज़ा करने वाले. कोई अपना बिछड़ गया हो और वर्षों के अंतराल के बाद बदले हुए परिवेश में अचानक सामने आ जाये तो उसके साथ अजनवी की तरह व्यवहार तो नहीं किया जा सकता लेकिन पहले की तरह खुलकर बात कर पाना भी संभव नहीं होता. ऐसे वक़्त में ज़बान थम जाती है और आखें बोलने लगती हैं.

बेनामी ने कहा…

sunder rachna

Bhola-Krishna ने कहा…

अति सुंदर प्रस्तुति , बधाई ! पढ़ कर ,यह विचार उठा कि- यदि वाकयी में "मोहब्बत के दिये" जले हैं तो यकीनन उनकी टिमटिमाहट में "दर्द के फानूस" जुगनू बन जायेंगे ! वन्दना जी , जिससे प्रीति की वह तो प्रति पल हमारे हृदय में टिमटिमाता है ,वह यकबयक अजनबी कैसे बन जाएगा ? किसी जमाने में गाता था यह गीत बड़े दर्द से पर असलियत आज समझा !धन्यवाद !

Dinesh pareek ने कहा…

बहुत उम्दा ..भाव पूर्ण रचना .. बहुत खूब अच्छी रचना इस के लिए आपको बहुत - बहुत बधाई
मेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है
खुशबू

mukti ने कहा…

सही कहा. एक-दूसरे को अच्छी तरह जान लेने के बाद अजनबी बनना आसान नहीं है. कमबख्त यादें जीने नहीं देतीं.

Dinesh pareek ने कहा…

बहुत खूब जनाब

मेरी नई रचना
ये कैसी मोहब्बत है

खुशबू

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!

Rajendra kumar ने कहा…

बेहतरीन सार्थक रचना,आभार.

Madan Mohan Saxena ने कहा…

बहुत सराहनीय प्रस्तुति. आभार. बधाई आपको

Pallavi saxena ने कहा…

गर इतनी आसान होती ज़िंदगी तो फिर बात ही क्या थी।

Blogvarta ने कहा…

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महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

अच्छी रचना
बहुत सुंदर