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सोमवार, 23 मार्च 2015

मन की बात ....भाग २

प्रधानमंत्री जी 
मन की बात करने का हक़ सिर्फ आपको है 
जानते हैं न क्यों ..... 
उच्च पद स्वतः बन जाते हैं साक्षी मन की बात कहने के 

एक प्रश्न पूछूँ
वैसे जानती हूँ जवाब नहीं मिलेगा 
मगर फिर भी पूछ ही लेती हूँ 
क्या आपने कभी सोचा 
मन क्या सिर्फ आपके पास है ?
या फिर जनता के पास मन होता ही नहीं 
या फिर आप अन्तर्यामी हैं 
जान लेते हैं सबके मन की बात 
इसलिए सिर्फ अपने मन की कह कर लेते हैं इतिश्री अपने कर्तव्य की 

एक बार इस पद से नीचे उतर कर जाते मन की बात जानने भी 
कितने बंजर खेतों की दास्ताँ 
सूनी आखों की सुगबुगाहट 
पत्थर होती नस्लों के बुतों 
और कसबे गाँव और शहर के बीच मचे घमासान में 
नज़र कहीं आ जाता यदि कोई जिंदा आदमी 
तो शायद कर भी लेता वो कहीं किसी से कोई मन की बात 
जबकि यहाँ तो मृतप्रायः हो गयी है एक पूरी सभ्यता ही 
शायद उतर सकता तब भरम का पर्दा 
और हकीकतों के लिबास से आती बू से हो जाते आप वाकिफ 

सच कहती हूँ 
उसके बाद 
न कर पाते कभी मन की बात तब तक 
जब तक हर मन की क्यारियों को न सींच देते 
ये रात का सफ़र है 
सुबह होने में देरी है 
बस उतनी ही जितनी 
आपके और आम इंसान के मन की बात में है अंतर 

क्या पाट सकते हो इस खाई को किसी सम्भावना के पुल से 
यदि हाँ .......तो उस दिन करना कोई मन की बात 
तब तक मत दिखाइए ख्वाबों के गुलाब 
यहाँ तो उम्र वैसे ही काँटों पर बसर हो रही है 
और कांटे सहेजने को नहीं बचा यहाँ कोई घर द्वार या मन .............

3 टिप्‍पणियां:

tere mere sapney ने कहा…

shaandaar

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

क्या बात

Wasu ने कहा…

jab gher ki bat ho to har ek ko kush kar sakta hai insan par jab pure gaon ki bat ho to wahi insan sab ko kush nahi kar pata ha par dur baitha insan sirf kayash hi laga sakta hai aur kuch nahi kash kishi ke pryash ko ham sarahya kare ....... dhanywad...!!!!