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रविवार, 21 जुलाई 2013

भावों के टुकडे-------1

1
ये गर्दिशों की स्लेटों पर 
रूहों की ताजपोशी करती 
तुम्हारी हसरतों की कलमें 
जब भी लिखती हैं 
लिखावट अदृश्य पर्दो की ओट 
में छिप जाती है 
और मैं बांचती रह जाती हूँ 
खाली स्लेट के काले कैनवस को 
अपनी ज़िन्दगी सा ...................

2
जैसे 
आँधियों के नाम नहीं होते 
तूफानों के जाम नही होते 
वैसे ही 
जो रहते हैं किसी के दिल में 
वो शख्स आम नहीं होते 

3
वो उमड़ता घुमड़ता तूफ़ान 
जाने कहाँ गुम हो गया 
ढूंढता हूँ अब मैं खुद को ही खुदी में 

लगता है आइनों के शहर में बलवा हो गया 

4
तवा ठंडा हो गया है 
पीर में भी ना वो शिद्दत रही है 
हूक कोई उठती ही नहीं 
हवाओं में सरगोशी भी होती नहीं 
कोई आँच जलती ही नहीं 
ना जाने कैसे फिर भी जिंदा हूँ ............लोग कहते हैं !!!

क्या साँसों का आवागमन काफी है ज़िन्दगी के लिए ?

5
पस्त हौसलों का चारमीनार हूँ मैं 
ज़िन्दगी से लडती चीन की दीवार हूँ मैं 
जो न पहुँच पायी कभी किसी बुलंदी पर 
ऐसी अनजानी इक कुतुबमीनार हूँ मैं 


6
चुप्पी की स्लेट पर चुप्पी की स्याही से कोई चुप्पी कैसे लिखे 
ये रूह में गढता छलनी करता आन्तरिक रुदन कोई कैसे सहे 

7
बिना आँच के भट्टी सा सुलगता दर्द 
रूह पर फ़फ़ोले छोड गया 
आओ सहेजें 
इन फ़फ़ोलों में ठहरे पानी को रिसने से …………
कम से कम 
निशानियों की पहरेदारी में ही 
उम्र फ़ना हो जाये 
तो तुझ संग जीने की तलब 
शायद मिट जाये 
क्योंकि ………
साथ के लिये जरूरी नहीं 
चांद तारों का आसमान की धरती पर साथ साथ टहलना

यूँ भी फ़ना होने के हर शहर के अपने रिवाज़ होते हैं ………


8
सोचती हूँ 
तलाश बंद कर दूं 
आखिर कब तक 
कोई खोजे उन चिन्हों को 
जिनके कोई पदचिन्ह ही न हों 
वैसे भी सुना है 
"मैं "(खुद)की तलाश में जो गया वो वापस नहीं आया 
और मेरे पास तो अब खोने को भी कुछ नहीं बचा ....."मैं" भी नहीं 

फिर भी ना जाने क्यूँ रुका  हुआ - सा एक आंसू है जो  ढलकता ही नहीं 





11 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

भावों के टुकड़े बहुत ही भावप्रणव हैं।

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

विचारों को भाव देना
भावों को शब्द देना
शब्दों की माला बनाना
सच में, कोई आपसे सीखे।

बहुत सुंदर

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

गहरी अभिव्यक्ति, हर कविता में..

Unknown ने कहा…

बेहद शानदार रचना वन्दना जी,आभार।

बेनामी ने कहा…

थैंक्स...

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संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

टुकड़ा टुकड़ा भावों का बहुत कुछ कह गया ... बहुत गहन भाव हैं ।

Anita ने कहा…


चुप्पी की स्लेट पर चुप्पी की स्याही से कोई चुप्पी कैसे लिखे ये रूह में गढता छलनी करता आन्तरिक रुदन कोई कैसे सहे

बहुत गहन ! सभी टुकड़े दिल की अतल गहराइयों से प्रकटे लगते हैं..

शारदा अरोरा ने कहा…

badhiya ..udasi se man bhar aaya...

Maheshwari kaneri ने कहा…

भावों के टुकड़े बहुत ही खुबसूरत हैं.

Pratik Maheshwari ने कहा…

बेहद दर्द है हर शब्द में..

Anju (Anu) Chaudhary ने कहा…

शब्द शब्द खुद में पूर्ण अर्थ लिए हुए है