बेशक
मैं कतार का अंतिम आदमी हूँ
लेकिन सबसे अहम हूँ
मेरे बिना तुम्हारे महल चौबारे नहीं
पूँजी के नंगे नज़ारे नहीं
फिर भी दृष्टि में तुम्हारी नगण्य हूँ
मत भूलो
स्वप्न तुम देखते हो
पूरा मैं करता हूँ
फिर भी मारा मारा
मैं ही यहाँ वहां फिरता हूँ
तुम तभी चैन से सोते हो
जब मैं धूप में तपता हूँ
तुम्हारी ख्वाहिशों का इकबाल बुलंद हो
इस खातिर
अपनी नींदों को रेहन रखता हूँ
भूख, बीमारी, लाचारी मेरे हिस्से आती है
फिर भी न शिकायत करता हूँ
सर्दी गर्मी वर्षा की हर मार मैं ही सहता हूँ
अर्थव्यवस्था के उत्थान में अपना योगदान देता हूँ
फिर न किसी कतार का हिस्सा हूँ
नगण्य ही सही,
फिर भी तुम्हारा हिस्सा हूँ
मैं कतार का अंतिम आदमी हूँ
लेकिन सबसे अहम हूँ
मेरे बिना तुम्हारे महल चौबारे नहीं
पूँजी के नंगे नज़ारे नहीं
फिर भी दृष्टि में तुम्हारी नगण्य हूँ
मत भूलो
स्वप्न तुम देखते हो
पूरा मैं करता हूँ
फिर भी मारा मारा
मैं ही यहाँ वहां फिरता हूँ
तुम तभी चैन से सोते हो
जब मैं धूप में तपता हूँ
तुम्हारी ख्वाहिशों का इकबाल बुलंद हो
इस खातिर
अपनी नींदों को रेहन रखता हूँ
भूख, बीमारी, लाचारी मेरे हिस्से आती है
फिर भी न शिकायत करता हूँ
सर्दी गर्मी वर्षा की हर मार मैं ही सहता हूँ
अर्थव्यवस्था के उत्थान में अपना योगदान देता हूँ
फिर न किसी कतार का हिस्सा हूँ
नगण्य ही सही,
फिर भी तुम्हारा हिस्सा हूँ
8 टिप्पणियां:
स्वप्न तुम देखते हो
पूरा मैं करता हूँ
फिर भी मारा मारा
मैं ही यहाँ वहां फिरता हूँ
हृदयस्पर्शी रचना बहुत ही सुंदर
Enoxo multimedia
Eksacchai
बेशक
मैं कतार का अंतिम आदमी हूँ
लेकिन सबसे अहम हूँ
मेरे बिना तुम्हारे महल चौबारे नहीं
पूँजी के नंगे नज़ारे नहीं
फिर भी दृष्टि में तुम्हारी नगण्य हूँ
मत भूलो
स्वप्न तुम देखते हो
पूरा मैं करता हूँ
फिर भी मारा मारा
मैं ही यहाँ वहां फिरता हूँ
अति उत्तम ,बहुत ही सुंदर कविता ,नमस्कार
कटु यथार्थ !
श्रमिकों को अपना हिस्सा माना ही नहीं जा रहा है, तभी तो आज यह हाल है कि सैकड़ों जाने चली गईं. सच है, इनके ही बल पर हम सभी जीते है. बहुत प्रभावपूर्ण रचना.
कतार के अंतिम आदमी को देख कर भी अनदेखा किया जाता रहा है
बिल्कुल सही कहा
Bahut sundar
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