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बुधवार, 12 दिसंबर 2018

मैं बस इक जलता अलाव हूँ

न जाने किस पर गुस्सा हूँ
न जाने क्यों उदास हूँ
खोज के बिंदु चुक गए
मौसम सारे रुक गए
फिर किस चाह की आस में हूँ

जब कोई कहीं नहीं
अपना पराया भी नहीं
मृग तृष्णा की किस फाँस में हूँ
किस जीवन की तलाश में हूँ
यूँ लगता है कभी कभी
मैं बस इक जलता अलाव हूँ

किसी दिशा का भान नहीं
अब बचा कोई ज्ञान नहीं
जब जीवन रीता बीत गया
सुख दुःख का भान छूट गया
और तरकश सारा खाली हुआ


तब सोचूँ ये किस पड़ाव में हूँ

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