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शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

कभी कभी लगता है बहुत खडूस हूँ मैं .........

कोई बेचारा अपना हाल -ए-दिल बयां करना चाहता है 
और मैं हूँ कि सिरे से ही नकार देती हूँ 
वो दिल की लगी कहना चाहता है 
मैं दुत्कार देती हूँ 
आधी रात फ़ोन घनघनाता है 
मैं ब्लाक कर देती हूँ 
अपनी आवारगी में दिल्लगी कर जाने क्या बताना चाहता है 

मैं शादीशुदा दो बच्चों की अम्मा 
वो अकेला चना बाजे घना 
कैसे समझ सकता है ये बात 
चाहत के लिए अमां यार मौसम तो दोनों तरफ का यकसां होना जरूरी है
 
वो इतना न समझ पाता है और गलती कर बैठता है 
जल्दबाजी में हाथ के साथ दिल भी जला लेता है  

अजब सिरफिरापन काबिज है मेरी फितरत में 
कभी कभी लगता है बहुत खडूस हूँ मैं .........

4 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

सार्थक प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (24-01-2015) को "लगता है बसन्त आया है" (चर्चा-1868) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
बसन्तपञ्चमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar ने कहा…

वाह्…वन्दना जी आपने बहुत सही हालात बयान किया है सोशल साइट्स क…।

Rajendra kumar ने कहा…

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति। वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।

Onkar ने कहा…

बहुत सुन्दर