कुछ ख्याल
आते आते
भटक जाते हैं
अपने ही दायरों में
सिमट जाते हैं
भावों को न
पकड़ पाते हैं
शून्य में ही कहीं
खो जाते हैं
कुछ कहते- कहते
ना जाने
क्या कह जाते हैं
ख्याल पर ख्याल
पलट जाते हैं
भावों के मंथन
की कौन कहे
यहाँ तो लब तक
आते- आते
अल्फाज़ बदल जाते हैं
एक भाव में
दूसरा भाव
उलझ जाता है
शब्दों में ना
बंध पाता है
भावों में बहते-बहते
शब्द भी खो जाते हैं
और फिर
कुछ ख्याल
अनकहे ही
रह जाते हैं
12 टिप्पणियां:
यही कुछ ख्याल फिर से नयी बात कह जाते हैं ..बहुत अच्छा लिखा है आपने ..अच्छी लगे आपके यह ख्याल
बहुत ही लाजवाब कविता है
---
तख़लीक़-ए-नज़र । चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें । तकनीक दृष्टा
सच कुछ ख्याल अनकहे रह जाता है जिदंग़ी में। उन ख्यालों को अच्छे शब्द दिये। बेहतरीन।
sookh jata hai gala kafz atak saktey hai ,
mere khayal kahin door bhatak saktey hain,
meri kavita ki in lines se bahut milti hai aapki kavita,sunder prayas,
meri hardik shubh kamnayen
Dr.Bhoopendra Singh
प्रियम्वदा वन्दना जी।
संसार एक प्रश्नजाल है।
अनकहे सवाल सबको परेशान करते हैं।
समय आने पर खुद-ब-खुद इनका समाधान हो जाता है।
अभिव्यक्ति को दिल में मत घुटने दो।
इसे व्यक्त करने से मन का बोझ हल्का हो जाता है।
सुन्दर भावों को कलमबद्ध करने के लिए,
बधाई।
बहुत सुन्दर। खयालों के साथ ऐसा होता ही रहता है।
घुघूती बासूती
सोलह आने सच...बात कही आपने...अक्सर ही होता है मेरे साथ तो.
सोलह आने सच...बात कही आपने...अक्सर ही होता है मेरे साथ तो.
bahut sunder vandana ji, khayal to khayal hain kaabu men kahan rahte hain ek ke baad doosra phir teesra................... man kaabu men kahan rah paata hai. sunder rachna ke liye badhai
बहुत ही सुन्दर रचना.
गुलमोहर का फूल
vandana ji , ise to main pahle padh hi nahi paaya tha .. waah kya baat hai , kya khoob likha hai aapne .. man prasaan ho gaya ....
kuch rishto me thoughts ka flow kuch isi tarah se hota hai ..
aapko badhai
वन्दना जी
आपके ब्लोग के पहले के पोस्ट पर नज़र डाला. बहुत अच्छी लगी आपकी यह रचना.
एक टिप्पणी भेजें