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बुधवार, 26 अगस्त 2015

भविष्य जवाब का गुलाम नहीं

आजकल दर्द की गिरह में लिपटी हैं वर्जनाएं
कोशिशों के तमाम झुलसे हुए आकाश
अपने अपने दडबों में कुकडू कूँ करने को हैं बाध्य
ये विडम्बनाओं का शहर है
जहाँ दस्तकें तो होती हैं मगर सुनवाई नहीं
कौओं की काँव काँव भर है जिनका प्रतिरोध
भला ऐसे शहरों में भी कभी सुबह हुआ करती हैं ?

भविष्य जवाब का गुलाम नहीं ..........

4 टिप्‍पणियां:

yashoda Agrawal ने कहा…

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 27 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (27-08-2015) को "धूल से गंदे नहीं होते फूल" (चर्चा अंक-2080) पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

मन के - मनके ने कहा…

प्रभावशाली

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